Poem: जाड़ा जाय रहा है
चार महीना सुख से बीता, घुसुड़ रजाई मा जग जीता। इक-दूजे से लिपट-लिपटकर, सोवा हम तो चिपक-चिपककर। ऊ सुख अब तो मिलै न पाई, मौसम दूसर आय रहा है। सरवा…
चार महीना सुख से बीता, घुसुड़ रजाई मा जग जीता। इक-दूजे से लिपट-लिपटकर, सोवा हम तो चिपक-चिपककर। ऊ सुख अब तो मिलै न पाई, मौसम दूसर आय रहा है। सरवा…