आत्मीयता से ओत-प्रोत स्मृतियां

प्रो. संजय द्विवेदी की उदार लोकतांत्रिक चेतना का प्रमाण उनकी सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘न हन्यते’ है। ‘न हन्यते’ पुस्तक में दिवंगत हुए परिचितों, महापुरुषों के प्रति आत्मीयता से ओत-प्रोत संस्मरण…

इसे कहते हैं कसक और चाहत

ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा जर्नल बोगी में आ गया। मैं अकेली सफर पर थी। सब अजनबी चेहरे थे। स्लीपर का टिकट नहीं…

विश्व रेडियो दिवस पर सुनो मैं प्रेमचंद कार्यक्रम के 365 दिन पूरे

लखनऊ: उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के गांव में घुसते ही एक आवाज सुनाई देती है, सुनो मैं प्रेमचंद। यह आवाज थोड़ी ही देर में प्रेमचंद की कहानियां सुनाने लगती है।…

चांद और मैं

मैंने महबूब को चांद, कह क्या दिया…! चांद कल रात हमसे, ख़फ़ा हो गया! चांद तनकर ये बोला कि, सुन ”अजनवी” तेरे महबूब में ऐसी, क्या है ख़ुबी…? मैं कहा…

शीत ऋतु का घेरा

धवल चांदनी छिटक रही है, नूर समेटे बांहों में। चुपके से आ जाओ प्रियतम, नैन निहारे राहों में। मन में विरह का ताप बहुत है, दूर..! निंद का डेरा है।…

“साकी”

दीवाना बन के आया हूँ, तेरे मयखाने में साकी। पीला दे रूप का मदिरा, मुझे दो घूंट ऐ साकी।। मुझे मदहोश कर दे तूँ, पीला के हुस्न का मदिरा। तुम्हें…

जीवन एक सफ़र

सफ़र बहुत ख़ुशनुमा था। रास्ते में किसी तरह का व्यवधान नहीं पड़ा। मंज़िल भी बहुत दूर नहीं थी कि गाड़ी की गति बहुत धीमी हो गयी। तब तक मुझे अहसास…

हिंदी: राजभाषा, राष्ट्रभाषा और विश्वभाषा

(अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन, वाराणसी (13-14 नवंबर) के अवसर पर विशेष) एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है, बल्कि हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति और संस्कारों…

‘गांधी: एक पुनर्विचार’ पर राष्ट्रवादी लेखक संघ की साहित्यिक वैचारिकी!

लखनऊ: राष्ट्रवादी लेखक संघ के तत्वावधान में गांधी पर एक साहित्य वैचारिकी का आयोजन किया गया जिसमें देश-विदेश से वक्ता और लेखक जुड़े। ‘गांधी: एक पुनर्विचार’ कार्यक्रम में मुख्य वक्ता…