संजय तिवारी
Swami Swaroopanand Saraswati: गोलोकवासी शारदा पीठ (Sharda Peeth) अर्थात द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) के उत्तराधिकार का प्रकरण अब न्यायालय में पहुच गया है। अविमुक्तेश्वरानंद और सदानंद की शंकराचार्य पद पर की गई स्वघोषित नियुक्ति को चुनौती देते हुए अखिल भारतीय श्री धर्म रक्षा सेना ने न्यायालय में पिटीशन दाखिल कर दिया है। इसके साथ ही जबलपुर के आईजी को एक पत्र लिख कर चंद्रमौलेश्वर भगवान शिव की सुरक्षा की मांग भी की गई है। (Swami Swaroopanand Saraswati) संगठन के राष्ट्रीय संयोजक जानकी शरण अग्रवाल ने इस बारे में सभी प्रमाण और आवश्यक प्रपत्र भी न्यायालय और आईजी को उपलब्ध करा दिए हैं।
श्री धर्मरक्षा सेना की ओर से कहा गया है कि स्वामी स्वरूपानंद (Swami Swaroopanand Saraswati) ने कोई वसीयत नहीं बनाई है। यदि बनाई होती तो वह रजिस्टर्ड अवश्य कराते। सेना ने कहा है कि जिस वसीयत की बात तथाकथित सचिव कर रहे हैं वह फर्जी है। दर असल इनके पास कोई वसीयत है ही नहीं है। स्वामी स्वरूपानंद (Swami Swaroopanand Saraswati) ने एक न्यूज चैनल को वर्ष 2012 में फिर 22 नवम्बर, 2020 में भी उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से स्पष्ट कर दिया था कि ज्योतिष पीठ एवं द्वारका शारदा पीठ (Sharda Peeth) पर अपना कोई उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया है।
इस बात की पुष्टि करते हुए गोवर्धनपुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी ने अपने ट्विट और वीडियो के माध्यम से तथाकथित शंकराचार्यओ की नियुक्ति को अवैध बताया है। श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ जी महाराज का भी अभी तक पत्र व वीडियो जारी नहीं किया गया है। दोनों तथाकथित शंकराचार्य के सचिव ब्रम्हचारी सुबुद्धानंद ने ज्योतिष पीठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद एवम् द्वारका शारदा पीठ पर स्वामी सदानंद की नियुक्ति का यह ब्यान जारी करना बड़ा दुर्भाग्य पूर्ण हैं।
पत्र में स्पष्ट किया गया है कि स्वामी स्वरूपानंद ने ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य स्वयं को घोषित करने 28 जून 1974 को एक वाद संख्या 1अ/1974 सिवनी अदालत में दायर किया था। जो कि आज तक इलाहाबाद कोर्ट में लंबित (पेंडिग) है। न्याय क्षेत्र इलाहाबाद होने के कारण ऐसा है। इसी क्रम में सहारनपुर कोर्ट में चल रहे वाद संख्या 57/97 स्वामीमाधव आश्रम बनाम स्वामी स्वरूपानंद वाले मामले में स्वामी स्वरूपानंद ने ब्यान दिया है कि स्वामी कृष्णबोध आश्रम ने हमें ज्योतिष पीठ का उत्तराधिकारी शंकराचार्य बनाया है, जबकि वे स्वयं ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य नहीं थे।
इलाहाबाद कोर्ट ने 15 जनवरी, 1970 को वाद संख्या 36/1965 का निराकरण करते हुए। स्वामी कृष्णबोध आश्रम को शंकराचार्य कहने और प्रतीक चिन्हों को धारण करने से निषेध किया। इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले का पेज 674 को देखे तो स्पष्ट है कि दोनों जजों ने जब स्वामी स्वरूपानंद जी के गुरु स्वामी कृष्ण बोध आश्रम को ही ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य नहीं माना। तब स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य संबोधित करना कोर्ट की अवमानना हैं।
वर्तमान में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट अयोध्या के संरक्षक पद पर ज्योतिष पीठ शंकराचार्य नाम से सम्बोधित किया हैं। विदित हो कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के दोनों न्यायाधीशों ने स्वामी स्वरूपानंद का ज्योतिष पीठ पर से दावा खारिज कर दिया है। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
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दूसरे तथाकथित स्वयं भू शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती पूर्व नाम रमेश अवस्थी आत्मज़ विद्याधर अवस्थी के खिलाफ सिविल न्यायालय में एक वाद दायर किया गया है। जिसमें कहा गया है कि सदानंद उर्फ रमेश अवस्थी के क्रिया कलाप एवं उनके चाल चलन एक दंडी सन्यासी के व्यवहार उसके नियम के विरूद्ध है। दंडी सन्यासी के शास्त्रों पुराणों में जो नियम मर्यादाये निर्धारित की है उसके अनुरूप नहीं है। इसलिए उन्हें दंडी सन्यासी स्वामी कहने से निषेध किया जाए तथा षड्यंत्र पूर्वक शंकराचार्य बनने के प्रयास को भी रोका जाए।
सिविल न्यायालय में 150 पेज का वाद दायर (पिटिसन)किया गया है। इसका उद्देश्य सनातन धर्म में ऐसे लोगों को रोका जाए जो सनातन धर्म संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहे है। चंद्रमोलेश्वर भगवान शिवलिंग की सुरक्षा एवम् तथाकथित शंकराचार्य के विरोध में पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) को दिया आवेदन की कापी भी संलग्न हैं। अदालत में मामला लम्बित रहने के बाद भी उनकी नियुक्ति अवैध है।
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