खालिस्तानी और भिड़रावाले मानसिकता के खिलाफ प्रदर्शन करने की कोशिश करना या फिर अभियान चलाना गुनाह है क्या? हरीश सिंगला ने खालिस्तानी और भिड़रावाले मानसिकता के खिलाफ प्रदर्शन करने की कोशिश कर गुनाह किया है क्या? हरीश सिंगला ने कोई गुनाह नहीं किया है। हरीश सिंगला की प्रशंसा इस बात की होनी चाहिए कि उन्होंने हिंसा और विघटन की इच्छा रखने वाले ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के मोहरे खालिस्तान और भिड़रावाले के समर्थकों को लोकतांत्रिक ढ़ंग से चुनौती दी थी और अपनी जान को जोखिम में डाल कर अभियान चलाया। तथ्य और वातावरण बहुत ही खतरनाक है। खालिस्तानियों और भिड़रावाले मानसिकता की हिंसा और खतरनाक सक्रियता बहुत ही चिंता जनक है। इनके निशाने पर हिन्दू हैं।
आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों ने हिन्दू नेताओं और संगठनों के बड़े पदाधिकारियों को निशाना बनाने का काम किया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आधा दर्जन नेताओं की सरेआम हत्या हुई है। यह अलग बात है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक अपने बड़े नेताओं की निमृम हत्या के बाद भी कोई हल्ला-हंगामा नहीं मचाया, क्योंकि संघ को हिन्दू-सिख एकता की चिंता थी। प्रकाश सिंह बादल और अमरिन्दर सिंह के शासनकाल में खालिस्तान समर्थकों पर जिस तरह से सख्ती बरतने की जरूरत थी, कानून को लागू करने की जरूरत थी उस तरह से सख्ती नहीं बरती गयी, उनके खिलाफ कानून को सक्रिय नहीं किया गया। जबकि संघ के बड़े नेताओं की हत्या में खालिस्तान समर्थकों का सीधा हाथ उजागर हो गया था।
किसान आंदोलन के समय भी खालिस्तानियों की कारस्तानी सामने थी, किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और बर्बर हत्याओं में खालिस्तानी समर्थक तत्वों का ही हाथ था। पटियाला की काली मंदिर में बेअदबी की कारस्तानी ने सिख समुदाय के प्रति हिन्दुओं के विश्वास और सहयोग पर असर डाला है। सिख समुदाय अगर खालिस्तानियों के खिलाफ मुखर होकर आगे नहीं आयी तो फिर एक बार पंजाब हिंसा और अराजकता की आग में दहकने वाला है। पंजाब में हिन्दुओं की पीड़ा है कि सिख आतंकवाद के दौर में मारे गये 40 हजार हिन्दुओं को न्याय क्यों नहीं दिया गया, एक भी हिन्दू को मुआवजा क्यों नहीं मिला?
जब शासन-प्रशासन आखें मूंद लेता है तब अराजक तत्व, हिंसक तत्व, विखंडनकारी तत्व किस प्रकार से हावी होते हैं इसका उदाहरण खालिस्तानी और भिड़रावाले मानसिकता की हिंसा और अराजकता है। पंजाब में भिड़रवाल का इतिहास दोहराया जा रहा है। कभी इंदिरा गांधी ने खालिस्तानी और भिड़रावाले प्रेम की राजनीति अपनायी थी। इंदिरा गांधी को अपना विरोधी पसंद नहीं होता था। अपने विरोधियों को हर हाल में इंदिरा गांधी निपटाना चाहती थी, इसके लिए इंदिरा गांधी हर हथकंडा अपनाने के लिए तैयार रहती थी। तत्कालीन सिख राजनीति के दमन के लिए इंदिरा गांधी ने भिड़रावाले को आगे बढ़ायी थी और उसकी अराजकता व हिंसा को संरक्षण दी थी। राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि भिड़रावाले हिंसक या आतंकवादी नहीं हैं, वे एक महान संत है। ब्रिटेन की सूचना पर इंदिरा गांधी को ब्लूस्टार नाम से सैनिक कार्रवाई करनी पड़ी थी, जिसमें भिड़रावाला मारा गया था। बाद में इसका दुष्परिणाम खुद इंदिरा गांधी ने भुगती थी। एक सिख सैनिक ने इंदिरा गांधी की हत्या कर डाली थी।
आम आदमी पार्टी भी इंदिरा गांधी के रास्ते पर चल रही है। आम आदमी पार्टी पर खालिस्तानी समर्थकों से सांठगाठ करने और पैसे लेने के आरोप लगते रहे हैं। पंजाब विधान सभा के पिछले चुनाव में भी यह आशंका व्यक्त की गयी थी कि अगर आम आदमी पार्टी सत्ता में आयी तो पंजाब हिंसा और अराजकता में डूब जायेगा तथा खालिस्तानी-भिड़रावाले मानसिकता का प्रचार-प्रसार होगा। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक पत्र लिख कर अरविन्द केजरीवाल पर सिख आतंकवादियों से सांठगाठ का आरोप लगाया था और अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की थी। सिख फॉर जस्टिस नामक संगठन से अरविन्द केजरीवाल के संपर्क रहे हैं। अरविन्द केजरीवाल के पुराने साथी कुमार विश्वास ने भी केजरीवाल के खालिस्तानी कनेक्शन के पोल खोले हैं।
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कुमार विश्वास ने रहस्योघाटन किया था कि उनसे अरविन्द केजरीवाल ने एक बार पंजाब के सीएम या पीएम बनने की इच्छा जतायी थी। सीएम बनने की इच्छा तो ठीक है पर पंजाब के पीएम बनने की केजरीवाल की इच्छा क्या देश की एकता और अंखडता को चुनौती नहीं देती है? पंजाब कोई देश नहीं है। कुमार विश्वास के रहस्योघाटन की कसौटी पर केजरीवाल की इच्छा यही है कि पंजाब देश से अलग होकर नया देश बने, जब तक पंजाब नया देश नहीं बनेगा तब तक केजरीवाल कैसे पंजाब के पीएम बनेंगे? इन तथ्यों से से साफ होता है कि अरविन्द केजरीवाल पहले से ही खालिस्तानी और भिड़रावाले की मानसिकता पर साइलेंट काम कर रहे हैं।
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद निश्चित तौर पर सिख फॉट जस्टिस की सक्रियता बढ़ी है और खालिस्तानी-भिड़रावाले मानसिकता की वैचारिक हिंसा हिन्दुओं के खिलाफ तेजी के साथ बढ़ी है। पटियाला प्रकरण पर आम आदमी पार्टी की सरकार की एंकागी कार्रवाई भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है। हरीश सिंगला ने कोई हिंसा नहीं की है, उसने सिर्फ प्रदर्शन करने की कोशिश की थी। हिंसा और भय का वातावरण तो खालिस्तानी समर्थकों ने किया।
खालिस्तानी समर्थक कौन हैं, यह कौन नहीं जानता है। हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक काली मंदिर पर हमले बर्बर थे, हमलों में सैकड़ों की भीड़ थी। पर जेल सबसे पहले किसकों भेजा गया? जेल सबसे पहले हरीश सिंगला को भेजा गया। खालिस्तानी-भिड़रावाले मानसिकता के हिंसक लोगों पर त्वरित कार्रवाई क्यों नहीं हुई, कुछ ंचंद लोगों पर एफआईआर दर्ज कर खानापूर्ति कर दी गयी और आम आदमी पार्टी की सरकार पर देश भर में उठ रहे विरोधों को शांत करने का हथकंडा अपनाया गया। पटियाला के काली मंदिर पर हमला बोलने वाले सैकड़ों लोगों को अगर जेलों में डाला जाता तो फिर खालिस्तानी-भिड़रावाले मानसिकता को सबक मिलता और उनका प्रचार-प्रसार का नेटवर्क भी प्रभावित होता।
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सिख गुरुओं की उपदेश और कर्म आज गौण करने की साजिश हो रही है। इसके पीछे सिख फॉर जस्टिस है। सिख फॉर जस्टिस आज पैसा पानी की तरह बहा रहा है। पंजाब के बैरोजगार सिख युवकों को पैसे के बल पर हिंसक और विखंडनकारी बना रहा है। सिख फॉर जस्टिस विदेशों से पैसा उगाह कर पंजाब के युवकों पर खर्च कर रहा है। सिख फॉर जस्टिस का सांठगाठ आईएसआई और कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों से भी है। किसान आंदोलन में भी आईएसआई और मुस्लिम संगठनों की साजिश देखी गयी थी। सिख गुरूओं के हत्यारों के वंशजों के साथ सहयोग की राजनीति कोई सिख कैसे करेगा? क्या यह सिख गुरूओं के बलिदान के खिलाफ नहीं है।
सिख आतंकवाद के दौर में 40 हजार हिन्दुओं की हत्या हुई थी। सिख दंगे में चार हजार लोगों की हत्या पूरे देश मे हुई थी। सिख दंगों में मारे गये लोगों को न्याय भी मिला, मुआवजा भी मिला, कई दोषी जेल में बंद हैं। लेकिन सिख आतंकवाद के दौर में मारे गये 40 हजार हिन्दुओं के परिजनों को न्याय नहीं मिला, एक हिन्दू को भी मुआबजा नहीं मिला। हिन्दुओं ने जितना सम्मान सिखों को दिया है उतना समान और किसी धर्मावलम्बियों को नहीं दिया है। हिन्दू आज भी गुरूद्वारे जाते हैं, सिख गुरूओं के बलिदान पर नतमस्तक होते हैं। लेकिन आज पंजाब के हिन्दू डर-भय और आतंक के साये में जिन्दा रहने के लिए विवश हैं।
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पंजाब को फिर से अस्थिर करने और हिंसक राजनीति में ढकलने की राजनीति बंद होनी चाहिए। पंजाब की आम आदमी पार्टी को इंदिरा गांधी के हस्र से सबक लेना चाहिए। कांग्रेस और अकाली दल को भी एकता व अखंडता की कीमत पर आतंक की राजनीति का अप्रत्यक्ष समर्थन बंद करना होगा। सिख फॉर जस्टिस की विखंडन कारी राजनीति और सिख फॉर जस्टिस द्वारा खालिस्तान की आग भड़काने के लिए भेजे जा रहे डॉलरों पर अंकुश लगाने के लिए केन्द्रीय सरकार को आगे आना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर पंजाब को हिंसा और विघटन की आग में जलने से कौन रोक सकता है?
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
(लेखक सामाजिक विश्लेषक हैं)