Subrata Roy: सहारा चीफ सुब्रत रॉय (Subrata Roy death) की लंबी बीमारी के बाद मुबंई के कोकिला बेन अस्पताल (Kokila Ben Hospital) में निधन हो गया। एक दौर था जब देश में सुब्रत रॉय का सिक्का चलता था। लोग उनकी चर्चा कर बिजनेस ट्रिक के बारे में बात करते थे। सुब्रत रॉय (Subrata Roy) ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें लोगों ने काफी करीब से देखा व जाना है। राजनीति, बॉलीवुड और क्रिकेट तक में सुब्रत रॉय (Subrata Roy) का डंका बजता था। सुब्रत रॉय की पहचान देश के सबसे बड़े बिजनेसमैन के रूप में होती थी। हर किसी का समय बदलता है। सुब्रत रॉय (Subrata Roy) का समय काफी तेजी से बदला और यह क्रम उनकी जिंदगी में बना रहा। वह फर्श से अर्श पर पहुंचे, लेकिन ज्यादा समय तक टिक नहीं पाए और फिर फर्श पर आ गए। हालांकि उनकी क्षरा बनाई गई अकूत संपत्ति आज भी लाखों लोगों के रोजगार का साधन बना हुआ है। लेकिन जिंदगी के आखिरी पड़ाव में सहारा श्री (Sahara Shree) ने वह दौर भी देखा, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना न की थी।
सुब्रत रॉय Subrata Roy) जहां लाखों लोगों का सहारा बने वहीं उनकी वजह से कई परिवार इस समय बेसहारा हो चुके हैं। सहारा ग्रुप में निवेश करने वाले लाखों परिवारों को अभी भी अपना पैसा वापस होने की उम्मीद है। वहीं निवेशकों का पैसा डूबने की वजह से सहारा से जुड़े एजेंट अपना घर-परिवार छोड़कर फरार चल रहे हैं। इसी मामले से जुड़ी एक चिट्ठी ने सुब्रत रॉय को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें बिना किसी सजा के लंबे समय तक जेल भी भी रहना पड़ा था।
गौरतलब है कि यह वहीं चिट्ठी थी, जिसने सहारा में चल रही कथित गड़बड़ियों का सारा कच्चा चिट्ठा खोल दिया था। इस चिट्ठी को इंदौर के रहने वाले रोशन लाल ने सार्वजनिक किया था। पेशे से सीए रोशन लाल 4 जनवरी, 2010 को नेशनल हाउसिंग बैंक को हिंदी में चिट्ठी भेजकर सहारा समूह में बड़ी गड़बड़ी का खुलासा किया था। उन्होंने चिट्ठी में दावा किया था कि बड़ी संख्या में लोगों ने सहारा ग्रुप की कंपनियों के बॉन्ड खरीदे हैं, जो तय नियमों के खिलाफ हैं। ये बॉन्ड सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन की ओर से जारी किए गए थे, जिसका उन्होंने जांच कराने की मांग की थी।
चिट्ठी पर हंगामा होने के बाद नेशनल हाउसिंग बैंक ने इसे सेबी के पास भेजी दी, क्योंकि उसके पास इसके जांच का अधिकार नहीं था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, महीने भर बाद सेबी को इसी तरह की एक और चिट्ठी मिली। यह चिट्ठी अहमदाबाद के एक एडवोकेसी ग्रुप प्रोफेशनल ग्रुप फॉर इनवेस्ट प्रोटेक्शन की ओर से सेबी को भेजी गई थी। उसके बाद हरकत में आई सेबी ने मामले की जांच शुरू की।
सुप्रीम कोर्ट ने दी दखल
सेबी की तरफ से मामले की जांच शुरू होने पर 24 नवंबर, 2010 को सहारा ग्रुप के किसी भी रूप में लोगों से पैसा जुटाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसी बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप को 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से निवेशकों का पूरा पैसा वापस करने का आदेश जारी किया। आदेश के मुताबिक निवेशकों को वापस की जाने वाली रकम 24,029 करोड़ रुपए थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में अपना फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की सहारा की कंपनियों ने सेबी के नियमों का उल्लंघन किया है।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सहारा की कंपनियों ने निवेशकों का पैसा वापस नहीं किया। वहीं सहारा ग्रुप की तरफ से अपनी पॉलिसी को सही ठहराने का प्रयास भी किया गया। मीडिया में बड़े-बड़े विज्ञापन जारी कर निवेशकों को गुमराह करने का प्रयास भी हुआ। आदेश की अहवेलना पर सख्त रुख अख्तियार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत राय को जेल भेज दिया। सहारा प्रमुख सुब्रत राय करीब दो साल तक जेल में रहे और वर्ष 2017 से वह पेरोल पर थे। इस बीच सहारा ग्रुप की तरफ से यह दावा भी किया गया कि वह निवेशकों का पैसा लौटाना चाहती है, लेकिन उसकी रकम सेबी के पास फंसी है।
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