Sandeepa Dhar: अभिनेत्री संदीपा धर (Sandeepa Dhar) ने समाज में मासिक धर्म (Periods) और उससे जुड़ी स्वच्छता को लेकर एक ज़रूरी और साहसिक पहल करते हुए कहा है कि अब समय आ गया है जब हमें इस विषय पर खुले मन से बात करनी चाहिए।
संदीपा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मासिक धर्म जैसी सामान्य जैविक प्रक्रिया पर आज भी बहुत से लोगों को बात करने में झिझक होती है, जबकि देश के करोड़ों लड़कियाँ और महिलाएँ आज भी सुरक्षित सैनेटरी उत्पादों से वंचित हैं।
30 years back, my family was forced to run overnight from Srinagar, Kashmir. So we packed whatever we could in just 1 suitcase & fled.
And now, 30 years later we returned to whatever remains of our home. The empty house stands & What remains are the memories that we had made… pic.twitter.com/H6ZDG21X1S— Sandeepa Dhar (@IamSandeepaDhar) October 14, 2023
उन्होंने कहा, आइए माहवारी से जुड़ी बातचीत को सामान्य बनाएं। आइए ऐसे अभियानों को समर्थन दें जो महिलाओं को सैनेटरी उत्पाद उपलब्ध कराने का कार्य कर रहे हैं और मासिक धर्म से जुड़ी समानता (Menstrual Equity) की दिशा में काम कर रहे हैं।
एक छोटा-सा प्रयास भी बड़ा बदलाव ला सकता है, यह संदेश देते हुए संदीपा ने कहा कि एक पैकेट सैनेटरी नैपकिन और एक संवेदनशील बातचीत भी समाज में बड़ा फर्क पैदा कर सकती है। हम यह कर्ज़ चुकाने के लिए ज़िम्मेदार हैं- अपनी बहनों, बेटियों, दोस्तों और लाखों लड़कियों के लिए जो बेहतर सुविधाओं की हक़दार हैं।
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मासिक धर्म स्वच्छता की भयावह तस्वीर
संदीपा ने इस कड़वी सच्चाई की ओर भी इशारा किया कि आज भी भारत में लगभग 2.3 करोड़ लड़कियाँ हर साल स्कूल छोड़ने को मजबूर होती हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके स्कूलों में मासिक धर्म से जुड़ी बुनियादी सुविधाएँ नहीं होतीं।
आंकड़ों के अनुसार, देश में मात्र 36% महिलाएं ही सुरक्षित सैनेटरी उत्पादों का उपयोग कर पाती हैं। बाकी महिलाएं आज भी पुराने कपड़े, राख, या भूसे जैसे असुरक्षित विकल्पों का इस्तेमाल करती हैं, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकते हैं।
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माँ से मिली प्रेरणा को किया साझा
मदर्स डे (10 मई) के मौके पर संदीपा ने अपनी माँ को श्रद्धांजलि देते हुए बताया कि उनकी माँ ने कश्मीर छोड़ने के बाद ज़ीरो से जीवन की नई शुरुआत की। उन्होंने कहा, माँ के पास कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं था, न कोई जान-पहचान, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पापा के साथ मिलकर एक नया संसार खड़ा किया। उन्होंने हमारी परवरिश ऐसे की कि कभी उनकी परेशानियों का बोझ हम पर महसूस नहीं होने दिया। संदीपा ने यह भी कहा कि जो मूल्य उन्हें आज इंसान बनाते हैं, वो सब माँ से ही मिले हैं।
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माँ के साथ यात्रा करना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सुख है। उनका सेंस ऑफ ह्यूमर, नई चीज़ों को अपनाने का जज़्बा, और ‘कभी हार न मानो’ वाली सोच हर सफ़र को यादगार बना देती है।
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