नदी के घाट पर यदि सियासी लोग बस जाते, तो प्यासे होंठ दो बूंद पानी को तरस जाते।
गनीमत है की बादलों पर बस नहीं चलता, वरना सारे पानी उनके खेतों में बरस जाते।
नई दिल्ली। सच ही कहा गया है की राजनीति में न तो कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही कोई स्थाई दुश्मन। अवसरवाद की राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी सब हालात पर निर्भर करते हैं। राज्यसभा में आज आज जो कुछ भी हुआ यह सिर्फ एक बानगी है। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के रिटायर होने के मौके पर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी जमकर तारीफ की और उन्हें अपना मित्र बताया। इस दौरान पीएम मोदी ने गुलाम नबी आजाद के साथ फोन कॉल पर वर्षों पहले हुई बातचीत को याद कर रो पड़े।इतना ही नहीं जब गुलाम नबी आजाद ने अपना विदाई भाषण दिया तो वह भी इस फोन कॉल को याद कर भावुक हो गए और बहते आंसुओं के बीच पूरी कहानी सदन को सुनाई।
उन्होंने कहा कि सच बताएं तो मेरे माता-पिता की जब मौत हुई तो मेरे आंखों से आंसू निकले लेकिन मैं चिल्लाया नहीं। जब मैं चिल्लाया था तो वह थी संजय गांधी की मौत, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की मौत तथा चौथी बार जब 1999 में जब सुनामी आ गया था उड़ीसा में। उस समय आई सुनामी में समुद्र में हर तरफ लाशें उफना रही थीं। पांचवीं बार मैं तब चिल्लाकर रोया जब वह आतंकी हमला हुआ, जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री ने किया।’गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वर्ष 2005 में जब मैं कश्मीर का मुख्यमंत्री बना, तो उसका स्वागत मेरे गुजरात के भाइयों की मौत से हुआ। क्योंकि आतंकियों का स्वागत करने का तरीका यही था। गरीब-मासूम की हत्या करो। आतंकवादियों ने गुजरात की एक बस पर हमला किया था जिसमें कई लोग हताहत हो गए और कई घायल हुए।
लेकिन जब मैं एयरपोर्ट पर पहुंचा, तो सिक्योरिटी वाले कहते सुने गए कि सीएम आ रहे हैं, सीएम आ रहे हैं। इस आतंकी घटना में कई छोटे-छोटे बच्चे थे जिनके पिता मर गए थे, कुछ बच्चे अपनी माँ से बिछुड़ गए थे। वे बच्चे रोते-रोते मेरी टांगों से लिपट गए। उस समय मैं खुद को रोक नहीं पाया और जोर से रोया कि ऐ खुदा मैं क्या करूं। इन मासूम बच्चों को मैं लाशें दे रहा हूं इनके माता-पिता की। यह काफी असहनीय भावुक क्षण था। हम अल्लाह से यही फ़रियाद करते हैं कि इस देश से आतंकवाद खत्म हो जाए। आजाद ने बताया कि कभी ईद का त्योहार हो तो उन्हें कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के अलावा किसी का सबसे पहला फोन आता था तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। आजाद ने प्रधानमंत्री उदारता की तारीफ करते हुए कहा उन्होंने कभी भी सदन में हुई बहसा-बहसी का व्यक्तिगत तौर पर बुरा नहीं माना।
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