नई दिल्ली: देश में गहराते बिजली संकट के बीच अब केंद्र सरकार ने कमान संभाल ली है और जल्द ही इस समस्या से उबरने का भरोसा भी दिलाया है। बता दें कि कोयला संकट के चलते देश के कई राज्यों में विद्युत उत्पादन के प्लांट्स से उत्पादन प्रभावित हुआ है। मुंबई समेत दिल्ली आदि राज्यों में बिजली कटौती शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश में भी मंहगी बिजली के बावजूद भी उत्पादन प्रभावित हुआ है। वहीं दिल्ली आम आदमी पार्टी की सरकार हर बार की तरह इस बार भी बिजली संकट का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ने की कोशिश में लगी हुई है।
इस बीच केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि बिजली उत्पादकों (जेनको) की कोयले की मांग को पूरा करने का सरकार पूरा प्रयास कर रही है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में कोयला आपूर्ति 19.5 लाख टन प्रतिदिन है, जिसे बढ़ाकर 20 लाख टन रोजाना करने का प्रयास चल रहा है। उन्होंने कहा कि कोयला मंत्रालय में हम ईंधन की मांग को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। ज्ञात हो कि कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश के अधिकत्तर बिजली संयंत्र कोयला संकट से जूझ रहे हैं।
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बिजली संकट का प्रमुख कारण
बिजली आवश्यक आवश्यकताओं में से एक है। बिना बिजली के जीवन की कल्पना करना मुश्किल सा हो गया है। क्योंकि अस्पतालों में बिजली के बदौलत ही लोगों को जीवनदान मिल रहा है। सारी अधुनिक प्रणाली बिजली पर ही निर्भर करती हैं। ऐसा में अगर बिजली गुल होती है तो पूरी मानवता पर संकट आ जाएगा। वहीं इन सबके भी राजनीतिक पार्टियों की तरफ से बिजली पर जमकर राजनीति की जा रही है। फ्री बिजली देने के नाम पर सरकार बनाने का खेल शुरू हो गया है। राजनीतिक दलों की तरफ से सरकार बनने पर फ्री बिजली देने का आश्वासन दिया जा रहा है, लेकिन इसकी भरपाई कैसे होगी इसकी चिंता किसी का नहीं है।
ऐसे में इसका असर बिजली उत्पादन संयंत्रों पर पड़ता साफ देखा जा रहा है। अधिकत्तर बिजली उत्पादन संयंत्र कोयले की कमी और आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। पार्टियों के बिजली के नाम पर किए जा रहे राजनीति करण का असर ग्रामीण क्षेत्रों में देखा जा रहा है। क्योंकि ग्रामीण अंचलों की बिजली कटौती करके शहरों को रोशन करने का खेल काफी पुराना है। कहने को तो देश के हर गांव में बिजली पहुंच गई है, लेकिन इस बिजली से कितने गांव रोशन हुए हैं यह बड़ा सवाल है।
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