Kolkata Law College Rape: साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज में फर्स्ट ईयर की छात्रा के साथ हुए गैंगरेप मामले ने पूरे पश्चिम बंगाल को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन इस दर्दनाक घटना से ज्यादा अब कोलकाता पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। एफआईआर में आरोपियों के पूरे नाम की जगह सिर्फ “J”, “M” और “P” जैसे अक्षरों का जिक्र कर पुलिस ने संदेह की आग में घी डालने का काम किया है।
नाम क्यों छिपा रही है पुलिस
एफआईआर में आरोपियों के नाम के बजाय सिर्फ अक्षरों का इस्तेमाल किए जाने को लेकर विपक्ष ने तीखा हमला बोला है। विपक्षी दलों का कहना है कि जब आरोपी बालिग हैं, तो उनके नाम सार्वजनिक करने से परहेज़ क्यों किया जा रहा है? इससे यह आशंका गहराई है कि पुलिस किसी प्रभावशाली आरोपी को बचाने की कोशिश कर रही है।
पूर्व पुलिस अधिकारी का भी विरोध
कोलकाता के पूर्व डिप्टी पुलिस कमिश्नर सत्यजीत बनर्जी ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, मैंने चार दशक तक पुलिस सेवा में रहकर कई गंभीर मामलों की जांच की है, लेकिन एफआईआर में आरोपी के नाम नहीं होने का यह पहला मामला देखा है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन केवल पीड़िता की पहचान छिपाने को कहती है, आरोपी के नहीं। उन्होंने कहा कि एफआईआर में नाम, घटना का स्थान और समय स्पष्ट रूप से लिखा जाना कानूनी रूप से जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता, तो एफआईआर अधूरी मानी जाती है और इससे न्याय मिलने में बाधा आ सकती है।
विपक्ष का कड़ा रुख
भाजपा नेता सजल घोष ने तीखे शब्दों में कहा, ये साफ तौर पर पुलिस और अपराधियों की मिलीभगत का मामला है। नए भर्ती हुए सिपाही को भी पता होता है कि एफआईआर में नाम-पता साफ लिखा जाता है। यहां जानबूझकर ऐसा नहीं किया गया। वहीं, सीपीआईएम नेता शत्रुप घोष ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता आरोपी को पहचानता है, तो नाम न लिखना सिर्फ न्याय को कमजोर करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि कई केस में आरोपी केवल तकनीकी खामियों की वजह से बरी हो जाते हैं।
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आरजी कर केस के बाद फिर सवालों में पुलिस
गौरतलब है कि यह मामला उस समय सामने आया है जब आरजी कर मेडिकल कॉलेज रेप और मर्डर केस के बाद पुलिस पहले ही आलोचना झेल रही थी। अब कस्बा इलाके में दोबारा ऐसी लापरवाही ने पुलिस की छवि और भी धूमिल कर दी है। एक तरफ पीड़िता न्याय की आस में है, वहीं दूसरी ओर पुलिस की कार्यशैली उसे कमजोर करने का काम कर रही है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है—क्या पुलिस सच्चाई से नजरें चुरा रही है? क्या कानून सबके लिए बराबर है?
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