सड़कों पर लावारिस मौत, मरते जानवर,
घरों के अंदर हिंसा और अलगाव झेलते वृद्ध।
खत्म होते हुए गिद्ध और गिद्ध बनते आदमी,
अंधा कानून और कानून से अंधा बनाती सरकारें।
खत्म होते रिश्ते और पनपती हुई बीमारियां,
शिकारियों पर लगती पाबंदी और शिकार होती बेटियां।
उत्तेजना बेचते विज्ञापन और दम तोड़ती प्रतिभाएं,
कचरों में जलती किताबें और धड़ाधड़ बिकती तलवारें।
परिवारों में बढ़ रही दरारें, और खून से सनी हुई अखबारें,
ये और कुछ नहीं, नई सदी के सभ्य समाज की उपलब्धियां हैं।
– अनिल ठाकरे
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