काल चक्र चल रहा निरन्तर
हर पल कुछ हमसे कहता है।
सूक्ष्म दृष्टि का हो जो पारखी
भावी से सदा विज्ञ रहता है।।
जो भी आज प्रकट होता है
बोये पूर्व बीज का है फल।
कर्म तुम्हारे जो कुछ संचित
उनसे ही जीवन का है कल।।
सहज भाव से चलो निरन्तर
जागृत सतत साधना पथ हो।
कर्तव्य भाव से प्रेरित तन मन
ज्ञान विवेक धैर्य का रथ हो।।
प्रभु की परम कृपा के स्वामी
होगा परिपूर्ण संकल्प तुम्हारा।
जो ध्येय मार्ग का साधक राही
विपदाओं से भी कभी न हरा।।
– बृजेंद्र
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