Satya Prakash Tripathi
सत्य प्रकाश त्रिपाठी “गंभीर”

ये विकास है या कुछ और है!
ना तुझे पता, ना मुझे पता।
क्या दलित होना गुनाह है!
ना तुझे पता, ना मुझे पता।

इक कोठरी में कई लोग हैं,
वर्षों से दुख रहे भोग हैं!
कई लाल हैं, कई वृद्ध है,
योजनाएं इनके लिए रोग हैं।
कब ढह जाए ये कब मर जाएं!
ना तुझे पता, ना मुझे पता।

कुछ बेवा हैं, कुछ अनाथ हैं,
कुछ जिंदगी से उदास हैं!
कुछ बेबसी से लाचार हैं,
कुछ पाले हुए अभी आस हैं।
क्या रहनुमा कोई आयेगा!
ना तुझे पता, ना मुझे पता।

ये राजनीति के वोट हैं,
वादों से भरे खाली पेट हैं!
कल के लिए नहीं जीते ये,
बस आज के ही ये रेट हैं।
इनके लिए कल हो ना हो!
ना तुझे पता, ना मुझे पता।

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