Shyam Kumar
श्याम कुमार

आ लौट चलें
एक दिन नाचते-नाचते
पता लगा
यह जो यहां आता है,
कुछ सकुचाता, कुछ घबराता है,
वह राजकुमार है,
लुटेरे वंश की गद्दी का
अकेला हकदार है।

दिमाग खिल उठा,
दिल मचल उठा।
बड़े प्यार से प्याला भरकर
ठर्रा पिलाया,
आंखों में आंखें डालकर
रूमानी रिश्ता बनाया,

उसने भी रिश्ता निभाया,
अपनी सारी लूट का
पक्का राजदार बनाया।

दोनों बेशुमार दौलत में
खेलने लगे,
जिंदगी का हर सुख
दामन में समेटने लगे।
एक-दूसरे पर
जान छिड़कने लगे,
दोनों के दिल साथ
धड़कने लगे,

तभी
एक दिन अचानक
भूचाल आया,
सारा का सारा ढांचा
भरभराया।
मौसम बदल गया,
दमखम निकल गया।

रातों की नींद
उड़ जाने लगी,
तिहाड़ की दीवार
नजर आने लगी।

अब रास नहीं आ रहा है,
ये ठिकाना,
याद आ रहा है
घोंसला पुराना।

‘श्याम’ चलकर
उस घोंसले को
आबाद करें,
नए-नए षड्यंत्र
ईजाद करें,
दुश्मन का आशियाना
बरबाद करें।

अपनी जिंदगी में
नई उमंगें भरें,
मशीनों से
लूटी हुई दौलतें गिनें,
छिपाने को
नए अड्डे चुनें।

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