मन्दिर एक बनाओ मिलकर,
जो होवे सबका हितकारी।
श्रम साधना परिश्रम सबका,
जुटें सभी ज्यों हों परिवारी।।

एक जलाशय को जीवन दो,
वर्षा जल बहकर उसमें आये।
भूजल का स्तर बढे सहज ही,
स्वच्छता उसे पवित्र बनाए।।

एक ग्राम वन लगे गांव में,
हरियाली का जो आगर हो।
औषधीय फल फूल बृक्ष हों,
जैव विविधता का सागर हो।।

कहीं एक बजरंग वाटिका,
मिलकर एक लगाओ आगे।
सब जीवों को आहार सदा,
जहां मानवीय चेतना जागे।।

गौ पालन रक्षण संरक्षण हो,
सहजन वन कहीं लगाओ।
गौ पोषण हित हरा है चारा,
भोजन मैं पौष्टिकता लाओ।।

हरिशंकरी तो जहां लगेगी,
जल कलश एक वन जायेगा।
सबको छाया प्राण वायु दे,
जैव विविधता स्वयं वचायेगा।।

तुम चाहो हर घर पेड लगाओ,
फल और फूल जिससे मिलते।
गृह वाटिका लगाओ घर घर में,
जहं मन के फूल स्वतः खिलते।।

तुम जो भी करो समर्पित मन से,
वह शुभ मन्दिर ही बन जायोगा।
जो ह्रदयों का नित संताप हरेगा
राम राज्य का शुभ युग आयेगा।।

-बृजेन्द्र पाल सिंह

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