Shyam Kumar
श्याम कुमार

क्या कहा भइया?
हम नादान हैं, भोले हैं,
दिमाग से पोले हैं।
आज कागज फाड़ रहे हैं,
कल कपड़े फाड़ेंगे।

लेकिन भइया!
सच तो यह है कि तुम नादान हो,
बिलकुल पीकदान हो।
तुम नहीं समझ पाये
हमारी अंडरग्राउण्ड राजनीति,
भइया, यह तो है हमारी
खानदानी रीति।

हम मीठी खुजली वाले दाद हैं,
फाड़न-कला के उस्ताद हैं।
याद करो,
वो हमीं हैं, जिसने
देश को दो हिस्सों में फाड़ा,
जहर घोलकर,
समाज को
अनगिनत जमातों में फाड़ा।
इमरजेन्सी के फरसे से
लोकतन्त्र के ढांचे को फाड़ा।
अंग्रेजों के रंग में रंगकर
देश की संस्कृति और
सभ्यता को फाड़ा।

कहां तक गिनाएं?
कहां तक बताएं?
भइया,
गहरे राज को परखो,
बांह चढ़ाने के अंदाज को समझो।
हमारे गुस्से को देखो,
तमतमाए चेहरे को देखो।
हमारी गारण्टी है
आज हम सिर्फ
कागज फाड़ रहे हैं,
कल देश का सम्पूर्ण
भविष्य फाड़ेंगे।

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