Pauranik Katha: महिषासुर ब्रह्म ऋषि कश्यप और दनु का पौत्र (पोता) और असुरों के राजा रम्भ का पुत्र था। महिषासुर के पिता रंभ, असुरों के राजा थे। एक बार असुरों के राजा रंभ को एक अप्सरा महिषी से प्रेम हुआ, उसने उससे विवाह किया। महिषी को एक भैंस बनने का श्राप था। इसलिए जब रंभ और महिषी के संयोग पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसका नाम महिषासुर पड़ा (महिष अर्थात भैंस, भैंसे जैसा असुर)।

महिषासुर को अपने माता-पिता से कई शक्तियाँ प्राप्त हुईं। उसके पास एक खास शक्ति थी जिससे वह कभी भी इंसान से भैंसा या भैंसे से इंसान बन सकता था (आप उसे इच्छा धारी भैंसा भी कह सकते हैं)। महिषासुर बड़ा होकर अत्यंत शक्तिशाली असुर बना और असुरों का राजा भी बन गया। अब वह न केवल पाताल लोक में, अपितु स्वर्ग लोक सहित तीनों लोक का राजा बनना चाहता था। लेकिन इंद्र देव का सामना करना उसके लिए उतना भी सरल नहीं था, देवता अत्यंत शक्तिशाली थे।

महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था। देवताओं से अधिक शक्तिशाली बनने के लिए महिषासुर ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। जब ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने अमृत्व (अमर होने) का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने उससे कहा कि यह वरदान देना संभव नहीं क्योंकि अमृत्व का वरदान बहुत विशेष परिस्थितियों में और विशेष विभूतियों को दिया जाता है। जब ब्रह्मा जी ने महिषासुर को अन्य वरदान मांगने को कहा तो महिषासुर ने कहा- प्रभु फिर मुझे ऐसा वरदान दीजिये कि कोई भी देव अथवा पुरुष मेरा वध न कर सकें। इसने सोचा स्त्री तो वैसे भी मुझ पर विजय नही प्राप्त कर सकती। देव और पुरुष मुझे मार नहीं सकते तो मैं अमर हो ही गया समझो।

महिषासुर ने ब्रह्मा जी से कई और शक्तियाँ भी प्राप्त की और बहुत अधिक शक्तिशाली हो गया। ब्रह्मा जी भी तथास्तु कहकर वहाँ से चले गए। बस अब क्या था, महिषासुर वरदान पाकर बहुत अहंकारी हो गया। अब उसने अपनी असुर सेना के साथ देव लोक अर्थात स्वर्ग की चढ़ाई कर दी। पूरी तैयारी के साथ महिषासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। स्वर्ग के राजा देवराज इन्द्र इस युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार न थे। इन्द्र ने अपना वज्र चलाया, लेकिन महिषासुर तब तक बहुत शक्तिशाली हो चुका था। नतीजा यह रहा कि असुरों की विशाल सेना ने देवताओं की सेना को हरा दिया और देवताओं को स्वर्ग खाली करके वहाँ से भागना पड़ा।

महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया, जिसने भी उसका विरोध किया, उसकी हत्या हुई। महिषासुर ने कई स्त्रियों पर भी अत्याचार किया। अब देवताओं के पास त्रिदेव से सहायता लेने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा था। ब्रह्मा जी तो अपने भक्त महिषासुर को नहीं मारते, अब देवता भगवान विष्णु की शरण में चले गए। नारायण देवताओं को अपने साथ कैलाश ले गए, क्योंकि भगवान शिव ही हैं जिनकी भक्ति देवता और असुर दोनों करते हैं। कहा जाता है विष्णु जी ने महिषासुर से युद्ध करके उसे हरा दिया था लेकिन ब्रह्म देव के वरदान का मान रखने के लिए उन्होंने महिषासुर को जीवित छोड़ दिया।

अब केवल महादेव ही थे जिन्हें अगर क्रोध आजाए तो वे ब्रह्मा जी के वरदान के बारे में न सोचते हुए महिषासुर का वध कर देते। देवताओं को महादेव से उम्मीद थीं, लेकिन उन्होंने महिषासुर का वध करने से मना कर दिया। अब ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी, तीनों महिषासुर का वध करने से मना कर चुके थे। देवता बहुत दुखी हुए और कैलाश से पृथ्वी की और चले गए। ऐसी कथा आती है देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करते देख भगवान विष्णु और भगवान शिव अत्यधिक क्रोध से भर गए। इसी समय ब्रह्मा, विष्णु और शिव के मुंह से क्रोध के कारण एक महान तेज प्रकट हुआ। अन्य देवताओं के शरीर से भी एक तेजोमय शक्ति मिलकर उस तेज से एकाकार हो गई। यह तेजोमय शक्ति एक पहाड़ के समान थी। उसकी ज्वालायें दसों-दिशाओं में व्याप्त होने लगीं। यह तेजपुंज सभी देवताओं के शरीर से प्रकट होने के कारण एक अलग ही स्वरूप लिए हुए था।

इन देवी की उत्पत्ति महिषासुर के अंत के लिए हुई थी, इसलिए इन्हें ‘महिषासुर मर्दिनी’ कहा गया। समस्त देवताओं के तेज पुंज से प्रकट हुई देवी को देखकर, पीड़ित देवताओं की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। भगवान शिव ने सर्वप्रथम अपना त्रिशूल देवी को दिया। भगवान विष्णु ने भी अपना चक्र देवी को प्रदान किया। इसी प्रकार, सभी देवी-देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिये। इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा देवी को दिया। सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल, तलवार और दिव्य सिंह यानि शेर को सवारी के लिए उस देवी को अर्पित कर दिया। विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े-छोटे अस्त्रों से शोभित किया।

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान भोलेनाथ शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती जी को इस बारे में बताया। महादेव के हाथों महिषासुर का वध ब्रह्मा जी के वरदान के विरुद्ध होता, ब्रह्मा जी का अपमान होता, लेकिन महादेवी (पार्वती जी) के हाथों महिषासुर का वध से वरदान का अपमान नहीं होता। वह तो स्त्रीरूप हैं अब गौरी माता ही इस संकट का समाधान निकाल सकती थीं। देवतओं की दशा देख माँ जगतजननी जगदम्बा भवानी इतने क्रोध में आ गयी उनके शरीर से ज्वाला मुखी जैसा तेज निकलने लगा और देखते देखते वह अष्टभुजा वाली (माँ दुर्गा) बन सिंह पर सवार हो गयी। आदि शक्ति (माँ दुर्गा) को सभी देवताओं ने अपने शस्त्र दिए, स्वयं महादेव ने उन्हें त्रिशूल दिया, महादेव द्वारा महिषासुर का वध नियम विरुद्ध होता, लेकिन ऐसा तो बिल्कुल नहीं था कि महादेव के त्रिशूल द्वारा महिषासुर का वध नियम विरुद्ध हो। अब पार्वती जी ने कैलाश से प्रस्थान किया।

अचानक असुर वहाँ आ गए। उन्होंने महिषासुर को पार्वती जी (माँ दुर्गा) के बारे में बताया। थोड़ी देर बाद महिषासुर ने देखा कि एक विशालकाय रूपवान स्त्री अनेक भुजाओं वालीं और अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर शेर पर बैठकर अट्टहास कर रही है। महिषासुर वहाँ आया और जैसे ही उसने माता पार्वती (माँ दुर्गा) को निकट से देखा तो उनकी सुंदरता को देख वह कामवासना से भर गया। उसने पार्वती जी (माँ दुर्गा) से कहा- हे सुंदर स्त्री! तुम्हे देखने के पश्चात मैंने तुमसे विवाह करने का मन बना लिया है, मैं असुरों का राजा महिषासुर तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा और तुम असुरों की रानी बन जाओगी। तुम्हारे जितनी सुंदर स्त्री मैंने आज से पहले कभी नहीं देखी, महादेव को छोड़कर तुम मेरी पत्नी क्यों नहीं बन जाती?

इस असभ्य असुर की बात सुनकर पार्वती जी (माँ दुर्गा) अत्यंत क्रोधित हो गई। माता रानी ने कहा- हे अहंकारी असुर! कामवासना से तेरी मति मारी गई है। तुमने स्त्रियों पर भी अत्याचार किया, देवताओं से स्वर्ग लोक छीन लिया और तुम्हारे अहंकार बढ़ता ही चला गया। अब तुम्हारा अंत निकट है। माता की बात सुनकर महिषासुर हँसा और बोला कि मुझे वरदान प्राप्त है कोई पुरुष मेरा वध नहीं कर सकता। एक स्त्री में इतना बल नहीं की मेरा वध कर सके। मैं अमर हूँ। यह कहकर महिषासुर माता पार्वती (माँ दुर्गा) के पास आ गया। माता रानी ने प्रचंड दुर्गा रूप धारण कर लिया और महिषासुर की सेना पर आक्रमण कर दिया।

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महिषासुर की सेना का सेनापति आगे बढ़कर देवी के साथ युद्ध करने लगा। उदग्र नामक महादैत्य भी 60 हजार राक्षसों को लेकर इस युद्ध में कूद पड़ा। महानु नामक दैत्य एक करोड़ सैनिकों के साथ, अशीलोमा दैत्य पांच करोड़ और वास्कल नामक राक्षस 60 लाख सैनिकों के साथ युद्ध में कूद पड़े। सारे देवता इस महायुद्ध को बड़े कौतूहल से देख रहे थे। दानवों के सभी अचूक अस्त्र-शस्त्र देवी के सामने बौने साबित हो रहे थे, लेकिन देवी भगवती अपने शस्त्रों से राक्षसों की सेना को बींधने बनाने लगीं। नौ दिन तक माता पार्वती जो दुर्गा बन चुकी थीं, उन्होंने असुर सेना का विनाश किया और 10वें दिन महिषासुर से युद्ध किया और जब महिषासुर हार के डर से भैंसा बनकर माता को छलने की कोशिश करने लगा तो माता रानी के शेर ने उस पर प्रहार किया। आखिरकार दुर्गा माता ने अपने त्रिशूल से महिषासुर का वध कर दिया।

इस युद्ध में महिषासुर का वध तो हो ही गया, साथ में अनेक अन्य दैत्य भी मारे गए। इन सभी ने तीनों लोकों में आतंक फैला रखा था। सभी देवी-देवताओं ने प्रसन्न होकर आकाश से फूलों की वर्षा की। इसी दिन को हम विजय दशमी के रूप में मनाते हैं। यह बुराई पर अच्छाई की जीत थी। इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का भी वध किया था।

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