Pauranik Katha: गरुड़ भगवान के बारे में सभी जानते होंगे। यह भगवान विष्णु का वाहन हैं। भगवान गरुड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है। गरुड़ को हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण पक्षी माना गया है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गरुड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख वाला) कहा गया है। जातक कथाओं में भी गरुड़ के बारे में कई कहानियां हैं।
माना जाता है कि गरुड़ की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश और व्यक्तियों को इधर से उधर ले जाना होता था। कहते हैं कि यह इतना विशालकाय पक्षी होता था जो कि अपनी चोंच से हाथी को उठाकर उड़ जाता था। गरुड़ जैसे ही दो पक्षी रामायण काल में भी थे जिन्हें जटायु और सम्पाती कहा जाता था। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में विचरण करते रहते थे। इनके लिए दूरियों का कोई महत्व नहीं था। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे, इसीलिए यहां एक मंदिर है।
पक्षियों में गरुड़ को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। यह समझदार और बुद्धिमान होने के साथ-साथ तेज गति से उड़ने की क्षमता रखता है। गिद्ध और गरुड़ में फर्क होता है। संपूर्ण भारत में गरुड़ का ज्यादा प्रचार और प्रसार किसलिए है यह जानना जरूरी है। गरुड़ के बारे में पुराणों में अनेक कथाएं मिलती है। रामायण में तो गरुड़ सबसे महत्वपूर्ण पात्र है।
पक्षी तीर्थ: चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर एक तीर्थस्थल है जिसे ‘पक्षी तीर्थ’ कहा जाता है। यह तीर्थस्थल वेदगिरि पर्वत के ऊपर है। कई सदियों से दोपहर के वक्त गरुड़ का जोड़ा सुदूर आकाश से उतर आता है और फिर मंदिर के पुजारी द्वारा दिए गए प्रसाद को ग्रहण करके आकाश में लौट जाता है। सैकड़ों लोग उनका दर्शन करने के लिए वहां पहले से ही उपस्थित रहते हैं। वहां के पुजारी के मुताबिक सतयुग में ब्रह्मा के 8 मानसपुत्र शिव के शाप से गरुड़ बन गए थे। उनमें से 2 सतयुग के अंत में, 2 त्रेता के अंत में, 2 द्वापर के अंत में शाप से मुक्त हो चुके हैं। कहा जाता है कि अब जो 2 बचे हैं, वे कलयुग के अंत में मुक्त होंगे।
गरुड़ हैं देव पक्षी: गरुड़ का जन्म सतयुग में हुआ था, लेकिन वे त्रेता और द्वापर में भी देखे गए थे। दक्ष प्रजापति की विनिता या विनता नामक कन्या का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ। विनिता ने प्रसव के दौरान दो अंडे दिए। एक से अरुण का और दूसरे से गरुढ़ का जन्म हुआ। अरुण तो सूर्य के रथ के सारथी बन गए तो गरुड़ ने भगवान विष्णु का वाहन होना स्वीकार किया। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मंडल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लंबी उड़ान भरी। सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर जटायु तो बीच से लौट आए, किंतु सम्पाती उड़ते ही गए। सूर्य के निकट पहुंचने पर सूर्य के ताप से सम्पाती के पंख जल गए और वे समुद्र तट पर गिरकर चेतनाशून्य हो गए। चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्री सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया।
सतयुग में देवताओं से युद्ध
पुराणों में भगवान गरुड़ के पराक्रम के बारे में कई कथाओं का वर्णन मिलता है। कहते हैं कि उन्होंने देवताओं से युद्ध करके उनसे अमृत कलश छीन लिया था। दरअस्ल, ऋषि कश्यप की कई पत्नियां थीं जिनमें से दो वनिता और कद्रू थी। ये दोनों ही बहने थी, जो एक दूसरे से ईर्ष्या रखती थी। दोनों के पुत्र नहीं थे तो पति कश्यप ने दोनों को पुत्र के लिए वरदान दे दिया। वनिता ने दो बलशाली पुत्र मांगे जबकि कद्रू ने हजार सर्प पुत्र रूप में मांगे जो कि अंडे के रूप में जन्म लेने वाले थे। सर्प होने के कारण कद्रू के हजार बेटे अंडे से उत्पन्न हुए और अपनी मां के कहे अनुसार काम करने लगे।
दोनों बहनों में शर्त लग गई थी कि जिसके पुत्र बलशाली होंगे हारने वाले को उसकी दासता स्वीकार करनी होगी। इधर सर्प ने तो जन्म ले लिया था लेकिन वनिता के अंडों से अभी कोई पुत्र नहीं निकला था। इसी जल्दबाजी में वनिता ने एक अंडे को पकने से पहले ही फोड़ दिया। अंडे से अर्धविकसित बच्चा निकला जिसका ऊपर का शरीर तो इंसानों जैसा था लेकिन नीचे का शरीर अर्धपक्व था। इसका नाम अरुण था।
अरुण ने अपनी मां से कहा कि ‘पिता के कहने के बाद भी आपने धैर्य खो दिया और मेरे शरीर का विस्तार नहीं होने दिया। इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आपको अपना जीवन एक सेवक के तौर पर बिताना होगा। अगर दूसरे अंडे में से निकला उनका पुत्र उन्हें इस श्राप से मुक्त ना करवा सका तो वह आजीवन दासी बनकर रहेंगी।’ भय से विनता ने दूसरा अंडा नहीं फोड़ा और पुत्र के शाप देने के कारण शर्त हार गई और अपनी छोटी बहन की दासी बनकर रहने लगी।
बहुत लंबे काल के बाद दूसरा अंडा फूटा और उसमें से विशालकाय गरुड़ निकाला जिसका मुख पक्षी की तरह और बाकी शरीर इंसानों की तरह था। हालांकि उनकी पसलियों से जुड़े उनके विशालकाय पंख भी थे। जब गरुड़ को यह पता चला कि उनकी माता तो उनकी ही बहन की दासी है और क्यों है यह भी पता चला, तो उन्होंने अपनी मौसी और सर्पों से इस दासत्व से मुक्ति के लिए शर्त पूछी। सर्पों ने विनता की दासता की मुक्ति के लिए अमृत मंथन से निकला अमृत मांग। अमृत लेने के लिए गरुड़ स्वर्ग लोक की तरफ तुरंत निकल पड़े। देवताओं ने अमृत की सुरक्षा के लिए तीन चरणों की सुरक्षा कर रखी थी, पहले चरण में आग की बड़े परदे बिछा ररखे थे। दूसरे में घातक हथियारों की आपस में घर्षण करती दीवार थी और अंत में दो विषैले सर्पों का पहरा।
वहां तक भी पहुंचाने से पहले देवताओं से मुकाबला करना था। गरुड़ सब से भीड़ गए और देवताओं को बिखेर दिया। तब गरुड़ ने कई नदियों का जल मुख में ले पहले चरण की आग को बुझा दिया, अगले पथ में गरुड़ ने अपना रूप इतना छोटा कर लिया के कोई भी हथियार उनका कुछ न बिगाड़ सका और सांपों को अपने दोनों पंजों में पकड़कर उन्होंने अपने मुंह से अमृत कलश उठा लिया और धरती की ओर चल पड़े। लेकिन तभी रास्ते में भगवान विष्णु प्रकट हुए और गरुड़ के मुंह में अमृत कलश होने के बाद भी उसके प्रति मन में लालच न होने से खुश होकर गरुड़ को वरदान दिया की वो आजीवन अमर हो जाएंगे। तब गरुड़ ने भी भगवान को एक वरदान मांगने के लिए बोला तो भगवान ने उन्हें अपनी सवारी बनने का वरदान मांगा। इंद्र ने भी गरुड़ को वरदान दिया कि वो सांपों को भोजन रूप में खा सकेगा इस पर गरुड़ ने भी अमृत सकुशल वापसी का वादा किया।
अंत में गरुड़ ने सर्पों को अमृत सौंप दिया और भूमि पर रख कर कहा कि यह रहा अमृत कलश। मैंने यहां इसे लाने का अपना वादा पूरा किया और अब यह आपके सुपूर्द हुआ, लेकिन इसे पीने से पहले आप सभी स्नान करें तो अच्छा होगा। जब वे सभी सर्प स्नान करने गए तभी वहां अचानक से भगवान इंद्र पहुंचे और अमृत कलश को वापस ले गए। लेकिन कुछ बूंदे भूमि पर गिर गई जो घास पर ठहर गई थी। सर्प उन बूंदों पर झपट पड़े, लेकिन उनके हाथ कुछ न लगा। इस तरह गरुड़ की शर्त भी पूरी हो गई और सर्पों को अमृत भी नहीं मिला।
गरुड़ घंटी का महत्व: मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। यह घंटे या घंटियां 4 प्रकार की होती हैं:- 1. गरुड़ घंटी, 2. द्वार घंटी, 3. हाथ घंटी और 4.घंटा।
1. गरुड़ घंटी: गरुड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।
2. द्वार घंटी: यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है।
3. हाथ घंटी: पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
4. घंटा: यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है।
हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख घरों में आपको गरुड़ घंटी मिल जाएगी। हिन्दू और जैन घरों में तो यह विशेष तौर पर गरुड़ के आकार की ही होती है। छोटी और बड़ी सभी आकार की यह घंटी मिल जाएगी।
गरुड़ ध्वज: महाभारत में गरुड़ ध्वज था। प्राचीन मंदिरों के द्वार पर एक ओर गरुड़, तो दूसरी ओर हनुमानजी की मूर्ति आवेष्ठित की जाती रही है। घर में रखे मंदिर में गरुड़ घंटी और मंदिर के शिखर पर गरुड़ ध्वज होता है। गरुड़ भारत का धार्मिक और अमेरिका का राष्ट्रीय पक्षी है। भारत के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में जाना जाने वाले गुप्त शासकों का प्रतीक चिन्ह गरुड़ ही था। कर्नाटक के होयसल शासकों का भी प्रतीक गरुड़ था। गरुड़ इंडोनेशिया, थाईलैंड और मंगोलिया आदि में भी सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में लोकप्रिय है। इंडोनेसिया का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ है। वहां की राष्ट्रीय एयरलाइन्स का नाम भी गरुड़ है। इंडोनेशिया की सेनाएं संयुक्त राष्ट्र मिशन पर गरुड़ नाम से जाती है। इंडोनेशिया पहले एक हिन्दू राष्ट्र ही था। थाईलैंड का शाही परिवार भी प्रतीक के रूप में गरुड़ का प्रयोग करता है। थाईलैंड के कई बौद्ध मंदिर में गरुड़ की मूर्तियाँ और चित्र बने हैं। मंगोलिया की राजधानी उलनबटोर का प्रतीक गरुड़ है।
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गरुड़ पुराण: गरुड़ नाम से एक व्रत भी है। गरुड़ नाम से एक पुराण भी है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। हिन्दू धर्मानुसार जब किसी के घर में किसी की मौत हो जाती है तो गरुड़ पुराण का पाठ रखा जाता है। गरुड़ पुराण में उन्नीस हजार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं। गरुड़ पुराण में ज्ञान, धर्म, नीति, रहस्य, व्यावहारिक जीवन, आत्म, स्वर्ग, नर्क और अन्य लोकों का वर्णन मिलता है। इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों में सर्व साधारणको प्रवृत्त करने के लिए अनेक लौकिक और पारलौकिक फलों का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयों के वर्णनके साथ मृत जीव के अन्तिम समय में किए जाने वाले कृत्यों का विस्तार से निरूपण किया गया है।
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