Pauranik Katha: हिडिम्बा पांडव कुल की सबसे पहले बनने वाली वधू बनी थी। लाक्षागृह यानी लाह के बने घर को जब दुर्योधन एवं मामा शकुनि की योजना के अनुसार, जलाया गया तब पांचों पांडव अपनी माता कुंती समेत उसी भवन में थे। इन सभी की हत्या करने हेतु ऐसा किया गया था। अपने सामर्थ्य एवं दैविक कृपा से वो वहां से बच निकले और भेष बदल कर रहने लगे। इसी क्रम में वे एक जंगल में पहुँच गए। रात अंधेरी थी और जंगल घना था। जमीन पर बड़े बड़े झाड़ उगे थे, जिसके कारण चलना मुश्किल हो गया था। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने भीम से उन सभी को ले जाने का अनुरोध किया। भीम ने अपने शक्ति का परिचय देते हुए अपनी माता सहित अपने चारों भाइयों को उठा कर चलना प्रारम्भ किया।
हिडिम्ब के राज्य में पांडव पुत्र
जब वे वन में ऐसे स्थान पर पहुंच गए जहां धरती समतल और कोमल घासों से ढकी थी। तब वहां भीम ने सबको धरती पर उतारा, और सब भाइयों ने मिल कर सोने के लिए व्यवस्था की। पांचों भाई, बारी बारी जग कर अपने सोते हुए परिवार की रक्षा करते थे। इस बार भीम की बारी थी। वह जंगल अपने वृक्ष, चट्टानों सहित काली शक्तियों के प्रभाव के कारण मायावी था, तथा एक शक्तिशाली एवं मायावी राक्षस हिडिम्ब का राज्य था। जंगल मे आने वाला कोई भी मानव इस मायावी स्थान से निकल नहीं पाता था, अपितु राक्षसों का आहार बन जाता था। इन राक्षसों की घ्राण शक्ति यानी सूंघने की शक्ति बड़ी तेज थी। जंगल में मानव के प्रवेश को तुरंत भांप लेते थे।
जब राक्षस राज हिडिम्ब को इन मनुष्यों के आने का पता चला तो वह मानव मांस खाने के लिए लालायित हो उठा। उसने अपनी बहन हिडिम्बा को उन मनुष्यों को उसके सामने प्रस्तुत करने का आदेश दिया। हिडिम्बा पांडवों के समीप जा पहुँची, भीम को देख हिडिम्बा मोहित हो गई। वे सोचने लगी एक शक्तिशाली पुरुष जिसका हृदय इतना कोमल है कि अपने परिवार को सुरक्षा प्रदान कर रहा है, उस से अच्छा जीवन साथी और कौन हो सकता है। मैं धन्य हूँ यदि वह मेरे पति बने। फिर उसे अपने क्रूर भाई की आज्ञा का स्मरण हुआ। देवी हिडिम्बा ने अपनी मायावी शक्तियों से स्वयं को एक सुंदर युवती में बदल लिया और भीम के पास गईं। पहले जंगल में भटकी हुई युवती के भांति अनेक प्रकार की बातें कहीं, फिर जब भीम ने उन्हें रक्षण देने की बात कही, तब वो वहीं पर बैठ गयीं।
हालांकि, आराम कर रहे अर्जुन एवं युधिष्ठिर को देवी हिडिम्बा पर धीरे धीरे संदेह भी होने लगा था। परंतु, उन्होंने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सोए रहने का स्वांग किया। आसपास क्या हो रहा है इस पर चुपचाप ध्यान दे रहे थे। इधर, देवी हिडिम्बा से भी यह सच छुप नहीं रहा था, तब उन्होंने भीम को बता दिया कि, मुझे मेरे भाई राक्षस राज हिडिम्ब ने आप सभी को भ्रमित कर उस तक पहुंचाने के लिए प्रतिनियुक्त किया है। परन्तु आपको देखकर मैं आपसे प्रेम करने लगी हूँ। मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं। मैं आप सभी को यहां से बाहर निकलने का रास्ता बता देती हूँ। मेरा भाई हिडिम्ब बहुत ही पराक्रमी, मायावी और क्रूर है, उसके आने से पहले आप लोग सुरक्षित स्थान पर चलिए।
भीम ने उत्तर देते हुए कहा, देवी! मैं आपको नहीं जानता, परंतु आपको इतना बता दूँ, कि हम पांचों भाई, क्षमता में किसी से कम नही हैं। मैं वृकोदर किसी भी राक्षस को समाप्त करने में सक्षम हूँ। इसलिए मुझे इनकी निद्रा भंग करने की आवश्यकता नहीं है। अब ध्यान से उन महान मनुष्य को देखिए, वे धर्मराज मेरे बड़े भाई हैं। उनकी अभी शादी नहीं हुई है। मैं अभी किस प्रकार विवाह कर सकता हूं?
चर्चा चल ही रही थी कि, राक्षस राज हिडिम्ब वहां पहुंच गया, अपनी बहन को ऐसे विभूषित देख, वह क्रोध से भर गया। अपनी बहन और सभी पांडवों को मृत्यु दंड देने का निर्णय लिया। दूर से ही अपने भाई के घातक रूप को देख देवी हिडिम्बा भयभीत हो गईं और भीम को अपने परिवार को जगा कर सुरक्षित स्थान पर ले भागने को कहा। परंतु वे कह भी किस से रहीं थी महाबली भीम से, जिन्हें राक्षसों और जानवरों से लड़ना पसंद था।
भीम ने हिडिम्बा से कहा, यह याचना अनुचित है मैं पीठ दिखा कर भागने वालों में से नहीं, ना ही ऐसे राक्षस की उदंडता के लिए अपने परिवार की निद्रा भंग करूँगा। युधिष्ठिर एवं अर्जुन सतर्क हो सब सुन रहे थे, परंतु सोए मनुष्य के भांति स्थिर थे। भीम ने क्षण भर में हिडिम्ब को पकड़ कर घसीटते हुए दूर स्थान पर ले गए। यह देख युधिष्ठिर एवं अर्जुन उठने का स्वांग करने लगे। उन्हें जागता देख, हिडिम्बा ने विनम्रता से पांडवों को सब बताया। बाकी सब हिडिम्बा की बात सुन रहे थे, परंतु युधिष्ठिर एवं अर्जुन का पूरा ध्यान भीम पर था। अर्जुन ने भीम से चिल्ला कर कहा, भ्राता भीम! इस राक्षस का वध अतिशीघ्र कीजिए। यह सुन भीम ने घातक प्रहार से हिडिम्ब की पीठ के टुकड़े–टुकड़े कर दिए।
हिडिम्ब का वध होते ही सारे राक्षस, भीम के सामने घुटने टेक बैठ गए, और उन्हें अपना राजा मान लिया। तभी भीम ने कहा, मैं तुम्हारा राजा कैसे हो सकता हूँ, तुम राक्षस हो और मैं मनुष्य हूँ। तब उनके मंत्री ने कहा, हे राजन! हमारे यहां परंपरा है, कि जो हमारे राजा को मारता है, वही अगला राजा बनता है। एक शक्तिशाली राजा ही, अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान कर सकता है। और प्रभु! आप तो राक्षस राज हिडिम्ब से भी अत्याधिक शक्तिशाली हैं। यह सुनकर भीम ने कहा, परंतु मैं आपका राजा नहीं बन सकता तब फिर से हाथ जोड़कर उनके मंत्री ने कहा, राजन! ऐसा न कहें, बिना राजा के प्रजा अनाथ हो जाती है। जंगल राज हो जाता है। इन सब बातों को सुन कर, धर्मराज युधिष्ठिर ने विचार करने हेतु समय मांगा।
तभी वहां देवी हिडिम्बा आकर, पांडु पुत्र भीम से कहती हैं, हे राजन! कृपया कर मेरे प्रेम को स्वीकार करें, मुझे अपनी पत्नी बनने का सौभाग्य दें। इस पर भीम ने कहा, ऐसा कैसे हो सकता है तुम राक्षस कुल की हो, मैं मनुष्य हूं। मेरे समाज में क्या तुम्हें वांछित स्थान मिल पाएगा। तब देवी हिडिंबा ने कहा, मुझे आपके समाज की स्वीकृति की इच्छा नहीं है, अपितु आपके स्वीकृति की इच्छा है। आप यहां का राजा बन, मुझसे विवाह कर, एक वर्ष तक मेरे साथ रहें। जब मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाएगी, आप यहां से प्रस्थान कर सकते हैं। हम मायावी जाती हैं, मेरा पुत्र, जन्म के कुछ समय बाद ही युवावस्था को प्राप्त हो जाएगा। तब आप यहां से प्रस्थान कर सकते हैं। मैं आपको नहीं रोकूंगी। मेरे पुत्र के रूप में इस कबीले को उसका राजा मिल जाएगा। फिर, रोते हुए माता कुंती के चरणों मे गिर कर कहा, माता! एक स्त्री के प्रेम की पीड़ा तो आप ही समझ सकती हैं। मुझे अपनी पुत्र वधु स्वीकार कर लीजिए माता।
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एक ही वर्ष की तो बात है, मेरा भी कल्याण हो जाएगा और इस कबीले का भी। माता कुंती ने देवी हिडिंबा से कहा, हे पुत्री! तुम्हारी बातें तो धर्म संगत लग रही हैं, मुझे विचार करने का समय दो। फिर, चर्चाओं के उपरांत, माता कुंती सहित सभी पांडव इस बात पर सहमत हो गए की, इस प्रकार प्रजा को अनाथ कर के जाना, धर्म संगत नहीं है। फिर, भीम ने कबीले का राजा होना स्वीकार किया, देवी हिडिंबा से विवाह किया और उनका एक पुत्र हुआ, महाबली घटोत्कच। मायावी राक्षस होने के कारण, जन्म के कुछ समय उपरांत ही घटोत्कच युवा हो गए और अपने पिता भीम, अपनी पितामही देवी कुंती सहित अपने सभी काकाओं को दंडवत प्रणाम किया, और उन्हें वचन दिया कि, जब भी पांडवों को उनकी आवश्यकता पड़ेगी, वह केवल स्मरण मात्र से वहां उपस्थित हो जाएंगे। देवी हिडिंबा ने भी अपने वचन अनुसार, अपने पति भीम, उनके भाइयों तथा उनकी माता देवी कुंती को विदा किया।
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