नई दिल्ली। एक कहावत है नंगा खुदा से बड़ा। यह कहावत पाकिस्तान पर एकदम सटीक बैठती है। कहने को तो यह देश इस्लामिक देश है लेकिन यहां के लोगों ने इस्लाम की अलग ही परिभाषा गढ़ डाली है। यहां धार्मिक आजादी केवल कहने की बात हो गई है। पाकिस्तान में आलम यह है कि हिंदू, सिख, ईसाई व अन्य किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग की लड़कियों को कभी भी अगवाकर उन्हें जबरन इस्लाम कबूल करवा दिया जाता है। इसके बाद जबरन शादी भी कर ली जाती है। यहां इसका एक बड़ा रैकेट बन गया है, जिसमें मौलवी, पुलिस और मजिस्ट्रेट तक सब मिले हुए हैं। एक अनुमानित रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में हर साल करीब एक हजार लड़कियों को जबरन इस्लाम कबूल कराया जाता है। जबकि कोरोना काल में यह घिनौना काम यहां और भी तेजी से हुआ है। पाकिस्तान में ऐसे धंधे के तस्कर इंटरनेट पर और अल्पसंख्यक बाहुल इलाकों में काफी सक्रिय हैं।
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इस मामले में अमेरिकी रक्षा विभाग ने पाकिस्तान को चिंता में डालने वाला देश घोषित कर दिया है। अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की समीक्षा के आधार पर किया गया है। इसके मुताबिक कम उम्र की हिंदू, सिख और ईसाई समुदाय की लड़कियों का अपहरण कर जबरन उन्हें इस्लाम कबूल कराया जाता है और फिर शादी के नाम पर दुष्कर्म किया जाता है। अगवा कर जबरन धर्म परिवर्तन कराई जाने वाली लड़किया में से अधिकत्तर दक्षिण सिंध प्रांत गरीब हिंदू परिवारों की होती हैं। इतना ही नहीं कई मामले ऐसे हैं, जिनमें ताकतवर लोग अपने बकाए कर्जे के एवज में भी लड़कियों को जबरन उठवा लेते हैं। हिंदू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण करने के बाद तत्काल ही शादी भी करा दी जाती है।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की मानें तो हिंदू लड़कियों से शादी करने वाले उम्र में उनसे कई गुना बड़े और पहले से शादीशुदा भी होते हैं। इनमें से कई ऐसे उम्रदराज लोग भी हैं जिन्हें कम उम्र की लड़कियों के यौन शोषण करने की लत होती है। हैरत की बात यह है कि मौलवी धर्मांतरण और शादी कराते हैं और मजिस्ट्रेट इन शादियों को मान्यता भी दे देते हैं। जबकि इस मामले में यहां की पुलिस या तो चुप रहती है या फिर जांच को प्रभावित करने में लगे रहते हैं। पाकिस्तान में बाल यौन शोषण का यह नेटवर्क ऐसा है जो गैर मुस्लिम लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं। पकिस्तान में अल्पसंख्यक मतलब सबसे कमजोर तबका, जिसका निशाना बनाना सबसे आसान होता है।
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