One Country, One Election: भारत सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Country, One Election) बिल को अपनी कैबिनेट से मंजूरी दे दी है, और अब यह बिल जल्द ही संसद में पेश किया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार, सरकार इस बिल को संसद के वर्तमान सत्र में पेश करने की योजना बना रही है। बिल को आगे की विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजे जाने की संभावना है। सरकार का उद्देश्य इस बिल पर व्यापक और आम सहमति बनाना है, जिसके लिए सभी राजनीतिक दलों, राज्यों के स्पीकरों और अन्य हितधारकों से विचार-विमर्श किया जाएगा।

रामनाथ कोविंद समिति की सिफारिशों को मंजूरी

यह बिल पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया है। समिति ने अप्रैल-मई 2023 में लोकसभा चुनाव के पहले अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। रिपोर्ट में चुनावों के आयोजन के दो चरणों का प्रस्ताव रखा गया था। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने की सिफारिश की गई है, जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव प्रस्तावित किए गए हैं।

18,626 पन्नों की रिपोर्ट में दिए गए सुझाव

रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट 18,626 पन्नों की थी, जिसमें भारत के विभिन्न राजनीतिक और प्रशासनिक पहलुओं पर विस्तृत विचार किया गया था। रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया कि राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाया जाए, ताकि वे लोकसभा चुनाव के साथ एक ही समय में चुनाव करा सकें। इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि किसी राज्य विधानसभा में हंग असेंबली की स्थिति उत्पन्न होती है या कोई नो कॉन्फिडेंस मोशन पास होता है, तो उस राज्य के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं। समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि चुनाव आयोग, लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिए एक साझा वोटर लिस्ट तैयार करे, और सुरक्षा बलों, प्रशासनिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए चुनावों की योजना पहले से बना ली जाए।

कोविंद समिति के सदस्य

इस समिति में कुल 8 सदस्य थे, जिनमें रामनाथ कोविंद के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, सुप्रसिद्ध अधिवक्ता हरीश साल्वे, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल थे।

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‘एक देश, एक चुनाव’ का उद्देश्य

‘एक देश, एक चुनाव’ का मुख्य उद्देश्य चुनावों की प्रक्रिया को सरल और लागत प्रभावी बनाना है। इस प्रस्ताव के तहत, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे, जिससे चुनावों पर होने वाले खर्च में कमी आएगी और चुनावी प्रक्रिया में व्यवधान कम होगा। यह व्यवस्था पहले 1951 से 1967 तक लागू थी, जब केंद्र और राज्य दोनों के चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन नए राज्यों के गठन और अन्य प्रशासनिक कारणों से 1968-69 में इसे रोक दिया गया था। अब, इसे फिर से लागू करने पर विचार किया जा रहा है, और इसके फायदे जैसे चुनावी खर्च में कमी, प्रशासनिक भार में हल्कापन और राजनीतिक स्थिरता की संभावना पर चर्चा की जा रही है।

क्या होगा इसका असर

अगर यह बिल पारित हो जाता है, तो यह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक परिवर्तन होगा। चुनावों का समन्वय करने से राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को समय और संसाधन बचाने में मदद मिल सकती है, साथ ही इससे सरकारों की कार्यप्रणाली में स्थिरता भी आ सकती है। हालांकि, इस योजना को लागू करने में कई चुनौतियाँ भी हो सकती हैं, जैसे विभिन्न राज्यों के चुनावों की तिथियों का तालमेल, राजनीतिक दलों का सहमति बनाना और संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता। सरकार की योजना है कि इस प्रस्ताव पर सभी संबंधित पक्षों से संवाद किया जाए और इसके बाद इसे संसद में पेश किया जाए।

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