

चालीस साल के बाद इस साल जमकर और रंगों में सराबोर होकर होली मनाई। सौ साल पुरानी ब्रांडेड शराब थी, मटन भी था, सूखी हुई फीस भी थी। लॉन्ग ड्राइव के लिए गाड़ी भी थी, लॉन्ग ड्राइव पर जाना और होली का हुडदंगी देखना, रोमांचित करने वाला अनुभव था। पर मेरी दृष्टि और सोच का निष्कर्ष बहुत ही अलग है।
होली पर हुड़दंग करने वाले और खुशियां मनाने वाले मुझे हिजड़े और ज़मूरे ही लगे। इन्हें हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं है। अति कर्मकांडी कभी भी सनातन की सुरक्षा और समृद्धि में योगदान नहीं करते हैं। जब हम लोग राम मंदिर की लड़ाई लड़ रहे थे, तब कर्मकांडी लोग कही दिखाई नहीं देते थे। आज करोड़ों लोग जो राम मंदिर दर्शन के लिए गए उनका राम मंदिर की लड़ाई में रत्ती भर योगदान नहीं था। सिर्फ इतना ही नहीं राम मंदिर की लड़ाई लड़ने वाले संघ और विश्व हिंदू परिषद की खिल्ली उड़ाने वाले और सांप्रदायिक कहने वाले इसी श्रेणी के लोग थे।
अभी भी बाबा विश्वनाथ मंदिर और श्रीकृष्ण जन्म स्थली मथुरा की लड़ाई जारी है। होली खेलने वाले, महाकुंभ जाकर फोटो और रील बनाने वाले, पाप धुलने के लालची सोच से युक्त, अन्य हिंदू पर्व त्योहारों को मनाने वाले, मंदिर जाने वाले 99 प्रतिशत लोग हिंदू धर्म की सुरक्षा की लड़ाई लड़ने वाले लोगों की खिल्ली ही नहीं उड़ते बल्कि जिहादियों की इच्छानुसार आवरण करते हैं।
66 करोड़ लोगों ने कुंभ में डुबकी लगाई थी। एक अरब लोगों ने होली खेली। इन सभी को जिहादियों से लड़ने और हिंदुओं की सुरक्षा के लिए धरना प्रदर्शन के लिए आमंत्रित कीजिए। पचास लोग भी सामने नहीं आएंगे। कपिल मिश्रा ने साहस कर शहीनबाग के जिहादियों को ललकारने गए, तो उनका साथ देने वाले कितने हिंदू थे?
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कल अगर जिहादियों का कत्लेआम शुरू हुआ तो फिर 99 प्रतिशत हिंदू डर से मुसलमान बनना स्वीकार कर लेंगे। शेष एक प्रतिशत हिंदू ही जिहादियों से लड़कर बलिदान होंगे। हिंदू सिर्फ नाचना जानता है, लालच में मंदिर जाता है। इनमें वीरता का भाव होता नहीं। अपने धर्म के लिए लड़ना जानता ही नहीं है। इसीलिए मैं होली, दशहरा, दिवाली आदि पर्व त्योहार मनाने वाले हिंदुओं को हिजड़ा और ज़मूरे ही कहता हूँ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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