मिलेट्स यानि मोटा अनाज हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारंभ समारोह के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस संदेश से समझा जा सकता है:-
“हमारी जमीन और हमारी थाली में विविधता होनी चाहिए। अगर खेती इकहरी फसल वाली हो जाए, तो इसका बुरा असर हमारे और हमारी जमीन के स्वास्थ्य पर पड़ेगा। मोटे अनाज हमारी खेती और हमारे भोजन की विविधता बढ़ाते हैं। ‘मोटे अनाजों के प्रति सजगता बढ़ाना’ इस आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग और संस्थाएं, दोनों ही बड़ा प्रभाव छोड़ सकते हैं। संस्थाओं के प्रयास से मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है और समुचित नीतियां अपनाकर इनकी फसल को फायदेमंद बनाया जा सकता है। दूसरी ओर, लोग भी स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए मोटे अनाजों को अपने आहार में शामिल करके इस पृथ्वी के अनुकूल विकल्प चुन सकते हैं। मुझे विश्वास है कि 2023 में मोटे अनाजों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष का यह आयोजन सुरक्षित, टिकाऊ और स्वस्थ भविष्य की दिशा में एक जन आंदोलन को जन्म देगा।”
पिछले कुछ सालों से, लोगों में अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता बढ़ी है, लेकिन खासकर कोरोना के बाद से यह चेतना चिंता में बदल गई है। लोगों ने महसूस किया है कि अगर खानपान और जीवनशैली में बदलाव नहीं लाया गया, तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। यही वजह है कि ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, कुट्टू, जैसे अनेक मोटे अनाज की पूरी दुनिया में डिमांड बढ़ी है।
2018 में मनाया गया राष्ट्रीय मिलेट वर्ष
लेकिन भारत ने तो इस चेतना की अलख काफी पहले से ही जगानी शुरू कर दी है। 2014 में जब केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार सत्ता में आई, तभी से इस दिशा में प्रयास किये जाने लगे थे। इन्हीं प्रयासों का नतीजा था वर्ष 2018 को सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ घोषित किया गया। ऐसा करने का उद्देश्य लोगों में मिलेट के उपयोग को बढ़ावा देना, इनके उत्पादन को प्रोत्साहित करना और इनकी मांग बढ़ाना था। इसके काफी सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। मिलेट के वैश्विक उत्पादन में 18 प्रतिशत भागीदारी के साथ भारत आज विश्व का सबसे बड़ा मिलेट उत्पादक देश बन चुका है और प्रति हैकटेयर उत्पादकता की दृष्टि से भी दुनिया के मिलेट उत्पादक देशों में दूसरे स्थान पर आ चुका है।
बढ़ रहा है उत्पादन और उत्पादकता
वर्तमान में विश्व के लगभग एक सौ तीस देशों में मिलेट उगाये जा रहे हैं और एशिया व अफ्रीका महाद्वीप में रहने वाले लगभग साठ करोड़ लोगों के नियमित भोजन का हिस्सा बने हुए हैं। उत्पादन और उत्पादकता के 2016 से 2021 के आंकड़ों पर नजर डालें, तो हम पायेंगे कि विश्व के पांच सबसे बड़े पोषक अनाज (मिलेट) उत्पादक देशों में भारत के अलावा नाइजर, सूडान, नाइजीरिया और माली जैसे देश शामिल हैं। इनमें भारत में 142.93 लाख हैक्टेयर जमीन पर इनकी खेती होती है और पांच सालों में औसतन 156.12 लाख टन मिलेट का उत्पादन हुआ, जबकि दूसरे स्थान पर रहे नाइजर में 107.16 हेक्टेयर भूमि पर सिर्फ 56.39 लाख टन उत्पादन रहा। पूरे विश्व में मिलेट उत्पादन का औसत 890.92 लाख टन है, जिसमें 156.12 लाख टन से ज्यादा भारत में उपजा है। उत्पादकता (किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) की दृष्टि से सिर्फ नाइजीरिया ही भारत से आगे है, वह भी बहुत कम। नाइजीरिया में यह उत्पादकता 1103 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, और भारत में 1092 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर। वैश्विक उत्पादकता 1211 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के यह काफी करीब है।
इस सबका श्रेय जाता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की दूरदर्शितापूर्ण नीतियों और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति को, जो मिलेट को हमारी रसोइयों में और हमारी प्राथमिकताओं में उसकी खोई जगह वापस दिलाने के लिए कटिबद्ध है। वह जगह, जो पचास साल पहले तक मोटे अनाजों के लिए सुरक्षित हुआ करती थी।
प्राचीन है भारत में मोटे अनाजों की परंपरा
सच तो यह है कि मोटे अनाज हजारों साल से हमारे पारंपरिक भोजन का हिस्सा रहे हैं। खान-पान की हमारी इस समृद्ध विरासत की जड़ें, सिंधु घाटी की सभ्यता तक जाती हैं। आदिकाल के ‘यजुर्वेद’, ‘सुश्रुत संहिता’, कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’, कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ से ‘आईना-ए-अकबरी’ तक अनेक महान ग्रंथों में मोटे अनाजों के बारे में वर्णन है। इससे पता चलता है कि हमारे खानपान में इनकी उपस्थिति कितना पहले से है। यह उपस्थ्िा ति अकारण नहीं है। मिलेट्स हर दृष्टि से सभी के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
मिलेट मे प्रोटीन, फाइबर और कैल्शियम, जिंक, मैग्नेशियम, फॉस्फोरस, कॉपर, आयरन, जैसे खनिजों और कार्बोहाइड्रेट, एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन आदि काफी उच्च मात्रा में पाये जाते हैं। हम जो भी खाते हैं, उसका अधिकतर हिस्सा हमारे पेट में जाकर ग्लूकोज में परिवर्तित होकर हमारे रक्त में मिल जाता है, जो कि शुगर का एक मृदु रूप होता है। गेंहू व चावल जैसे आधुनिक दौर के लोकप्रिय अनाजों की तुलना में मिलेट इसलिए बेहतर हैं, क्योंकि इनके ग्लूकोज में बदलने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत काफी धीमी होती है। इसके अलावा ये ग्लूटोन मुक्त होने के कारण कई प्रकार के उदर रोगों से भी बचाते हैं। इन सब कारणों से इस वजह से यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक माने जाते हैं।
पोषक तत्वों और खनिजों की मौजूदगी के कारण मिलेट फसलों के पुआल को भी पशुओं के चारे के रूप में काफी पोषक माना जाता है। कुपोषण से निपटने के मामले में भी मिलेट उत्कृष्ट विकल्प साबित हुए हैं। भारत में कुछ राज्यों में स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में मिलेट से बने आहार को शामिल किया गया, तो इसके उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले और बच्चों के बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) में आश्चर्यजनक सुधार देखने को मिला।
पर्यावरण के अनुकूल होते हैं मिलेट
मिलेट पर्यावरण की दृष्टि से भी बेहद उपयोगी हैं। ये विभिन्न प्रकार के तापमानों वाले नम और शुष्क सभी क्षेत्रों में उगाये जा सकते हैं। उन्हें पनपने के लिए पानी और वर्षा की जरूरत कम होती है। ये महज 300-400 मिमी पानी में भी भी उग सकते हैं। ये लगभग हर प्रकार की मिट्टी में अंकुरित हो सकते हैं। इनमें कीड़े लगने की आशंका भी नहीं के बराबर होती है। इसलिए इनमें केमिकल फर्टिलाइजरों और कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की बहुत कम जरूरत होती है। मिलेट का फसल चक्र भी बारीक अनाजों की तुलना में बेहतर होता है, क्योंकि अधिकतर मिलेट को परिपक्व होने में 60-90 दिनों की आवश्यकता होती है, जबकि बारीक अनाज के लिए यह अवधि 100 से 140 दिन हो सकती है। मोटे अनाजों की खेती में आने वाला खर्च भी कम होता है। इन सब वजह से मिलेट की खेती, छोटे किसानों के लिए काफी फायदेमंद हैं।
क्लाइमेट चेंज की चुनौती से जूझती दुनिया के लिए भी मिलेट किसी वरदान से कम नहीं हैं, क्योंकि इनमें कार्बन उत्सर्जन बहुत कम होता है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व पर खाद्यान्नों की कमी का जो संकट मंडरा रहा है, अपनी सहज और सरल उपजता की प्रवृत्ति के कारण मिलेट्स उससे निपटने में भी हमारी काफी सहायता कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास के लक्ष्यो को हासिल करने में मिलेट काफी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इसमें काफी बड़ा योगदान भारत का भी है। मिलेट के महत्व को फिर से स्थापित करने में जो सफलता हासिल की है, उसने पूरी दुनिया को मोटे अनाजों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
प्रयासों से मिले सकारात्मक परिणाम
यह सफलता हमें अनायास ही नहीं मिली है। इसके लिए हमने अथक प्रयास किए हैं। जैसे कि वर्ष 2018-19 में हमने मिलेट को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) से जोड़ा और पोषक इसके उपमिशन के रूप में देश के 212 जिलों में लागू किया। इनमें पोषक अनाज में सोरघम (ज्वार), पर्ल मिलेट (बाजरा), फिंगर मिलेट (रागी/मंडुआ) और कुटकी, कोदो मिलेट (कोदो), बार्नयार्ड मिलेट (सावा/झंगोरा), फॉक्सटेल मिलेट (कंगनी/काकुन), प्रोसो मिलेट (चीना) जैसे छोटे मिलेट शामिल हैं। इनके अलावा कुट्टू और चौलाई को भी पोषक अनाज के रूप में अधिसूचित किया गया है।
एनएफएसएम-पोषक अनाज के अंतर्गत क्लस्टर क्षेत्रों में किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की स्थापना, इनके लिए प्रसंस्करण इकाइयों, उत्कृष्टता केंद्रों, बीज केंद्रों का निर्माण, कार्यक्रमों व कार्यशालाओं का आयोजन, बीज मिनीकिट वितरण, संचार माध्यमों के जरिये प्रचार तथा प्रगतिशील किसानों, उद्यमियों/गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना, लोगों में जागरूकता पैदा करने जैसी गतिविधियां शामिल हैं।
इसके अलावा इस उपमिशन में क्लस्टर फ्रंट लाइन डिमॉन्स्ट्रेशन (एफएलडी), संकर और उच्च उपज नस्लों के प्रमाणित बीजों का वितरण-उत्पादन, जैव-उर्वरक और सूक्ष्म पोषक तत्व, पौधों को सुरक्षा देने वाले रसायन और खरपतवारनाशी, मैनुअल स्प्रेयर, स्प्रिंकलर, फसल प्रणाली आधारित प्रशिक्षण शामिल हैं। साथ ही इस कार्यक्रम के तहत हिसार में बाजरे के लिए सीसीएस हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हैदराबाद में ज्वार के लिए भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान और बेंगलुरु में छोटे मिलेट के लिए कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय जैसे तीन राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्रों (सीओई) की स्थापना भी की गई है।
एनएफएसएम के तहत मिलेट को प्रोत्साहन देने के क्रम में देश के 13 राज्यों में पोषक अनाज के ब्रीडर बीज उत्पादन को बढ़ाने के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों/आईसीएआर संस्थानों में 18 केंद्र स्थापित किए गए। एनएफएसएम के तहत, स्मॉल फार्मर्स एग्री-बिजनेस कंसोर्टियम (एसएफएसी), डीए एंड एफडब्ल्यू द्वारा आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश राज्यों में वर्ष 2018-2021 के दौरान तीन वर्षों में मिलेट पर 50 किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाये गये हैं और कुल 42240 किसानों को सक्रिय किया गया है। इसके अलावा, बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों में इसी अवधि के दौरान मिलेट/दलहनों के लिए 30 नए किसान उत्पादक संगठन गठित किए गये हैं, जिनसे तीन वर्षों के दौरान कुल 30624 किसान लाभान्वित हुए हैं। इसके अलावा, देश में पोषक अनाज की उन्नत किस्मों के गुणवत्ता वाले बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने और आईसीएआर संस्थानों, एसएयू और केवीके में 25 बीज केंद्रों की स्थापना की गयी है।
भारत सरकार द्वारा स्थापित उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) में वही प्राथमिक और माध्यमिक प्रसंस्करण विधियां उपयोग की जाती हैं, जो आईसीएआर-भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर), हैदराबाद द्वारा उपयोग की जाती हैं। इसका उद्देश्य ज्वार के मूल्यवर्द्धित उत्पादों जैसे मल्टी ग्रेन आटा, सूजी, फ़्लेक्स, तैयार किए गए उत्पादों (सेंवई और पास्ता), बिस्कुट, इंस्टेंट मिक्स आदि की अच्छी गुणवत्ता विकसित करना है। इसी के अंतर्गत पर्ल मिलेट, फॉक्सटेल, कोदो और प्रोसो मिलेट आदि से बने मिलेट रवा और पफ बाजार में “ईट्रीट” के रूप में बेचे जाते हैं। इन उत्पादों को प्रोत्साहन दिए जाने से उपभोक्ताओं के बीच मिलेट के बारे में पोषण संबंधी जागरूकता फैलाने में सहायता मिली है और इन्हें मिले व्यापक समर्थन से उद्यमियों में भी इन्हे लेकर काफी रुचि उत्पन्न हुई है। अब वे इन पौष्टिक, सुविधाजनक और स्वादिष्ट मिलेट उत्पादों में अत्याधिक व्यावसायिक संभावनाएं देखने लगे हैं।
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मिलेट को बढ़ावा देने के अपने इस अभियान को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए भारत ने इसी क्रम में एक और अति महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया और मार्च 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सशक्त, सक्षम और दूरदर्शी नेतृत्व में हमने संयुक्त राष्ट्र के 75वें अधिवेशन में वर्ष 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को 70 से अधिक देशों ने समर्थन दिया। ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023’, न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मिलेट को वैश्विक स्वीकार्यता दिलाने का एक अभूतपूर्व अवसर है। इसका इस्तेमाल हम, इनके उत्पादन को शिखर पर ले जाने और हमारी खान-पान परंपराओं में मिलेट को नियमित रूप से अपनाने की आदत को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर हम संक्षेप में कहें कि ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ भविष्य को बचाने के लिए भारत के नेतृत्व में एक सशक्त पहल है, तो अतिशयोक्ति न होगी।
(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं)
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