आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
मणिपुर की हिंसा (Manipur Violence) पर एकांकी चर्चा और विमर्श नहीं हो रहा है? क्या मणिपुर की हिंसा (Manipur Violence) की चर्चा व विमर्श संपूर्णता में नहीं होनी चाहिए? क्या सिर्फ हिंसा के लिए आरक्षण ही एक मात्र कारण है? मणिपुर हिंसा (Manipur Violence) के लिए क्या सिर्फ मतई वर्ग ही जिम्मेदार है? क्या कूकी मॉब जिम्मेदार नहीं है? क्या कूकी वर्ग को म्यांमार से लाकर एक साजिश के तहत मणिपुर में नहीं बसाया गया था? क्या सिर्फ कूकी वर्ग की महिलाओं के साथ अपमान और हनन जैसी घटनाएं हुई हैं? क्या मतई वर्ग की महिलाओं के साथ ऐसी अपमान जनक और हनन वाली घटनाएं नहीं हुई हैं? क्या कूकी लोगों ने अपनी बहुलता वाले गांवों और क्षेत्रों से मतई लोगों का संहार नहीं किया है, या फिर उन्हें नहीं खदेड़ा है? क्या कूकी लोगों ने मतई वर्ग के व्यापारिक और शैक्षणिक सहित अन्य धार्मिक स्थलों को आग के हवाले नहीं किया है?
क्या चर्च की इसमें भूमिका नहीं है? क्या चर्च सिर्फ कूकी पीड़ित की आवाज नहीं उठा रहा है? चार मई की घटना के वीडियो इतने दिनों बाद किस साजिश से प्रसारित कराया गया? ब्रिटेन और ईसाई संगठन भारत के इस आंतरिक हिंसा और समस्या पर हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं? मिजोरम और नागालैंड आदि पूर्वी राज्यों से मैतई वर्ग के अस्तित्व मिटाने की आवाजें देने वाले कौन लोग हैं? मिजोरम, नागालैंड से मतई भगाओं अभियान की आवाज देने वाले कौन लोग है? क्या कूकी लोग वर्षों से हिंसा और विद्रोह की आग भड़का कर नहीं रखे हैं? मणिपुर को कश्मीर बनाने और मतई वर्ग के लोगों का कश्मीरी पंडित की तरह हस्र करने की कार्रवाई रोकी जानी चाहिए।
मणिपुर में जो कुछ भी हुआ वह बहुत ही शर्मनाक और अस्वीकार है। लेकिन मणिपुर में घटने वाली सभी घटनाओं के लिए सिर्फ मैतई वर्ग को दोषी ठहराना और मैतई वर्ग को अपमानित करने की राजनीति और अभियान भी शर्मनाक है, अस्वीकार है। स्त्री हनन की लोमहर्षक घटना के लिए मतई वर्ग जिम्मेदार हो सकते हैं। उनका प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ युवक इसमें शामिल जरूर रहे हैं, लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं के लिए प्रेरक तत्व क्या-क्या हैं? क्या प्रतिक्रिया में ऐसी घटनाएं हुई हैं, क्या अफवाह की भी कोई भूमिका है, क्या इसमें कोई विदेशी साजिश है, क्या इसमें किसी मजहब की कारस्तानी है, क्या मजहबी एजेंडे के अनुसार हिंसा और विद्रोह की आग भड़कायी गयी है?
मतई वर्ग राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं, अंखड और शक्तिशाली भारत की आवाज और प्रतीक हैं। यही उनका गुनाह है? मतई वर्ग खुद कहते हैं कि पूर्वोत्तर में राष्ट्रवाद की अलख जगाने और राष्ट्रविरोधी तत्वों के बीच अवरोधक बनने के कारण ही उनका अस्तित्व नष्ट किया जा रहा है। मतई वर्ग का मानना है कि हिन्दुत्व के कारण उनका सर्वनाश किया जा रहा है। मतई वर्ग के लोग कहते हैं कि पहले हमें अंग्रेजों ने मारा, फिर कांग्रेसी सरकारों ने मारा, अब मोदी सरकार मार रही है। हमारी जमीन और संस्कृति लहुलूहान की रही है। विध्वंस किया जा रहा है, मिटाया जा रहा है। हम अंग्रेज काल में भी ईसाई नहीं बने, बल्कि अंग्रेजों से लड़ते रहे। हमारे रंगों में प्रवाहित खून हिन्दुस्थानी है, हम कभी राजा थे, हम कभी सपन्न थे पर हमें आज भिखारी बना दिया गया। कूकी बाहरी हैं, ये म्यांमार से आएं हैं, इन्हें चर्च ने साजिशपूर्ण ढंग से म्यांमार से लाया और हमारी जमीन पर बसाया और अब चर्च हिंसा के बल पर हमें भगाना चाहता है।
क्या सिर्फ मतई वर्ग को अपमानित कर और दंडित कर मनिपुर की इस हिंसक परिस्थितियों का समाधान किया जा सकता है? यह सही है कि सरकारें शिथिल रहीं, मूकदर्शन की स्थिति में खड़ी रही। उन्हें वोट बैंक की राजनीति का दृष्टिकोण था। इसमें केन्द्रीय सरकार भी उतना ही दोषी है, जितना मणिपुर की राज्य सरकार दोषी है। बर्बर और अमानवीय घटना को देखते हुए कड़ी कार्रवाई की जरूरत थी। अगर मनिपुर की राज्य सरकार असमर्थ और अइच्छुक थी, तो फिर केन्द्रीय सरकार को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी। अगर कुछ दिनों के लिए मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाता और राज्य सरकार को निलम्बित कर दिया जाता, तो फिर क्या बिगड़ जाता? संविधान में भी ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था है। राष्ट्रपति शासन में अगर केन्द्रीय बल तैनात हो जाते और दंगाइयों को कानून का पाठ पढ़ा देते, तो फिर स्त्री हनन और अन्य घटनाओं पर विराम लगाया जा सकता था। फिर ब्रिटेन की संसद जैसे विदेशी हस्तक्षेप के शिकार होने से भी बचा जा सकता था और राष्ट्रद्रोहियों के कुप्रचार और अफवाह से भी मुक्ति पायी जा सकती थी।
सारी राजनीति, सारा गुस्सा और सारा अभियान मतई वर्ग के खिलाफ जारी है। मतई वर्ग के लिए सिर्फ और सिर्फ गालियां बकी जा रही हैं। मणिपुर से लेकर दिल्ली तक और दिल्ली से लेकर ब्रिटेन तक हर जगह मतई वर्ग को खलनायक करार दिया जा रहा है। कूकी वर्ग की हिंसा, कूकी वर्ग की घृणा, कूकी वर्ग की मजहबी एजेंडे आदि पर कोई चर्चा ही नहीं करना चाहता। कूकी वर्ग ने मणिपुर की राजधानी और अन्य शहरों में जो सरकारी संपत्तियां जलायी हैं, मतई वर्ग के बड़े-बडे प्रतिष्ठानों को जला कर राख कर दिया, मतई बस्तियों को भी जला कर राख कर दिया गया, मतई वर्ग के लोगों को कई गांवों से खदेड़ दिया गया, मतई वर्ग की कई महिलाओं के साथ भी दुष्कर्म हुए हैं, मतई महिलाओं को भी अपमानजनक परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है। लेकिन कूकी हिंसा पर कोई बोलना ही नहीं चाहता है और न ही सुनना चाहता है।
चर्च की भूमिका क्या है? ब्रिटेन की भूमिका क्या है? चीन की भूमिका क्या है? इस पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता है। आखिर इन प्रसंगों पर कोई चर्चा करने के लिए तैयार क्यों नहीं है? सीधी सी बात है कि अगर एकांकी चर्चा को छोड़कर संपूर्णता चर्चा हुई, तो निश्चित मानिये कि बहुत सारे लोग बेनकाब हो जायेंगे। साजिशों से पर्दा हट जायेगा। ब्रिटन से लेकर अमेरिका तक ईसाई यूनियनबाजी भी बेपर्द हो जायेगी। बात पक्की है कि इसमें चर्च की भूमिका है। कूकी वर्ग ईसाई हैं और उनका चर्च के प्रति समर्पण कौन नहीं जानता है। पूर्वी राज्यों में चर्च की भूमिका कितनी खतरनाक है, यह कौन नहीं जानता है? खासकर धर्मातंरण का हथकंडा बहुत खतरनाक है। चर्च ने बड़े पैमाने पर धर्मातंरण कराये हैं। धर्मातंरण कराने के लिए बहुत सारी हिंसक और घृणित नीतियां अपनायी है। जिस तरह से झारखंड, उड़ीसा आदि राज्यों में चर्च ने बड़े पैमाने पर हिंसा और लालच देकर धर्मातरंण कराये, उसी प्रकार से चर्च ने पूर्वोतर राज्यों में हिंसा और लालच के बल पर धर्मांतरण कराए। कूकी वर्ग को हथियार और प्रचार सामग्री कौन उपलब्ध कराता है? यह सब केन्द्रीय सुरक्षा एजेंसियां बखूबी जानती हैं।
आरक्षण तो सिर्फ उपरी आवरण है। आरक्षण तो सिर्फ दिखावा है। आरक्षण सिर्फ हथकंडा है। असली कारण और असली साजिश कुछ और है। कूकी वर्ग ईसाई हैं और मतई हिन्दू धर्म मानते हैं। चर्च को यह पंसद नहीं है कि मतई हिन्दुत्व के समर्थक बने रहें और राष्ट्रवाद की नींव को मजबूत करते रहें। इसी कारण मतई वर्ग के प्रति घृणा फैलायी गयी। इसका उदाहरण यह है कि मणिपुर के चर्च विश्व यूनियनबाजी पर उतर आयी। यूरोप और अमेरिका के चर्चो और अन्य ईसाई संगठनों को मणिपुर की हिंसा पर यूनियनबाजी के लिए तैयार कर लिया। फिर दुनिया भर में कूकियों के समर्थन में कैसी कूटनीति चली, यह भी बताने की जरूरत नहीं है।
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मणिपुर ही नहीं बल्कि सभी पूर्वोत्तर के राज्यों को कश्मीर बनाने की साजिश है, कश्मीर जैसी अनवरत हिंसा फैलाने की साजिश है। कश्मीर पंडितों की तरह मतई और अन्य हिन्दू वर्ग को भगाने की साजिश है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। मिजोरम जहां पर 95 प्रतिशत ईसाई है वहां से मतई वर्ग को भगाने और हिंसा के बल पर उनका अस्तित्व नष्ट करने का अभियान शुरू हो गया है। मिजोरम से मतई भाग भी खडे हुए हैं। मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों में मतई अगर टिके रहें तो उनकी जान पर खतरा है। इसीलिए मतई वर्ग न केवल मणिपुर बल्कि पूरे पूर्वोत्तर राज्येां में अपनी सुरक्षा को लेकर त्राहिमाम कर रहे हैं। मणिपुर को कश्मीर बनने से रोकना चाहिए, कश्मीर बनाने वाले लोगों और संगठनों को भारतीय सुरक्षा का पाठ पढ़ाना चाहिए और उन्हें जेलों में ठूसा जाना चाहिए। इसके लिए मतई वर्ग की सुरक्षा पहली शर्त होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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