महाशिवरात्रि में चंद दिन बचे हैं। हिंदू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है। ‘शिवरात्रि’ का मतलब होता है ‘भगवान शिव की महान रात्रि।’ वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का व्रत रखने का अपना महत्व है। इस तरह से सालभर में 12 शिवरात्रि व्रत रखें जाते हैं, लेकिन इसके बाद भी महाशिवरात्रि का व्रत खास मायने रखता है। काशी पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर रखा जाता है।
शिवरात्रि के पावन पर्व में शिव मंदिरों की रौनक देखते बनती है। भोर से ही शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लग जाता है और सभी भक्त भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हैं। इस खास दिन पर भगवान शिवजी को दूध और जल से अभिषेक कराने की भी प्रथा है। प्राकृति के लिहाज से भी इस पर्व की अपनी महत्ता है। क्योंकि महाशिवरात्रि के बाद पेड़ फूलों से खिल जाते हैं। फसलों के लिहाज से धरती फिर से उपजाऊ हो जाती है। पूरे देश में शिवरात्रि अलग अलग तरीके से मनाया जाता है।
‘अभिषेक’ का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। इस तरह ‘रुद्राभिषेक’ का अर्थ है भगवान रुद्र को स्नान कराना। शास्त्रों में भगवान शिव को ‘रुद्र’ कहा गया है और उनका यह रूप शिवलिंग में देखा जाता है। इसका अर्थ हुआ ‘शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के जाप से अभिषेक करना।’ ‘अभिषेक’ कई प्रकार से किए जाने का भी प्रावधान है। भगवान शिवजी को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम तरीका ‘रुद्राभिषेक’ करना या फिर श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा करवाना है। अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।
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राशि के अनुसार ऐसे करें रुद्राभिषेक
1. मेष- शहद और गन्ने का रस से
2. वृषभ- दुग्ध, दही से
3. मिथुन- दूर्वा से
4. कर्क- दुग्ध, शहद से
5. सिंह- शहद, गन्ने के रस से
6. कन्या- दूर्वा एवं दही से
7. तुला- दुग्ध, दही से
8. वृश्चिक- गन्ने का रस, शहद, दुग्ध से
9. धनु- दुग्ध, शहद से
10. मकर- गंगा जल में गुड़ डालकर मीठे रस से
11. कुंभ- दही से
12. मीन- दुग्ध, शहद, गन्ने के रस से
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