Shyam Kumar
श्याम कुमार

प्रयागराज का कुम्भ (Maha Kumbh 2025) महापर्व विश्व का सबसे बड़ा आश्चर्य है। कहीं कोई बुलावा नहीं, कहीं कोई मुनादी नहीं, देश के कोने-कोने से करोड़ों लोग कुम्भ पर संगम-स्नान करने अपने आप प्रयागराज पहुंच जाते हैं। जिस समय विश्व में अधिकांशतः लोग जंगली जीवन व्यतीत कर रहे थे, उस प्राचीन काल में भारत में विज्ञान, गणित, ज्योतिष, खगोलविद्या आदि का ज्ञान चरम पर था। उस समय पृथ्वी से सूर्य की जो दूरी बता दी गई थी, उसे आज के वैज्ञानिक अब सिद्ध कर पाए हैं। उसी खगोल-गणना के चरमोत्कर्ष के फलस्वरूप ही पंचांग में जो तिथियां घोषित की जाती हैं, वे कुम्भ-स्नान का आधार बनती हैं। लोग उन्हीं को पढ़कर निर्धारित तिथियों पर प्रयागराज पहुंच जाते हैं।

प्रयागराज का कुम्भ महापर्व हिन्दू विरोधी सरकारें भी पूरी ताकत से इसलिए आयोजित करती रही हैं कि वह विश्व का सबसे बड़ा मेला है और उसमें कोई कमी रहने पर सरकार की बदनामी होगी। लेकिन इस वर्ष पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि जैसे प्रदेश एवं केंद्र की सरकारें सच्चे मन एवं पूर्ण समर्पण भाव से वह आयोजन कर रही हैं। निश्चित रूप से इसका पूरा श्रेय नरेंद्र मोदी एवं योगी आदित्यनाथ को है।

महाकुम्भ एवं कुम्भ में चूंकि प्रशासन का दृष्टिकोण हमेशा यह रहता है कि किसी प्रकार मेला निपट जाय, इसलिए न तो शहर को और न मेला क्षेत्र को मेले का वास्तविक लाभ मिल पाता है। जब मेला निपट जाता है तो उसकी सफलता की दुंदुभी बजाते हुए एक बड़ा आयोजन किया जाता है, जिसमें सफलता में योगदान करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाता है। इसमें ऐसे लोग भी सम्मानित होते देखे गए हैं, जिन्होंने मेले में भ्रष्टाचार के बल पर अपनी अगली दो-तीन पीढ़ियों का भला कर डाला। एक आयोजन में एक उच्चाधिकारी ने अपनी एक सहयोगी प्रेमिका को उपकृत कर दिया था।

Maha Kumbh

मैं बचपन से प्रयागराज का हर महाकुम्भ एवं कुम्भ देखता आ रहा हूं तथा पत्रकार हो जाने के बाद वर्ष 1966 के महाकुम्भ से अब तक प्रत्येक महाकुम्भ एवं कुम्भ की मैंने बहुत व्यापक एवं गहन कवरेज की है। मैं सदैव मीलों तक लंबाई व चौड़ाई में फैले हुए कुम्भ नगर के एक-एक शिविर में जाकर वास्तविकताएं जानने का प्रयास करता रहा हूं। मैंने आरंभ से पत्रकारिता किसी नौकरी के रूप में नहीं, बल्कि सच्चे मन से की है और उसके प्रति पूर्ण समर्पित रहा हूं। वर्ष 1966 में प्रयागराज के महाकुम्भ के समय मैं इलाहाबाद (प्रयागराज) से प्रकाशित होने वाले देश के प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक समाचारपत्र ‘भारत’ में स्थानीय समाचार सम्पादक एवं मुख्य संवाददाता तथा लोकप्रिय ‘जनसंसद’ साप्ताहिक का सम्पादक था।

उस समय बांध के नीचे स्थान कम होने के कारण महाकुम्भ की अधिकांश व्यवस्था झूंसी क्षेत्र में की गई थी तथा इस पार से उस पार आने-जाने के लिए अनेक पीपे के पुल बनाए गए थे। उस वर्ष सेना ने भी कुछ बड़े अच्छे पुल बनाए थे। बाद में मैंने सेना का पुलों के रूप में वह योगदान कभी नहीं देखा। उस समय स्कूटरों का जमाना नहीं शुरू हुआ था तथा मोटरसाइकिलें हुआ करती थीं, जिन्हें चलाना मैं नहीं जानता था। वाहन के रूप में मेरे पास साइकिल थी, जिससे मैं नित्य दिन में कई बार कुम्भ नगर जाकर वहां विस्तृत भ्रमण करता था तथा अन्य समाचारों के साथ विभिन्न साक्षात्कार भी लेकर प्रकाशित करता था। साथ में कई नियमित स्तम्भ भी लिखता था।

थोक में अन्य स्थानीय समाचारों के सम्पादन व लेखन का बहुत बड़ा बोझ भी मुझे नित्य निपटाना होता था। उसी समय इलाहाबाद (प्रयागराज)के छावनी क्षेत्र में एक विश्व प्रदर्शनी का आयोजन हुआ था, अतः कवरेज के लिए नित्य वहां भी मुझे चक्कर लगाना पड़ता था। आज मुझे आश्चर्य होता है कि मैं साइकिल से प्रातःकाल से लेकर रात तक इतना व्यापक भ्रमण एवं कठोर परिश्रम कैसे कर लेता था ! लेकिन मेरे उसी कठोरतम परिश्रम का परिणाम यह हुआ कि महाकुम्भ की मेरी कवरेज ने धूम मचा दी थी।

वर्ष 1966 के उस महाकुम्भ में मैंने जो उत्कृष्ट प्रबंध-व्यवस्था देखी, वह बाद के तमाम महाकुम्भ एवं कुम्भों में कम देखने को मिली। इसका मूल कारण यह था कि धीरे-धीरे वह विश्वप्रसिद्ध मेला भ्रष्टाचार व घोटालों की गिरफ्त में फंसता गया। नौकरशाही उसे भारी लूट का जरिया मानने लगी तथा मेले की व्यवस्था बाहरी दिखावे एवं टीमटाम के बावजूद भीतर से खोखली होने लगी। कुछ सरकारों के समय में तो मंत्रियों द्वारा भयंकर भ्रष्टाचार किया गया, जिसमें उनके चेलों व तमाम नौकरशाहों ने जमकर अपनी तिजोरियां भरीं।

Maha Kumbh 2025

प्रयागराज में महाकुम्भ एवं कुम्भ के अलावा प्रतिवर्ष एक महीने तक माघ मेले का आयोजन होता है, जो देश में आयोजित होने वाले अन्य कतिपय कुम्भ मेलों के स्तर का होता है। महाकुम्भ एवं कुम्भ के अवसर पर शासन द्वारा प्रयागराज के कुम्भ नगर को अलग जिला घोषित कर दिया जाता है, जिसके जिलाधिकारी के रूप में मेलाधिकारी की तैनाती हुआ करती है। अब तक प्रायः मेले के कुछ महीने पहले ही मेलाधिकारी की नियुक्ति की जाती रही है, जिसके बाद वर्षाकाल शुरू हो जाने से सितंबर तक मेला क्षेत्र में कोई काम नहीं हो पाता था। अक्टूबर से काम शुरू होता था तो इतना कम समय रह जाता था कि उस समय शासन व प्रशासन का ध्यान सिर्फ इस ओर केंद्रित रहता था कि किसी प्रकार मेला कुशलतापूर्वक निपट जाय। जबकि मेरा यह दृष्टिकोंण रहा है कि महाकुम्भ एवं कुम्भ चूंकि विश्व के सबसे विशाल मेले हैं, इसलिए उनके बहाने प्रयागराज का अधिक से अधिक कल्याण किया जा सकता है और उसे विश्व के सुन्दरतम नगर एवं सबसे बड़े पर्यटन-केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है। प्रयागराज में हजारों साल का स्वर्णिम इतिहास उपेक्षित पड़ा हुआ है।

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हमेशा मेले से पहले लखनऊ व प्रयागराज में मेले से सम्बंधित बैठकों की लम्बी श्रृंखला चला करती है। बातों के गुब्बारे खूब फूटते हैं, लेकिन अंत में अंजाम वही ‘ढाक के तीन पात’ के रूप में होता है। तैयारी का हमेशा एक-जैसा रवैया रहा करता है। किन्तु इस बार अंतर यह था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ की तैयारी में स्वयं पूरी आस्था एवं समर्पणभाव से रुचि ली। उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में छह वर्ष पूर्व प्रयागराज में जो कुंभ सम्पन्न हुआ था, उसके अनुभव का भी इस महाकुंभ में लाभ उठाया। वह अनेक बार स्वयं प्रयागराज गए और पिटे-पिटाए रवैये की आदी नौकरशाही की नकेल कसते रहे। उन्होंने ईमानदार एवं परिश्रमी अफसर विजय किरण आनंद को पर्याप्त समय पूर्व महाकुंभ का मेलाधिकारी नियुक्त कर दिया। विजय किरण आनंद को पिछले कुंभ के मेलाधिकारी के रूप में पर्याप्त अनुभव हो चुका था। सच तो यह है कि योगी की सक्रियता के फलस्वरूप महाकुंभ पूरी तरह खिल उठा और पूरे विश्व में उसकी धूम मच गई। प्रयागराज के महाकुंभ का विश्वभर में डंका बज रहा है और अन्य देशों के लोग आश्चर्यचकित हैं कि इतना अतिविराट आध्यात्मिक जनसमागम भी संभव हो सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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