Lucknow News: दैशिक शास्त्र (Daishik Shastra) के रचयिता महान साधक सोमवारी महाराज ने हिमालय की कंदराओं में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से कहा था कि तुम शूद्र हो, इस पर लोकमान्य ने कहा भगवन मैं तो जाति से ब्राह्मण हूं। बाबा ने कहा कि तुम सेवा का कार्य करते हो, इसलिए तुम शूद्र हो। राष्ट्रहित में सेवा का कार्य करने वाले कर्म से सभी शूद्र हैं, भले जन्मनां किसी कुलीन जाति में ही क्यों न पैदा हुए हों। उक्त उदगार दैशिक शास्त्र पर शोध कर रही प्रोफेसर प्रो. अर्चना सुयाल ने सरस्वती कुंज निरालानगर के भाऊराव देवरस सभागार में आयोजित स्वाधीनता का अमृत महोत्सव व दैशिक शास्त्र पुनरावलोकन शताब्दी अनुवर्तन संगोष्ठी में व्यक्त किए। यह कार्यक्रम दैशिक शास्त्र अनुवर्तन समिति, विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश, इतिहास संकलन योजना और प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो. अर्चना सुयाल ने विषय विवेचना प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि सोमवारी बाबा के निर्देशन में दैशिक शास्त्र का लेखन बद्रीसाह टुलधिरया जी ने किया था। उन्होंने कहा कि हमारे महाकाव्य श्रीमद भगवद गीता और रामचरित मानस धर्म की व्याख्या करते हैं, लेकिन दैशिक समाज जीवन की सम्पूर्ण व्याख्या पर आधारित है। उन्होंने कहा कि इंसान अपने सुख के लिए जीवन भर लगा रहता है, लेकिन हमें व्यक्तिगत हित का त्याग करते हुए सामाजिक सुख के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत भूमि में इतनी उर्वरा शक्ति है कि 33 करोड़ देवी-देवता अवतरित हुए हैं। हमारे देश के ऋषियों-मुनियों ने देश और समाज के हित के लिए जो धर्म निभाया है, वही दैशिक धर्म है।
विशिष्ट अतिथि इतिहास संकलन योजना के सह संगठन मंत्री संजय श्रीहर्ष ने कहा कि दैशिक शास्त्र देश की रक्षा का शास्त्र है, इसका उल्लेख हमारे वेद और अन्य शास्त्रों में भी है। इसकी भूमिका बाल गंगाधर तिलक ने लिखी थी। उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन के लिए सुख आवश्यक है, उसकी अनुभूति लक्ष्य प्राप्ति के बाद ही होती है। उन्होंने कहा कि महापुरुषों के काम करने की शैली का अध्यन करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जिस राष्ट्र का विचार और चिति प्रबल होती है, वह देश सशक्त होता है।
कार्यक्रम अध्यक्ष केएमसी भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एनबी सिंह जी ने कहा कि दैशिक शास्त्र देश में जीवन जीने की पद्धति सिखाता है। उन्होंने कहा कि बौद्धिक ज्ञान हमें अपनी संस्कृति और परंपरा से जोड़ती है। नई राष्ट्र नीति में भी दैशिक शास्त्र के मुख्य बिंदुओं को समावेशित किया गया है।
विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद जीवन शर्मा ने कहा कि दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद का दर्शन दैशिक शास्त्र पर ही आधारित है। विद्या भारती के अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री यतीन्द्र, दैशिक शास्त्र अनुवर्तन समिति के संयोजक सुरेश सुयाल सहित अन्य वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। इससे पहले डॉ. स्वर्णलता पाठक ने दैशिक शास्त्र पर एक गीत प्रस्तुत किया। इसके साथ ही साहित्य के दर्पण में दैशिक शास्त्र पुस्तक का विमोचन किया गया।
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कार्यक्रम का संचालन विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रमुख सौरभ मिश्रा ने किया। अतिथियों का परिचय विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के अवध प्रांत के प्रदेश निरीक्षक राजेन्द्र बाबू ने और आभार ज्ञापन बालिका शिक्षा प्रमुख उमाशंकर मिश्रा ने किया। इस अवसर पर विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के संगठन मंत्री हेमचन्द्र, रजनीश पाठक, शिवभूषण, क्षेत्रीय मंत्री जय प्रताप, शैलेश मिश्रा, प्रो. जयशंकर पाण्डेय, राम कृष्ण चतुर्वेदी सहित सैकड़ों विद्वान मौजूद रहे।
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