प्रकाश सिंह
नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठनों की तरफ से शुरू किया गया किसान आंदोलन शुरू से ही विवादों में आ गया था। किसान आंदोलन को लेकर असली और नकली किसान को लेकर बहस छिड़ी तो किसानों के भेष में प्रदर्शन में खलिस्तानियों के शामिल होने की भी बात सामने आई। कुछ लोग इसे किसानों को बदनाम करने की साजिश के तहत देखने लगे और सरकार पर तरह-तरह के आरोप भी लगाने लगे। अब जब सरकार ने कृषि कानूनों को वापस ले लिया है तो भी लोग सरकार पर सवाल खड़े करने में लगे हुए हैं। वहीं किसानों का आंदोलन अभी भी जारी है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि किसानों के प्रदर्शन को विपक्ष का पूरा साथ मिल रहा है। विपक्ष किसानों को हथियार बनाकर सरकार के खिलाफ आग भड़काने की कोशिश कर रहा है। इसका प्रमाण दिल्ली के बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों को मुहैया कराई गई व्यवस्था से लगाया जा सकता है। कर्ज में डूबा किसान आत्महत्या कर लेता है, लेकिन सत्ता पक्ष के लोगों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती, वहीं विपक्ष का नेता भी किसान के घर तक पहुंचना उचित नहीं समझता। लेकिन वहीं किसान सरकार के खिलाफ जब डंडा लेकर प्रदर्शन करने उतर पड़ा है तो पूरा विपक्ष उसके साथ खड़ा नजर आ रहा है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के हठ को देखते हुए न सिर्फ कृषि कानूनों को वापस लिया, बल्कि किसानों से माफी भी मांग ली है। इसके बावजूद किसान नेता अभी भी प्रदर्शन खत्म करने के मूड में नहीं हैं। वहीं सरकार विरोधी ताकतें भी चाह रही हैं कि राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों तक किसानों का आंदोलन जारी रहे। सोशल मीडिया पर अब इस बात की बहस छिड़ गई है, कि अगर कृषि कानून सही थे तो वापस क्यों लिए गए। किसान नेता राकेश टिकैत किसान आंदोलन को एकबार फिर धार देने की कोशिश में लगे हुए हैं और इसी कड़ी में प्रदेश राजधानी लखनऊ में आज किसान महारैली के जरिए अपनी ताकत दिखा रहे हैं।
अब ऐसे लोगों को कौन समझाए कि किसानों के प्रदर्शन से करीब एक साल में देश को कितना नुकसान हुआ है। प्रदर्शन के दौरान कितने किसानों की मौत हो चुकी है? कितनों पर मुकदमे दर्ज हुए हैं? सोशल मीडिया पर आग भड़काना बहुत आसान होता है, मगर इस आग में सरकार के अपने लोग झुलसते हैं। प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को वापस करके विपक्ष की राजनीति को खत्म करने के साथ ही राजनीतिक दलों के इशारे पर दुम हिलाने वाले किसान नेताओं को भी बेनकाब कर दिया है। इसी का परिणाम हैं कि गाजीपुर बॉर्डर पर जहां किसान नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ है, वहीं किसानों की संख्या यहां लगातार कम होती जा रही है।
पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को अब यह बात समझ में आने लगी है कि जिस कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी थी वह उसी कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। अब जब वह कानून ही खत्म हो गया है, तो प्रदर्शन किस बात के लिए। हालांकि किसान नेताओं ने प्रदर्शन को आगे बढ़ाने के लिए एमएसपी का नया फार्मूला निकाल लिया है और यह साबित करने में लग गए हैं कि सीधे साधे किसान ही उनकी खेती हैं। फिलहाल बॉर्डर पर खाली होते टेंट यह बताने के लिए काफी हैं कि किसानों को अब ज्यादा दिनों तक गुमराह नहीं किया जा सकता।
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