Kisan Andolan: कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों द्वारा जारी विरोध अब 300वें दिन में प्रवेश कर चुका है और शंभू बॉर्डर से दिल्ली की ओर किसान एक बार फिर से पैदल मार्च करेंगे। इस पैदल मार्च की घोषणा किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने की है, जिन्होंने कहा कि किसान आंदोलन ने अब तक सरकार का असली चेहरा उजागर कर दिया है। पंढेर के मुताबिक, किसान अभी भी सरकार से बातचीत के लिए कोई निमंत्रण नहीं मिलने का आरोप लगा रहे हैं और उनका संघर्ष जारी रहेगा।
299 दिन के संघर्ष का जिक्र
किसान नेता पंढेर ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि आज हमारे विरोध प्रदर्शन के 299 दिन पूरे हो गए हैं और कल हम 300 दिन पूरे कर लेंगे। यह संघर्ष किसानों के अधिकारों के लिए है और इसे किसी भी हालत में रोका नहीं जा सकता। पंढेर ने किसानों के घायल होने के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि शुक्रवार, 6 दिसंबर को शंभू बॉर्डर पर हरियाणा पुलिस के साथ हुई झड़प में 16 किसान घायल हुए हैं। उन्होंने कहा, अगर हम मामूली रूप से घायलों को भी जोड़ें तो यह संख्या करीब 25 तक पहुंच सकती है। इन घायल किसानों में से एक की सुनने की क्षमता भी चली गई है।
किसान नेता ने यह भी बताया कि यह संघर्ष अब केवल कृषि कानूनों के विरोध तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह पूरे किसान समुदाय के अधिकारों की रक्षा का आंदोलन बन चुका है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सरकार की ओर से बातचीत का कोई प्रस्ताव अभी तक नहीं आया है, और इस स्थिति ने किसानों में और भी आक्रोश पैदा किया है।
पैदल मार्च की तैयारी
सरवन सिंह पंढेर ने कल के पैदल मार्च की जानकारी देते हुए कहा, कल दोपहर 12 बजे, करीब 101 किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली की ओर कूच करेगा। यह मार्च पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहेगा, और हम केवल अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए यह कदम उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से किसान ट्रैक्टर और ट्रॉलियों का उपयोग नहीं कर रहे हैं, फिर भी दिल्ली आने के रास्ते में रुकावटें डाली जा रही हैं।
पंढेर ने आगे कहा कि हमने पहले भी कहा था कि हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन सरकार ने हमारी आवाज को कभी सुना नहीं। यह सरकार किसानों से बातचीत करने की बजाय हमसे दूरी बनाए रख रही है। हमारी आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन हम किसी भी सूरत में पीछे नहीं हटेंगे। किसान नेताओं का आरोप है कि केंद्र सरकार ने इस आंदोलन को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की है, जबकि यह केवल किसानों का मुद्दा है।
मुआवजे का मुद्दा
किसान नेता पंढेर ने मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान का भी विरोध किया, जिसमें उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा की थी। पंढेर ने कहा, कृषि मंत्री ने MSP पर बयान दिया है, लेकिन क्या उन्होंने किसानों को अपनी फसलों के नुकसान का मुआवजा दिया है? हम अब तक अपनी फसलों के नुकसान का कोई मुआवजा नहीं प्राप्त कर पाए हैं। यह पूरी स्थिति भ्रामक और अस्पष्ट है। सरकार हमें सही दिशा में समाधान देने के बजाय केवल बयानबाजी कर रही है। किसान नेताओं का कहना है कि MSP पर बयान देना कोई हल नहीं है, जब तक किसानों को उनके वास्तविक मुद्दों पर न्याय नहीं मिलता। उन्होंने बताया कि पिछले कई महीनों से किसानों ने अपनी फसलों के नुकसान का मुआवजा देने की मांग की है, लेकिन सरकार ने इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
किसान आंदोलन का राजनीतिक पहलू
किसान आंदोलन के राजनीतिक पहलू पर भी पंढेर ने कहा, इस आंदोलन को किसी भी तरह से राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जा रही है, जबकि यह केवल किसानों का मुद्दा है। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे मुद्दों को गंभीरता से लेकर बातचीत करे, लेकिन अब तक कोई पहल नहीं की गई है। उनका मानना है कि सरकार ने किसानों की आवाज को अनसुना किया है और यह आंदोलन अब किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए है, न कि किसी राजनीतिक पार्टी के फायदे के लिए। किसान नेता ने यह भी कहा कि शंभू बॉर्डर पर पिछले कई महीनों से कृषि कानूनों के खिलाफ संघर्ष चल रहा है, और इस दौरान कई किसानों ने अपनी जान गंवाई है। उन्होंने कहा, किसान अपनी जान की परवाह किए बिना इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। यह कोई आसान संघर्ष नहीं है, लेकिन हम अपने अधिकारों की लड़ाई जारी रखेंगे।
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सरकार से बातचीत की उम्मीद
किसान नेता पंढेर ने एक बार फिर सरकार से आग्रह किया कि वह किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लेकर उनके साथ बातचीत करें। उन्होंने कहा, अगर सरकार हमारे साथ बैठकर बातचीत करती है, तो हम समाधान की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। लेकिन जब तक सरकार हमें बातचीत का न्योता नहीं देती, हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। किसान नेताओं का कहना है कि इस आंदोलन का उद्देश्य केवल कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध करना नहीं है, बल्कि यह पूरे किसान समुदाय की भलाई के लिए है। उनका मानना है कि सरकार को किसानों के मुद्दों को हल करने के लिए जल्दी कदम उठाने चाहिए ताकि देशभर में किसानों के बीच बढ़ती असंतोष की भावना को कम किया जा सके।
किसान आंदोलन अब 300वें दिन में प्रवेश कर चुका है और यह स्पष्ट है कि किसानों की लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। शंभू बॉर्डर से दिल्ली की ओर होने वाला पैदल मार्च इस संघर्ष के अगले चरण की शुरुआत है, और यह सरकार के लिए एक बार फिर से गंभीर संदेश है कि किसान अपनी मांगों को लेकर तैयार हैं। सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वह किसानों के मुद्दों पर ध्यान दे और उन्हें उचित समाधान प्रदान करे।
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