सच्चा समाजवाद
एक अंधा, एक लंगड़ा,
दोनों ने
एक-दूसरे को पकड़ा।
दोनों साथ-साथ चलने लगे,
एक-दूसरे पर मरने लगे।
बातों के बताशे फोड़ने लगे,
राष्ट्रवाद का
गला मरोड़ने लगे।
उनमें से एक युगपुरुष,
दमालू पर
सोने के वरक चढ़ाने लगा।
मुहब्बत का
कढाहा चढ़ाकर
नफरत की
जलेबियां बनाने लगा।
दूसरा युगपुरुष,
जातिवाद की
डुगडुगी बजाकर
लोगों को फंसाने लगा,
अलग-अलग खांचों में बांटकर
आपस में लड़ाने लगा।
‘श्याम’ दोनों का,
एक है फसाना,
गा रहे हैं मिलकर
एक ही तराना-
‘हमें अपना जलवा
दिखाना है,
हरएक का
खतना कराना है,
सच्चा समाजवाद लाना है।’
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