काश फिर ऐसा हो,
तुम मुझे फिर मिलो।
फिर मुझे जानने मैं रूचि लो,
मुझे वापस बताओ।
तुम्हारा लिखा पढ़ा मैंने,
बहुत खूब लिखती हो।।

फिर तुम्हें गले से लगा लू,
तुम फिर मुझे मना ना कर पाओ।
फिर तुम्हारे दोस्त मुझसे जले,
तुम फिर बस जवाब मैं मुस्कुरा जाओ।
फिर मेरी पढ़ी किताबें तुम्हारी किताबों से मिले,
मेरी अट्टपट बातें तुम धुएं मैं उड़ा जाओ।।

जिंदगी भर जो साधारण से गुण थे मेरे,
तुम एक पल में उन्हें ख़ास बना दो।
मैं फिर अजरक मै लिपटी तुमसे मिलने आऊ,
तुम फिर मेरी तस्वीर उतारो।
एक बार फिर,
कुछ गैर जिम्मेदाराना करो।।

मेरे केहने पर,
बस आँख बंद करो।
और, काश, फिर ऐसा हो,
तुम मुझे फिर मिलो।।

– ख्याति सुनिता

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