मैं जिसे पूरा समंदर चाहिए था
एक क़तरा भी नहीं मिला मुझे
ख्वाहिश थी खुद को ढूंढ लाने की
फिर आइना भी, टूटा मिला मुझे
ना मिलता तू तो जब्त कर जाता
मिलकर भी तू नहीं पूरा मिला मुझे
फासलों में हममें, नजदीकियां रहीं
नजदीकियों में फ़ासला मिला मुझे
मैं पेड़ों से मांगता रहा पानी
कागज़ों पर पानी लिखा मिला मुझे
स्याह रातों में की, रोशनी की दुआ
जलता हुआ इक जुगनू मिला मुझे
मंज़िलों की ज़िद में रूठा हुआ सफर
रस्ते के आखिर में रस्ता मिला मुझे
- प्रफुल्लित त्रिपाठी
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