माँ भोर में उठती है कि
माँ के उठने से भोर होती है
ये हम कभी नहीं जान पाये।
बरामदे के घोसले में
बच्चों संग चहचहाती गौरैया
माँ को जगाती होगी
या कि माँ की जगने की आहट से
शायद भोर का संकेत देती हो गौरैया।
हम लगातार सोते हैं
माँ के हिस्से की आधी नींद
माँ लगातार जागती है
हमारे हिस्से की आधी रात।
हमारे उठने से पहले
बर्तन धुल गये होते हैं
आँगन बुहारा जा चुका होता है
गाय चारा खा रही होती है
गौरैया के बच्चे चोंच खोले चिल्ला रहे होते हैं
और माँ चूल्हा फूंक रही होती है।
जब हम खोलते हैं अपनी पलकें
माँ का चेहरा हमारे सामने होता है
कि माँ सुबह का सूरज होती है
चोंच में दाना लिए गौरैया होती है।
– गौरव पाण्डेय
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