अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

मैं सदा रहूंगा ऋणी तेरा,
है जब-तक तन में प्रान प्रिये!
कलम लिखेगी क्या उसको,
है तुमने जो एहसान किये।।

भटका हुआ एक, पथिक था मैं,
तुमने मंजिल का सार दिया!
शूल पड़े जीवन पथ को,
नव कलियों का, उपहार दिया!!

है याद मुझे वह प्रथम मिलन,
मेरे हाथो को जब हाथ दिया!
हर नाजुक और कठिन पल में,
तुमने प्रिय पल-2 साथ दिया!!

निर्जन उपवन मेरे मधुवन का,
बनकर बसंत तुम आई हो।
सच पूछो तो बन कुसुम-लता,
मेरे मन मंदिर पे छाई हो!!

काली रात अमावस में मुझे,
पूनम का आभास दिया।
पतझड़ के आंगन से मुझको,
मादक मधुमय मधुमास दिया!!

अंश कोंख का, ऋण मुझपर,
जिसने यह घड़ा बनाया है!
ईश्वर की सारी रचना में,
तुझे सबसे बड़ा बनाया है!!

चुटकी भर सिंदूर और,
यह तेरा अद्भुत अर्पण?
बदले में स्वीकार करो,
प्रिय मेरा पूर्ण समर्पण!!

है यही दुआ ईश्वर से बस,
यह जीवन यही आधार मिले!
जब-जब जन्म धरा पर हो,
प्रिय तेरा ही, मुझे प्यार मिले!!

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