Kahani: एक गांव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे। एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को, 19 ऊंटों में से एक चौथाई मेरी बेटी को और 19 ऊंटों में से पांचवां हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएं। सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बंटवारा कैसे हो? 19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार, फिर सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया। वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोड़ा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊंट मिलाकर बांट दो।
सबने सोचा कि एक तो मरने वाला पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊंट मिलाकर बांट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।
19+1=20 हुए। 20 का आधा 10, बेटे को दे दिए। 20 का चौथाई 5, बेटी को दे दिए। 20 का पांचवां हिस्सा 4, नौकर को दे दिए। 10+5+4=19। बच गया एक ऊंट, जो बुद्धिमान व्यक्ति का था। वो उसे लेकर अपने गांव लौट गया। इस तरह 1 ऊंट मिलाने से, बाकी 19 ऊंटों का बंटवारा सुख, शांति, संतोष व आनंद से हो गया। सो हम सबके जीवन में भी 19 ऊंट होते हैं।
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5 ज्ञानेंद्रियां- (आंख, नाक, जीभ, कान, त्वचा)
5 कर्मेन्द्रियां- (हाथ, पैर, जीभ, मूत्र द्वार, मलद्वार)
5 प्राण- (प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान)
4 अंतःकरण- (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार)
कुल 19 ऊंट होते हैं। सारा जीवन मनुष्य इन्हीं 19 ऊंटों के बंटवारे में उलझा रहता है। और जब तक उसमें मित्र रूपी ऊंट नहीं मिलाया जाता, यानी के दोस्तों के साथ, सगे-संबंधियों के साथ जीवन नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।
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