अवश्यमेव भोक्तव्यं, कृतं कर्म शुभाशुभम्।
Kahani: गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि प्रत्येक जीव को अपने किये हुए अच्छे एवं बुरे कर्मों के फल को भोगना पड़ता है। एक गाँव में एक किसान रहता था उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक लड़का था। कुछ सालों के बाद पत्नी की मृत्यु हो गई उस समय लड़के की उम्र 10 वर्ष थी। किसान ने दूसरी शादी कर ली। उस दूसरी पत्नी से भी किसान को एक पुत्र प्राप्त हुआ। किसान की दूसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई।
किसान का बड़ा बेटा जो पहली पत्नी से प्राप्त हुआ था जब शादी के योग्य हुआ तब किसान ने बड़े बेटे की शादी कर दी। फिर किसान की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई। किसान का छोटा बेटा जो दूसरी पत्नी से प्राप्त हुआ था और पहली पत्नी से प्राप्त बड़ा बेटा दोनों साथ साथ रहते थे। कुछ समय बाद किसान के छोटे लड़के की तबीयत खराब रहने लगी। बड़े भाई ने कुछ आस पास के वैद्यों से इलाज करवाया पर कोई राहत ना मिली। छोटे भाई की दिन ब दिन तबीयत बिगड़ती जा रही थी और बहुत खर्च भी हो रहा था। एक दिन बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह की कि यदि ये छोटा भाई मर जाए तो हमें इसके इलाज के लिए पैसा खर्च न करना पड़ेगा। और जायदाद में आधा हिस्सा भी नहीं देना पड़ेगा।
तब उसकी पत्नी ने कहा कि क्यों न किसी वैद्य से बात करके इसे जहर दे दिया जाए। किसी को पता भी न चलेगा। किसी रिश्तेदार को भी कोई शक नहीं होगा। लोग समझेंगे कि बीमार था बीमारी से मृत्यु हो गई। बड़े भाई ने ऐसा ही किया। एक वैद्य से बात की कि आप अपनी फीस बताओ ऐसा करना मेरे छोटे बीमार भाई को दवा के बहाने से जहर देना है। वैद्य ने बात मान ली और लड़के को जहर दे दिया और लड़के की मृत्यु हो गई।
उसके भाई-भाभी ने खुशी मनाई की रास्ते का काँटा निकल गया अब सारी सम्पत्ति अपनी हो गई। उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। कुछ महीनों पश्चात उस किसान के बड़े लड़के की पत्नी को लड़का हुआ। उन पति-पत्नी ने खूब खुशी मनाई, बड़े ही लाड़ प्यार से लड़के की परवरिश की। कुछ ही गिने वर्षों में लड़का जवान हो गया। उन्होंने अपने लड़के की भी शादी कर दी। शादी के कुछ समय बाद अचानक लड़का बीमार रहने लगा। माँ-बाप ने उसके इलाज के लिए बहुत वैद्यों से इलाज करवाया। जिसने जितना पैसा माँगा दिया सब कुछ दिया ताकि लड़का ठीक हो जाए।
अपने लड़के के इलाज में अपनी आधी सम्पत्ति तक बेच दी पर लड़का बीमारी के कारण मरने की कगार पर आ गया। शरीर इतना ज्यादा कमजोर हो गया कि अस्थि-पिंजर शेष रह गया था। एक दिन लड़के को चारपाई पर लेटा रखा था और उसका पिता साथ में बैठा अपने पुत्र की ये दयनीय हालत देख कर दुःखी होकर उसकी ओर देख रहा था। तभी लड़का अपने पिता से बोला कि भाई। अपना सब हिसाब हो गया बस अब कफन और लकड़ी का हिसाब बाकी है उसकी तैयारी कर लो। ये सुनकर उसके पिता ने सोचा की लड़के का दिमाग भी काम नहीं कर रहा है बीमारी के कारण और बोला बेटा मैं तेरा बाप हूँ भाई नहीं। तब लड़का बोला मैं आपका वही भाई हूँ जिसे आप ने जहर खिलाकर मरवाया था। जिस सम्पत्ति के लिए आप ने मरवाया था मुझे अब वो मेरे इलाज के लिए आधी बिक चुकी है। आपकी शेष है हमारा हिसाब हो गया।
इसे भी पढ़ें: धन-ज्ञान का सदुपयोग कैसे करें
तब उसका पिता फ़ूट-फूट कर रोते हुए बोला कि मेरा तो कुल नाश हो गया। जो किया मेरे आगे आ गया। पर तेरी पत्नी का क्या दोष है जो इस बेचारी को जिन्दा जलाया जाएगा। (उस समय सतीप्रथा थी जिसमें पति के मरने के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था) तब वो लड़का बोला की वो वैद्य कहाँ है, जिसने मुझे जहर खिलाया था। तब उसके पिता ने कहा कि आप की मृत्यु के तीन साल बाद वो मर गया था। तब लड़के ने कहा कि ये वही दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी रूप में है मेरे मरने पर इसे जिन्दा जलाया जाएगा। हमारा जीवन जो उतार-चढ़ाव से भरा है इसके पीछे हमारे अपने ही कर्म होते हैं। हम जैसा बोएंगे, वैसा ही काटना पड़ेगा। कर्म करो तो फल मिलता है, आज नहीं तो कल मिलता है। जितना गहरा अधिक हो कुआँ, उतना मीठा जल मिलता है। जीवन के हर कठिन प्रश्न का, जीवन से ही हल मिलता है।
इसे भी पढ़ें: पवित्र दान