Kahani: एक कुम्हार को मिट्टी खोदते हुए अचानक एक हीरा मिल गया। उसने उसे अपने गधे के गले में बांध दिया। एक दिन एक बनिए की नजर गधे के गले में बंधे उस हीरे पर पड़ गई। उसने कुम्हार से उसका मूल्य पूछा। कुम्हार ने कहा, सवा सेर गुड़। बनिए ने कुम्हार को सवा सेर गुड़ देकर वह हीरा खरीद लिया। बनिए ने भी उस हीरे को एक चमकीला पत्थर समझा था, लेकिन अपनी तराजू की शोभा बढ़ाने के लिए उसकी डंडी से बाँध दिया। एक दिन एक जौहरी की नजर बनिए के उस तराजू पर पड़ गई। उसने बनिए से उसका दाम पूछा। बनिए ने कहा, पांच रुपए। जौहरी कंजूस व लालची था। हीरे का मूल्य केवल पांच रुपए सुनकर समझ गया कि बनिया इस कीमती हीरे को एक साधारण पत्थर का टुकड़ा समझ रहा है। वह उससे भाव-ताव करने लगा-पांच नहीं, चार रुपए ले लो। बनिये ने मना कर दिया, क्योंकि उसने चार रुपए का सवा सेर गुड़ देकर खरीदा था। जौहरी ने सोचा कि इतनी जल्दी भी क्या है? कल आकर फिर कहूँगा, यदि नहीं मानेगा तो पांच रुपए देकर खरीद लूँगा।
संयोग से दो घंटे बाद एक दूसरा जौहरी कुछ जरूरी सामान खरीदने उसी बनिए की दुकान पर आया। तराजू पर बंधे हीरे को देखकर वह चौंक गया। उसने सामान खरीदने के बजाए उस चमकीले पत्थर का दाम पूछ लिया। बनिए के मुख से पांच रुपए सुनते ही उसने झट जेब से निकालकर उसे पांच रुपये थमाए और हीरा लेकर खुशी-खुशी चल पड़ा। दूसरे दिन वह पहले वाला जौहरी बनिए के पास आया। पांच रुपए थमाते हुए बोला- लाओ भाई दो वह पत्थर। बनिया बोला, वह तो कल ही एक दूसरा आदमी पांच रुपए में ले गया। यह सुनकर जौहरी ठगा सा महसूस करने लगा। अपना गम कम करने के लिए बनिए से बोला, अरे मूर्ख ! वह साधारण पत्थर नहीं, एक लाख रुपए कीमत का हीरा था।
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बनिया बोला, मुझसे बड़े मूर्ख तो तुम हो। मेरी दृष्टि में तो वह साधारण पत्थर का टुकड़ा था, जिसकी कीमत मैंने चार रुपए मूल्य के सवा सेर गुड़ देकर चुकाई थी। पर तुम जानते हुए भी एक लाख की कीमत का वह पत्थर, पांच रुपए में भी नहीं खरीद सके। बन्धओं हमारे साथ भी अक्सर ऐसा होता है हमें हीरे रूपी सच्चे शुभ् चिन्तक मिलते हैं, लेकिन अज्ञानतावश पहचान नहीं कर पाते और उसकी उपेक्षा कर बैठते हैं, जैसे इस कथा में कुम्हार और बनिए ने की। और कभी पहचान भी लेते हैं, तो अपने अहंकार के चलते तुरन्त स्वीकार नहीं कर पाते और परिणाम पहले जौहरी की तरह हो जाता है। फिर पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं हो पाता।
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