Indian Sports News: राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक मजबूती तथा वर्चस्व के बाद दुनिया में कोई देश अपनी पहचान खेलों (Indian Sports News) में हासिल की गई उपलब्धियों के आधार पर बनाता है। उदाहरण के लिए क्यूबा, केन्या और इथोपिया जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान खेलों (Indian Sports News) के जरिए ही बनाई है। मुक्केबाजी में क्यूबा और एथलेटिक्स की मध्यम व लंबी दूरी कि दौड़ में केन्या व इथोपिया के खिलाड़ी छाए रहते हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान, चीन और कोरिया ने भी खेल मैदानों (Indian Sports News) में जलवे दिखा कर दुनिया को अपनी ताकत का एहसास कराया।
किसी भी देश की अंतरराष्ट्रीय छवि बनाने में खेलों का महत्व पूर्ण योगदान होता है। खेलों की स्पर्धा जब खेल भावना से होती है, तो वे दो देशों के बीच कटता की दीवारों को गिराने का काम भी करती है। मार्च, 2011 में जब पाकिस्तान की टीम भारत के खिलाफ विश्व कप क्रिकेट का सेमीफाइनल मैच खेलने मोहाली आई, वह दोनों टीमों के बीच कड़े मुकाबले के बावजूद आपसी सौहार्द भी नजर आया। इसलिए भारतीय उपमहाद्वीप में, क्रिकेट डिप्लोमेसी और यूरोप में फुटबॉल डिप्लोमेसी जैसे शब्द बहुत लोकप्रिय हुए हैं।
आज खेलों ने भले ही मैदानी स्पर्धा से व्यवसायिक तक तक का सफर तय कर लिया है, मगर पहले ऐसा नहीं था। कभी भारत में एक कहावत चलती थी, खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब। तब खेल या तो संपन्न लोगों के लिए शौक था, या आम लोगों के लिए सेहतमंद बने रहने का माध्यम।
भारत में आजादी से पहले कबड्डी, खो खो, कुश्ती, हॉकी , फुटबॉल और क्रिकेट प्रमुख खेल थे। इनमें से हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट अंग्रेजों की सैनिक मामलों में खेले जाते थे। वहां से निकलकर यह धीरे-धीरे आम नागरिकों तक पहुंचे। क्रिकेट काफी समय तक रियासतों के राजाओं, नवाबों और रसूखदार ओ तक सीमित रहा। मुंबई में बीसवीं शताब्दी के शुरू में यह पेंटा गूलर और क्वांडरी गूलर टूर्नामेंट के जरिए आम लोगों तक पहुंचा।
फुटबॉल कोलकाता के मैदानों में लोकप्रिय होने के बाद देश भर में फैल गई। हॉकी में भारत में 1928 में एमस्टरडम में ओलंपिक में पहली बार स्वर्ण पदक जीता, तो यह खेल विदेश के गांव गांव तक पहुंचा लगातार छह स्वर्ण पदक जीतने के परिणाम स्वरूप यह भारत का राष्ट्रीय खेल बन गया हालांकि 2008 में बीजिंग ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम क्वालीफाई भी नहीं कर पाई थी पर अब भी राष्ट्रीय खेल हॉकी है।
आजादी के बाद 1951 में पहले एशियाई खेल नई दिल्ली में आयोजित हुए। उनमें भारत 10 स्वर्ण पदक, 12 रजत और 12 कांस्य पदक जीतकर जापान के बाद दूसरे स्थान पर रहा। इस सफलता के बाद देश में खेल संस्कृति को बढ़ावा मिला। जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सभी प्रमुख खेलों के प्रशिक्षण का इंतजाम किया गया। इन खेलों की संघ हर स्तर पर गठित करके उन्हें भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के अंतर्गत लाया गया। केवल भारतीय क्रिकेट बोर्ड स्वायत्त रहा। वह आज भी भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के अंतर्गत नहीं हैं।
भारतीय खेल प्राधिकरण के प्रशिक्षण केंद्र जगह-जगह खोले गए। इन सभी को जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं नियमित रूप से आयोजित की जाने लगी। एशियाड और ओलंपिक खेलों जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए पहले से योजना बनाकर प्रशिक्षण दिया जाने लगा। इसके नतीजे भी सामने आए ओलंपिक खेलों में भारत भले ही ज्यादा सफलता नहीं पा सका, लेकिन एशियाड और दक्षिण एशियाई खेलों में भारत में अपनी पहचान बनाई। 1960 के दशक में रामनाथ कृष्णन, 1970 के दशक में अमृतराज बंधुओं, 1980 के दशक में रमेश कृष्णन और उसके बाद लिएंडर पेस, महेश भूपति व सानिया मिर्जा के बेहतरीन प्रदर्शन से भारत में ट्रेन इस लोकप्रिय हुई।
1970 80 के दशक में प्रकाश पादुकोण और उसके बाद सैयद मोदी, पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन में लोकप्रियता प्राप्त की आज वर्तमान समय में सानिया नेहवाल तथा पीवी सिद्धू जैसी प्रतिभाएं बैडमिंटन के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है। हॉकी में भारत का प्रदर्शन 1968 के मेक्सिको ओलंपिक से गिरना शुरू हुआ, 1975 में कुआलालंपुर में हुआ पहला विश्व कप जीतकर भारत इस खेल के जलवे को बनाए रखा।
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एथलेटिक्स, कुश्ती और निशानेबाजी मैं भी भारतीय खिलाड़ियों ने समय-समय पर अच्छे प्रदर्शन किए। बिलियर्ड्स और स्नूकर में कई एशियाई और विश्व चैंपियन भारत से निकले। नई दिल्ली में 1982 में आयोजित एशियाई खेलों से आधुनिक खेल सुविधाओं का ढांचा मिला। वही 2010 में हुए राष्ट्रीय खेल मंडलों से या ढांचा और बड़ा। इससे खेलों का प्रचार भी हुआ और हर खेल की राष्ट्रीय टीम में देश के दूरदराज के के गुणों से भी खिलाड़ी आने लगे पिछले दो दशकों में क्रिकेट के अलावा जिस खेल में भारत में सबसे ज्यादा नाम कमाया है वह शतरंज।
विश्वनाथ आनंद रूसी वर्चस्व को तोड़कर चार बार विश्व चैंपियन बने। सचिन तेंदुलकर ने पहला टेस्ट मैच खेलने से 2 साल पहले, 1987 में ही आनंद जूनियर विश्व शतरंज चैंपियन बन चुके थे। उनकी उपलब्धियां सचिन तेंदुलकर से कम नहीं मानी जा सकती, क्योंकि उन्होंने बिना किसी सहायता या समर्थन के एक अत्यधिक प्रतिस्पर्धा खेल में सफलता की बुलंदियों को छुआ है। अंतराराष्ट्रीय अस्तर के अनुरूप बने रहने के लिए उन्हें स्पेन में रहना पड़ा, मगर भी अपनी हर उपलब्धि देश के नाम करते रहे, आनंद की सफलता से प्रेरित होकर भारत में अनेक युवा शतरंज खिलाड़ी सामने आए और ग्रैंड मास्टर बने।
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भारत में 1932 में पहला क्रिकेट टेस्ट मैच इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में खेला था। खिलाड़ियों के शानदार के प्रदर्शन के बावजूद देश में क्रिकेट की लोकप्रियता 1971 में तब बड़ी, अजीत वाडेकर की कप्तानी में भारत में वेस्टइंडीज से उसी की धरती पर टेस्ट श्रृंखला जीती। 1983 में कपिल देव की टीम ने वनडे क्रिकेट प्रतियोगिता और 2007 में महेंद्र सिंह धोनी की टीम ने पहला t20 विश्व कप जीता, तो क्रिकेट का जुनून खेल प्रेमियों के सिर चढ़ गया।
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2008 में आईपीएल की शुरुआत हुई इसके शुरू होने से क्रिकेट के क्षेत्र में नया रोमांच और रिकॉर्ड लोकप्रियता का बना। आज भारत में सभी प्रमुख खेल खेले जाते हैं, मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत कभी दूसरे एशियाई देशों चीन और जापान जैसा प्रदर्शन नहीं कर सका। इसकी वजह यह है कि यहां की खेल संघों पर गैर खिलाड़ियों का कब्जा, उनके कामकाज में पेशेवरपन का अभाव, गुटबाजी और अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं व प्रशिक्षण ना होना। इन बाधाओं को दूर करके भारत खेलों में भी महाशक्ति बन सकता है।
(लेखक खेल शिक्षक हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)