नई दिल्ली: माउंट एवरेस्ट विजेता एवं स्कूबा डाइविंग में विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली मेघा परमार ने कहा है कि अगर आप कामयाब होना चाहते हैं, तो आपके अंदर कामयाबी का जुनून होना चाहिए। आपका जुनून आपसे वह सब कराता है, जिसे आप करने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकते। सुश्री परमार शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ को संबोधित कर रही थीं। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, अपर महानिदेशक आशीष गोयल एवं प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी रश्मि गोल्या भी मौजूद थीं।
‘संघर्ष से सफलता’ की अपनी कहानी बताते हुए सुश्री परमार ने कहा कि जब मैंने माउंट एवरेस्ट पर मध्य प्रदेश की बेटी के रूप में तिरंगा फहराया, तो उस वक्त मन में संकल्प लिया था कि एक बार समुद्र की गहराई में जाकर तिरंगा लहराऊं। मुझे पता चला कि इसके लिए टेक्निकल स्कूबा डाइविंग करनी पड़ेगी, जो बहुत कठिन होती है। लेकिन मेरे मन में दृढ़ संकल्प था, जिसे मैं अपनी मेहनत से पूरा करना चाहती थी।
उन्होंने कहा कि पहले मुझे स्विमिंग सीखनी पड़ी। लगातार डेढ साल तक हर दिन आठ घंटे ट्रेनिंग की। स्कूबा डाइविंग के सभी कोर्स किए। इस दौरान 134 डाइव की। इसमें जान जाने का भी जोखिम होता है। इसके बाद मैंने 147 फीट (45 मीटर) की टेक्निकल स्कूबा डाइविंग कर नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। मेघा ने बताया कि भारत में 80 से कम महिलाओं ने माउंट एवरेस्ट फतह किया है, लेकिन समुद्र के अंदर 45 मीटर तक टेक्निकल डाइव करने वालीं महिलाओं के नाम तक नहीं मिलते।
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अपने पहले प्रयास में माउंट एवरेस्ट विजय से महज 700 फुट पहले ही चूक गईं मेघा परमार ने कहा कि असफलता से हताशा तो आती है, लेकिन समाज में कई लोग आपका हौसला बढ़ाते हैं। ट्रेनिंग के दौरान चोटिल होने के बाद अपनी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन करा चुकी मेघा परमार ने हार नहीं मानी और 22 मई 2019 को सुबह 5 बजे वह भारत के राष्ट्रीय ध्वज के साथ एवरेस्ट पर जा पहुंची। सुश्री परमार ने कहा कि आपको अपनी फिजिकल फिटनेस के लिए रोज कड़ा परिश्रम और मानसिक फिटनेस के लिए योग और प्राणायाम करना चाहिए।
मेघा परमार ने कहा कि एवरेस्ट यात्रा के दौरान पीने के लिए हमेशा पानी नहीं मिल पाता। हर समय अंदर से शरीर टूटता है। सांस नहीं ली जाती। एवरेस्ट यात्रा की घटनाओं का सजीव वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह एक पर्वतारोही को यात्रा के दौरान मरे हुए लोगों की लाशों से गुजरना पड़ता है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रचना शर्मा ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन आउटरीच विभाग के प्रमुख प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार ने किया।
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