नई दिल्ली: परिवारवादी विपक्षी पार्टियों के विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकतंत्र के मंदिर यानि नये भारत की संसद को देश को समर्पित कर दिया है। चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुटता दिखने वाली विपक्षी पार्टियों ने इस बार नये संसद के उद्घाटन में भी एकजुटता दिखाई। हालांकि 20 राजनीतिक पार्टियों के कार्यक्रम के बहिष्कार के बाद भी कई क्षेत्रीय पार्टी के नेता इस एतिहासिक क्षण के गवाह बने। नये संसद के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार के पीछे कुछ विपक्षी पार्टियों का अपना तर्क रहा, इन सबके बीच गौर करने वाली बात यह रही है कि उद्घाटन समारोह में शामिल न होने वाले सभी दलों को परिवारवादी पार्टी माना जाता है। इसमें प्रमुख रूप से कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डीएमके, शिवसेना उद्धाव ठाकरे, आरजेडी आदि ऐसे दल हैं, जिनका वेश ही परिवार पर टिका है।
कार्यक्रम के बहिष्कार में शामिल पार्टियों की मजेदार बात यह है कि इन पार्टी के प्रमुख चाह कर भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकते थे। ऐसे में विरोध का ऐसा प्रोपेगंडा बनाया गया कि उनके दल के अन्य नेता भी इस एतिहासिक क्षण का हिस्सा होने से रह गए। इनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, जिनका बीते दिनों सजा के बाद संसद की सदस्यता समाप्त हो गई। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव जो सासंद की जगह विधायक है, जो उनका में संसद में पहुंचने का कोई औचित्य नहीं रह गया। चारा घोटाले के दोषी लालू प्रसाद यादव की आरजेडी, जिसमें उनके परिवार का एक भी सांसद नहीं है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे) का लगभग यही हाल है। तृणमूल कांग्रेस से ममता बनर्जी सहित ऐसे चेहरे हैं, जिनका नई संसद में पहुंचना मुश्किल था। ऐसे में मोदी विरोध में नई संसद का ऐसा विरोध किया गया कि इनके दल के जनता के चुने हुए सांसद भी इस लोकतंत्र के मंदिर में शामिल नहीं हो सके।
The new Parliament House is a reflection of the aspirations of new India. https://t.co/qfDGsghJgF
— Narendra Modi (@narendramodi) May 28, 2023
गौरतलब है कि विपक्षी पार्टियों ने संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का एलान पहले ही कर दिया था। इनमें से 19 पार्टियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा था कि पीएम मोदी द्वारा संसद के नए भवन का उद्घाटन लोकतंत्र का अपमान और उस पर सीधा हमला है। नई संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराया जाए, क्योंकि वह देश के प्रमुख होते हैं और संसदीय परंपरा का भी हिस्सा होते हैं। राष्ट्रपति के बिना संसद काम नहीं कर सकती। जिन पार्टियों ने कार्यक्रम का बहिष्कार किया, उनमें कांग्रेस, डीएमके, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), आप, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस मानी, विधुथलाई चिरुथाईगल काची, रालोद, टीएमसी, जदयू, एनसीपी, सीपीआई एम, राजद, आईयूएमएल, नेशनल कान्फ्रेंस, आरएसपी, एमडीएमके, एआईएमआईएम शामिल रहीं।
हालांकि नई संसद के उद्घाटन में भी विपक्षी एकता नहीं दिखी। क्षेत्रीय पार्टियों ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कार्यक्रम में शामिल हुए और लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए का हिस्सा होने का संकेत भी दिया। इसी रणनीति के तहत कई राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख संसद में अगली पंक्ति में बैठे नजर आए। इनमें जदएस नेता एचडी देवेगौड़ा, वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख और आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी और बीजद प्रमुख नवीन पटनायक जैसे नेता शामिल रहे। साथ ही लोजपा (रामविलास), बसपा, तेदेपा के नेता भी उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए।
उद्घाटन में शामिल सांसद
बीजेपी- 301
वाईएसआरसीपी- 22
बीजेडी- 12
बीएसपी- 9
लोक जनशक्ति पार्टी- 6
टीडीपी- 3
अपना दल (एस)- 2
शिरोमणि अकाली दल- 2
एजेएसयू पार्टी- 1
एआईएडीएमके- 1
मिजो नेशनल फ्रंट- 1
नगा पीपल्स फ्रंट- 1
नेशनल पीपल्स पार्टी- 1
एनडीपीपी- 1
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा- 1
शिवसेना (शिंदे)- 12
जेडीएस- 1
कुल सांसद- 377
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उद्घाटन में न शामिल होने वाले सांसद
कांग्रेस- 50
डीएमके- 24
टीएमसी- 23
शिवसेना (यूबीटी)- 7
जेडीयू- 16
टीआरएस- 9
एनसीपी- 5
सीपीआईएम- 5
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग- 3
नेशनल कॉन्फ्रेंस- 2
समाजवादी पार्टी- 3
एआईएमआईएम- 2
सीपीआई- 2
आम आदमी पार्टी- 1
इंडियन नेशनल कांग्रेस- 1
जेएमएम- 1
केरल कांग्रेस (एम)- 1
रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी- 1
विधुथलाई चिरुथैगल काची- 1
कुल सांसद- 156
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