नई दिल्ली। जब भारत आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तब असम की पत्रकारिता 175 वर्ष पूर्ण कर चुकी है। आज से 25 वर्ष बाद जब भारत आजादी की 100वीं सालगिरह मना रहा होगा, तब असम की पत्रकारिता 200 वर्ष पूर्ण कर रही होगी। मेरा मानना है कि उस वक्त के न्यू इंडिया में न्यू असम की पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। यह विचार केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सोमवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा ‘असम में पत्रकारिता के 175 वर्ष’ पूर्ण होने के अवसर पर आयोजित सेमिनार में व्यक्त किए। कार्यक्रम में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, असम राज्य सूचना आयोग के सूचना आयुक्त समुद्रगुप्त कश्यप, ‘द असम ट्रिब्यून’ के कार्यकारी संपादक प्रशांत ज्योति बरुआ और ‘दैनिक पूर्वांचल प्रहरी’ के कार्यकारी संपादक वशिष्ठ नारायण पांडेय ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र की पत्रकारिता की एक समृद्ध परंपरा है। असम में पत्रकारिता का इतिहास भारत के साथ-साथ पूर्वोत्तर के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। 1970 के आसपास असम की पत्रकारिता सामाजिक विषयों के लिए समर्पित थी, लेकिन इसके बाद मीडिया ने सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 2014 के बाद असम में एक ऐसे लोकतंत्र का उदय हुआ है, जिसने अखबारों के शीर्षक बदल दिए हैं। जहां पहले आतंकवाद और भ्रष्टाचार पत्रकारिता के विषय हुआ करते थे, वहीं अब सुशासन और समृद्धि अखबारों की सुर्खियों बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था के उत्थान में असम का महत्वपूर्ण योगदान है।
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डॉ. सिंह ने कहा कि असम की पत्रकारिता को अब अगले 25 वर्षों का लक्ष्य तय करना करना चाहिए। उसे नए विचारों पर काम करना चाहिए और समाज की समस्याओं का समाधान कर नई उपलब्धियां हासिल करनी चाहिए। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि असम में मीडिया के 175 वर्ष पूर्ण होने का यह अवसर असमिया साहित्य और पत्रकारिता के उन दिग्गजों के बलिदान को याद करने का अवसर है, जिन्होंने असम में मीडिया की नींव रखी। उन्होंने कहा कि ऐसी महान हस्तियों के कारण ही असम, न सिर्फ पूर्वोत्तर भारत के प्रहरी के रूप में स्थापित हुआ, बल्कि साहित्य, संस्कृति और आध्यात्म के क्षेत्र में भी उसने अपनी अलग पहचान बनाई।
असम राज्य सूचना आयोग के सूचना आयुक्त समुद्रगुप्त कश्यप ने कहा कि असम को लोग भूपेन हजारिका के नाम से जानते हैं, लेकिन लोग ये नहीं जानते कि वो देश के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने वर्ष 1949 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से जनसंचार में पीएचडी की थी। उन्होंने कहा कि भूपेन हजारिका सिर्फ गीतकार और संगीतकार ही नहीं थे, बल्कि एक कुशल पत्रकार भी थे। ‘दैनिक पूर्वांचल प्रहरी’ के कार्यकारी संपादक वशिष्ठ नारायण पांडेय ने कहा कि एक वक्त था, जब आतंकवाद के खिलाफ रिपोर्टिंग करना असम में जोखिम भरा काम था। इस दौरान कई पत्रकारों को अपनी जान गंवानी पड़ी, लेकिन इसके बावजूद भी मीडिया ने सत्य के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि आज असम की हिंदी पत्रकारिता में स्पर्धा का दौर शुरू हुआ है और इसके कारण पाठकों को उनकी रुचि के अनुसार सामग्री पढ़ने को मिल रही है।
‘द असम ट्रिब्यून’ के कार्यकारी संपादक प्रशांत ज्योति बरुआ ने कहा कि असम में पत्रकारिता की शुरुआत लोगों की समस्याओं को उन्हीं की भाषा में अधिकारियों तक पहुंचाने से हुई। असमिया, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं ने पत्रकारिता के माध्यम से समाज की समस्याओं का समाधान करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि समय के साथ मीडिया की भूमिका भी बदली है, लेकिन इसका उद्देश्य अब भी वही है। कार्यक्रम का संचालन आईआईएमसी के डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. शाश्वती गोस्वामी ने किया। समारोह में संस्थान के समस्त विद्यार्थियों, प्राध्यापकों एवं कर्मचारियों ने भाग लिया।
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