ईरान का हमास या फिर हिजबुल्लाह के साथ क्या रिश्ता है? क्यों बर्बाद होना चाहता है ईरान? इस युद्ध और तकरार में ईरान को क्या हासिल होने वाला है? मुस्लिम दुनिया की यूनियनबाजी करने और मुस्लिम दुनिया के नेता बनने से ईरान को क्या लाभ होने वाला है। ईरान क्या इस्राइल के बुलंद इरादों को कुचल पायेगा, उसकी हिंसक मिसाइलों का ईरान क्या संहार कर पायेगा? ईरान का साथ देने में कोई और मुस्लिम देश आगे क्यों नहीं आ रहे हैं? ईरान को छोड़कर अन्य मुस्लिम देश प्रत्यक्ष तौर पर हमास या फिर हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठन को मदद करने या फिर उसके पक्ष में युद्ध करने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं?
ईरान जिस प्रकार से हमास, हिजबुल्लाह के पक्ष में हिंसक होकर इस्राइल के साथ युद्ध और तकरार को आगे बढ़ा रहा है उससे फिलिस्तीन समस्या का समाधन होने की कोई उम्मीद बनती है क्या? ईरान अपना संहार खुद क्यों कराना चाहता है? इस्राइल अपने दुश्मनों का समूल संहार करके ही दम लेता है, ईरान को इस्राइल की इस शक्ति और संकल्प को स्वीकार करना ही होगा।
सच तो यह है कि ईरान की युद्धक कार्रवाइयों का जवाब इस्राइल ने भीषण तौर पर दिया है, खतरनाक तौर पर दिया है तथा सबक भी भयंकर दिया है। ईरान का तीसरा पक्ष बन जाना ही विश्व समुदाय के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है, इस्राइल को अपने भीषण और खतरनाक हमलों तथा अमानवीय कार्रवाइयों के लिए समर्थन जुटाने और विश्व जनमत तैयार करने में सफलता मिल रही है। संयुक्त राष्ट्रसंघ अपने सिद्धातों के प्रति जवाबदेह और लामबंद होने के बावजूद इस्राइल के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की बात तो दूर रही बल्कि इस्राइल पर दबाव बनाने में भी असफल है। ईरान, हमास और हिजबुल्लाह जब तक संयम का प्रदर्शन नहीं करेंगे तबतक इस्राइल को विश्व के जनमत का समर्थन मिलता रहेगा। संयुक्त राष्ट्रसंघ अपनी मानवीय कारवाइयों को जमीन पर उतारने में सफल नहीं हो सकता है। अभी फिलिस्तीन में मानवीय समस्याएं कितनी भयानक हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मानवीय सहायता पहुंचाने की चाकचौबंद व्यवस्था बहुत ही जरूरी है।
इस्राइल ने एक बार फिर अपने कथन को साबित किया, अपनी धमकियों को अंजाम दिया और वह दुनिया को बता दिया कि मैं सिर्फ धमकी नहीं देता हू, सिर्फ चेतावनी नहीं देता हूं और न ही सिर्फ डर दिखाता हूं। मेरे कथन, मेरी धमकियों और मेरी चेतावनियों का हिंसक और भयानक प्रदर्शन भी होता है। उसका लहूलुहान वाला दुष्परिणाम भी आता है, गुनहगार पक्ष सजा भी भुगतता है। उल्लेखनीय है कि इस्राइल ने कोई पच्चीस दिन बाद ईरान का जवाब दिया था। इस्राइल का जवाब बहुत ही भयानक था, बहुत ही गंभीर था और नुकसानकुन भी था। पूरा ईरान इस्राइली हमलों से दहल गया। सैकड़ों इस्राइली विमानों ने एक साथ हमले किये, इस्राइली विमानों और डोरनों के गड़गडाहट से पूरा ईरान थर-थरा गया,त्राहिमाम करने लगा।
इस्राइली विमानों ने सैकड़ों ईरानी फैक्टरियों और सैनिक अड्डों पर हमले कर उन सब का संहार कर दिया, सैनिकों के साथ ही साथ असैनिक लोग भी मारे गये। इस्राइल हमले से ईरान का कितना नुकसान हुआ है, इसका आकलन करना मुश्किल है पर ईरान खुद कहता है कि इस्राइल ने बहुत ही गलत किया है। उसकी सेना और असैनिक प्रतिष्ठानों को नुकसन पहुंचा कर और लहूलुहान कर इस्राइल ने मानवता विरोधी काम किया है। जब ईरान खुद इस बात को स्वीकार कर रहा है कि इस्राइल के हमला भीषण था और अमानवीय था तब इसका आकलन लगाना भी आसान है कि ईरान का नुकसान कितना ज्यादा हुआ होगा।
कोई भी हिंसा या प्रतिहिंसा और कोई भी हमला, युद्ध अमानवीय ही होता है, संहार करने वाला ही होता है, नुकसान करने वाला होता है। हिंसा, प्रतिहिंसा, हमला या फिर युद्ध कोई निर्माण नहीं करता है, कोई लाभ पहुंचाता नहीं है सिर्फ और सिर्फ बर्बादी, तबाही लाता है, पहुंचाता है। इसीलिए चाहे इस्राइल का हमला हो, चाहे इस्राइल पर ईरान का हमला हो या फिर इस्राइल पर हमास व हिजबुल्लाह का हमला और हिंसा हो, इन सभी का मानवता के प्रति संहार की ही भूमिका है, लहूलुहान की मानसिकता है और बर्बादी-विनाश की कार्रवाइयां ही हैं। ईरान के सर्वोच्च मौलवी खामेनई की प्रतिक्रिया देख लीजिये, खामेनई ने कहा कि इस्राइल ने गलत कदम उठाया है। खामनेई की प्रतिक्रिया तल्ख होने के साथ ही साथ हिंसक चेतावनी वाली भी है।
खामनेई ने इस्राइल को परिणाम भुगतने के लिए चेतावनी भी दी है। खामनेई अगर इस प्रकार की चेतावनी नहीं देते तो फिर हमास और हिजबुल्लाह को परेशानी ही होती। खामनेई भी अपने देश में अपने आप को कमजोर देखना नहीं चाहेंगे, अपनी मजबूत शक्ति को स्थाई रखना चाहेंगे। ईरान मे भी इस्राइल के साथ टकराव या युद्ध को लेकर मतभिन्ता का होना भी निश्चित है। पर खामनेई को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। सेना हमेशा सर्वोच्च मौलवी के आदेशों और विचारों के साथ खड़ी रहती है। ईरान में इस्लामिक क्रांति के साथ ही साथ सर्वोच्च मौलवी की तानाशाही चलती है, असैनिक राष्ट्रपति सिर्फ मोहरा होता है, सारी शक्तियां सर्वोच्च मौलवी में निहित होती हैं।
खामनेई का अगला कदम क्या होगा, खामनेई का अगला कदम संयम वाला होगा या फिर तनाव को बढ़ाने वाला होगा, हिंसा का प्रसार करने वाला होगा, युद्ध को भयानक बनाने वाला होगा? इसकी प्रतिक्षा पूरी दुनिया कर रही है। खामनेई अगर तनाव में माचिस मारते हैं तो फिर क्या होगा? अगर खामनेई तनाव में माचिस नहीं मारते हैं तो फिर यह माना जायेगा कि वे इस्राइल के सामने नतमस्तक हो गये। हथियार डाल दिये और उनमें मुस्लिम देश की यूनियनबाजी करने की ही शक्ति नहीं है। अगर सही में उन्होंने इस्राइल पर प्रतिक्रिया वादी हुए और हमला करने की कोशिश की तो उसका दुष्परिणाम बहुत भयंकर होगा। दुष्परिणाम इतना भयंकर होगा कि ईरान ने इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता है। इस्राइल जवाब देने में थोड़ा संयम बरता है पर आगे वह जवाब देने में सयंम नहीं बरतेगा।
इस्राइल अब ईरान का संपूर्ण संहार करने की नीति पर काम करेगा, ईरान की संसद, ईरान का सेना मुख्यालय, सैनिक अड्डे और परमाणु भट्ठियां उसके निशाने पर होंगी। ईरान का परमाणु कार्यक्रम तो जगजाहिर ही है। उसके परमाणु कार्यक्रम से अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश भी नाराज है और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को दुनिया की शांति और विकास में बाधा माना जाता है। इस्राइल अगली बार ईरान के परमाणु भठियों का संहार करने के लिए अपने मिसाइलों को गतिशील करेगा। परमाणु भठियां जब जल कर राख होंगी तब ईरान को कितना बड़ा नुकसान होगा?
ईरान को अपने संपूर्ण संहार से बचना चाहिए। इस्राइल के साथ ईरान का टकराव सिर्फ और सिर्फ इस्लामिक है। अन्यथा इस्राइल और ईरान के बीच कोई टकराव का प्रश्न ही नहीं है। इस्राइल और ईरान के बीच कोई सीमा नहीं है और न ही इस्लामिक हित को छोड़ कर अन्य प्रश्न है। जब ईरान सिर्फ और सिर्फ इस्लामिक दृष्टि पर ही इस्राइल के साथ युद्ध करेगा तो फिर शेष दुनिया का समर्थन उसे क्यों और कैसे मिलेगा? शेष दुनिया का समर्थन नहीं मिलेगा तो फिर ईरान स्वयं के आधार पर इस्राइल को क्या बिगाड़ लेगा? अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश पहले ही ईरान को चेतावनी दे चुके हैं। खुद मुस्लिम दुनिया पूरी तरह से ईरान के साथ नहीं है।
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मुस्लिम दुनिया के अधिकतर देश इस्राइल की आलोचना तो करते हैं पर ईरान की तरह इस्राइल से प्रत्यक्ष युद्ध करने के लिए राजी नहीं है और न ही ईरान को युद्ध में साथ देने के लिए तैयार हैं। मुस्लिम दुनिया के अधिकतर देश अपने हित को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठन सिर्फ अपने क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, उनका नेटवर्क पूरी मुस्लिम दुनिया में भी है। इसलिए कोई मुस्लिम देश अपने यहां हमास और हिजबुल्लाह जैसे कीटाणुओं को पैदा करने और उनका पोषण करने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उनके सामने अफगानिस्तान, लेबनान, फिलीस्तीन और पाकिस्तान का हस्र सामने हैं। ईरान की भलाई सयंम में ही है। अगर ईरान को बर्बाद होना है तो वह इस्राइल के साथ प्रत्यक्ष युद्ध करे। ईरान का संहार और बर्बाद करने के लिए इस्राइल को रोकने वाला भी कोई नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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