Gyaan Ki Baat: शास्त्रों में मनुष्य को प्रात:काल उठने के बाद धरती माता की वंदना करके ही भूमि पर पैर रखने का विधान किया गया है। पहले दायें पैर को भूमि पर रख कर हाथ से पृथ्वी का स्पर्श कर फिर मस्तक पर लगाया जाता है, साथ ही पांव रखने के लिए विष्णुपत्नी भूदेवी से क्षमा मांगी जाती है—‘हे धरती माता ! मुझे तुम्हारे ऊपर पैर रखने में बहुत संकोच होता है, तुम तो मेरे भगवान की शक्ति हो।’
भूमि-वंदना का मंत्र इस प्रकार है—
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।
अर्थात्–समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली, पर्वतरूपी स्तनों से शोभित विष्णुपत्नी, मेरे द्वारा होने वाले पाद स्पर्श के लिए आप मुझे क्षमा करें। भगवान नारायण श्रीदेवी और भूदेवी (पृथ्वी) के पति हैं। भूदेवी कश्यप ऋषि की पुत्री हैं और पुराणों में इनका एक देवी रूप है। भूदेवी अपने एक रूप से संसार में सब जगह फैली हुईं हैं और दूसरे रूप में देवी रूप में स्थित रहती हैं। कश्यप ऋषि की पुत्री होने से ये ‘काश्यपी’, स्थिर रूप होने से ‘स्थिरा’, विश्व को धारण करने से ‘विश्वम्भरा’, अनंत रूप होने से ‘अनंता’ और सब जगह फैली होने से ‘पृथ्वी’ कहलाती हैं। भगवान की पत्नी होने के कारण वे ‘विष्णुप्रिया’ के नाम से जानी जाती हैं।
सृष्टि के समय ये प्रकट होकर जल के ऊपर स्थिर हो जाती हैं और प्रलयकाल में ये जल के अंदर छिप जाती हैं। वाराहकल्प में जब हिरण्याक्ष दैत्य पृथ्वी को चुराकर रसातल में ले गया, तब भगवान श्रीहरि हिरण्याक्ष को मार कर रसातल से पृथ्वी को ले आए और उसे जल पर इस प्रकार रख दिया, मानो तालाब में कमल का पत्ता हो। इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसी पृथ्वी पर सृष्टि रचना की। उस समय वाराहरूपधारी भगवान श्रीहरि ने सुंदर देवी के रूप में उपस्थित भूदेवी का वेदमंत्रों से पूजन किया और उन्हें ‘जगतपूज्य’ होने का वरदान देते हुए कहा— तुम सबको आश्रय प्रदान करने वाली बनो। देवता, सिद्ध, मानव, दैत्य आदि से पूजित होकर तुम सुख पाओगी। गृहप्रवेश, गृह निर्माण के आरम्भ, वापी, तालाब आदि के निर्माण के समय मेरे वर के कारण लोग तुम्हारी पूजा करेंगे।’इसके बाद त्रिलोकी में पृथ्वी की पूजा होने लगी।
क्यों करनी चाहिए भूमि वंदना?
नींद से उठने के बाद चूंकि हमें बिस्तर से उतर कर आगे के कार्यों के लिए भूमि पर पांव रखना पड़ेगा और कौन मनुष्य ऐसा होगा जिसे अपनी माता के ऊपर पैर रखना अच्छा लगेगा? इसी विवशता के कारण सबसे पहले भूमि वंदना कर उन पर पांव रखने के लिए विष्णुपत्नी भूदेवी से क्षमा मांगी जाती है। पृथ्वी माता ने सबको धारण कर रखा है। अत: वे सभी के लिए पूज्य और वंदन-आराधन के योग्य हैं। वह न रहें या उनकी कृपा न रहे तो सारा जगत कहीं भी ठहर नहीं सकता है। पृथ्वी माता धैर्य और क्षमा की देवी हैं। पृथ्वी पर मनुष्य कितना आघात करता है, जल निकालने के लिए भूमि के हृदय को चीरा जाता है। अन्न उपजाने के लिए भूमि के हृदय पर हल चलाया जाता है। मनुष्य व जीव-जन्तु भी उस पर मल-मूत्र का त्याग करते हैं। लेकिन धरती को कभी क्रोध नहीं आता। जिस दिन धरती माता को क्रोध आ जाए, धरती हिलने लगे, भूकम्प आ जाए तो मानव जाति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
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भूमि की शस्य-सम्पदा से ही अन्नरूप प्राण उत्पन्न होता है। साथ ही भूमि के हृदय में अनंत ऐश्वर्य जैसे—हीरा, पन्ना, रूबी, नीलम, सोना, लोहा, तांबा और न जानें कितनी धातुएं रहती हैं, जो वह हमें प्रदान करती हैं। इसलिए पृथ्वी देवी का सदा सम्मान करना चाहिए। कुछ चीजें जो भूदेवी की मर्यादा के विरुद्ध हैं, वह नहीं करनी चाहिए। जैसे- दीपक, शिवलिंग, देवी की मूर्ति, शंख, यंत्र, शालिग्राम का जल, फूल, तुलसीदल, जपमाला, पुष्पमाला, कपूर, गोरोचन, चंदन की लकड़ी, रुद्राक्ष माला, कुश की जड़, पुस्तक और यज्ञोपवीत—इन वस्तुओं को कभी भी भूमि पर नहीं रखना चाहिए। ग्रहण के अवसर पर भूमि को नहीं खोदना चाहिए।
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