नई दिल्ली: (Farmer suicides) किसानों को मुफ्त बिजली-पानी दिए जाने को लेकर देश में बहस जारी है। देश के अधिक्तर हिस्सों में गरीब-किसानों के नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं और सरकार भी बन जाती है। बावजूद इसके किसानों की स्थिति आज भी दयनीय बनी हुई है। आजादी के बाद से देश में एक भी चुनाव ऐसे नहीं हुए, जिसमें किसानों को मुद्दा न बनाया गया हो और कोई ऐसी पार्टी भी नहीं बनी, जिसके एजेंडे में किसान शामिल न रहे हों। लेकिन इसके बाद भी हर वर्ष सैकड़ों किसान आत्महत्या (Farmer suicides) करने को मजबूर हैं। महाराष्ट्र से मिले ताजे आंकड़े के मुताबिक यहां 8 माह में 1875 मौतें हुई हैं।
महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या (Farmer suicides) का यह आंकड़ा चिंता बढ़ाने वाली हैं। जानकारी के मुताबिक जनवरी से लेकर अगस्त, 2022 के बीच 1800 से अधिक किसानों ने कर्ज और सरकार की उदासीनता के चलते आत्महत्या (Farmer suicides) कर ली। आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान सबसे किसानों की मौतें अमरावती में हुई हैं। जबकि महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार के गिरने के बाद जून में भारतीय जनता और एकनाथ शिंदे ने मिलकर सरकार बनाई थी।
राज्य राहत और पुनर्वास विभाग के डेटा मुताबिक 8 महीनों के दौरान राज्य में 1875 किसानों ने आत्महत्या की। जबकि, वर्ष 2021 में इस दौरान कर्ज में डूबे 1605 किसानों ने आत्महत्या की थी। हैरान करने वाली बात यह है कि एमवीए सरकार की ओर से चलाए जा रहे कर्जमाफी समेत अन्य योजनाओं और मुख्यमंत्री शिंदे की तरफ से किए गए वादों के बावजूद भी आत्महत्या की संख्या में कमी आती नहीं दिख रही है।
आत्महत्या (Farmer suicides) की वजह तलाश रहीं एजेंसियां
महाराष्ट्र में किसानों के आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं ने सरकारी एजेंसियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। आत्महत्या की असल वजह का पता लगाने के लिए कई संगठन और सरकारी एजेंसियां जानकारी इकट्ठा कर रही हैं। इस दौरान पता चला है कि उपज की सही कीमत नहीं मिलना, तनाव और परिवार की जिम्मेदारियां, सरकार की उदासीनता, सिंचाई की सही व्यवस्था नहीं होना, कर्ज, सब्सिडी में भ्रष्टाचार और मौसम की मार जैसे कई कारण हैं, जिसके चलते किसान मौत को गले लगाने को मजबूर हैं।
कहां कितनी गई जान
महाराष्ट्र के अमरावती में 2022 में सबसे ज्यादा 725 किसानों ने जान गंवाई है। जबकि, वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 662 पर थी। इसके अलावा औरंगाबाद में यह आंकड़ा 532 से बढ़कर 661 पर आ गया है। वहीं नाशिक में गत वर्ष 201 मौतों के मुकाबले इस बार 252 किसानों ने आत्महत्या की। नागपुर में वर्ष 2021 में यह संख्या 199 थी, जो 2022 में 225 पर पहुंच गई। जबकि राज्य के कोंकण क्षेत्र में पिछले दो वर्षों में किसी किसान ने आत्महत्या का कदम नहीं उठाया।
योजनाओं पर भारी सरकारी तंत्र
ऐसा नहीं है कि किसानों के लिए सरकारों ने काम ही नहीं किया है। किसानों के जीचन स्तर को सुधारने के तमाम प्रयास किए गए, लेकिन सरकारी तंत्र में व्यप्त भ्रष्टाचार के चलते इसका सीधा लाभ किसानों को नहीं मिल सका। वहीं सरकारी कानून में किसानों को राहत देने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया, जिसके चलते अधिकारियों की लूट खसोट का शिकार होने के साथ-साथ इसकी भरपाई भी किसानों से की जाती है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से किसान सम्मान निधि योजना चलाई जा रही है। जांच में पता चला लाखों अपात्र लोग इस योजना का लाभ उठा रहे हैं। सरकार की तरफ से ऐसे लोगों से वसूली की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। वहीं सरकार और कानून की खामियों के चलते अपात्रों को पात्र बनाने वाले कर्मचारी व अधिकारी दंड से बाहर हैं। जबकि बिना ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों के मिली भगत के पात्र-अपात्र का यह खेल संभव ही नहीं है।
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