प्रकाश सिंह
नई दिल्ली: दिवाली पर्व को लेकर एक बार फिर वायु प्रदूषण ने सबकी चिंता बढ़ा दी है। दिवाली के अगले दिन वायु गुणवत्ता के जो आकड़े सामने आ रहे हैं, वह बेहद डरावने हैं। डरावने इसलिए हैं कि ये आंकड़े सरकारी हैं। सरकारी आंकड़े कितने सच होते हैं यह हर किसी को पता है। सालभर कुंभकर्णी नींद में सोने वाला विभाग दिवाली के दो दिन पहले जागता है करीब एक सप्ताह बाद फिर इसका कहीं अता पता नहीं रहता है। विभाग के गायब होते ही प्रदूषण भी नदारद हो जाता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि हवा में प्रदूषण का जहर कौन घोल रहा है। इस सवाल की सही से समीक्षा की जाए तो हवा को जहरीला बनाने में हर कोई शामिल है। केवल किसान और दिवाली का बहाना बनाकर बदनाम करने की साजिश वर्षों से होती आ रही है।
इसका ऐसे समझा जा सकता है कि दिपावली के एक हफ्ते पहले तक प्रदूषण की न तो किसी को चिंता रहती है और न ही किसी को पता होता है कि वायु प्रदूषण काफी बढ़ गया है। दीपावली से पहले ही वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) की रिपोर्ट आनी शुरू हो जाती है और यह दावा किया जाने लगता है कि हवा काफी जहरीली हो गई है। लेकिन बिना पटाख जलाए हवा इतनी जहरीली कैसे हो गई इसका जवाब किसी के पास नहीं होता। पटाखों को फोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं। बावजूद इसके दिवाली पर जमकर पटाखे फोड़े जा रहे हैं और एक हफ्ते तक प्रदूषण की खबरें आने के बाद सबकुछ फिर सामान्य हो जाता है।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी वायु प्रदूषण की जो खबरें आ रही हैं, वह बेहद चिंताजनक हैं। दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र धुंए के गुबार के चलते धुंध हो गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक गुरुवार को दिल्ली में शाम 4 बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 382 था, जो रात 8 बजे तक बढ़कर ‘गंभर श्रेणी’ में पहुंच गया। दिल्ली में सुबह से ही आसमान धुंध नजर आ रहा है। चारों तरफ धुंआ धुंआ सा नजर आ रहा है। दिल्ली-एनसीआर कोहरे की चादर में लिपटा नजर आ रहा है।
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बता दें कि सर्दी का मौसम शुरू हो गया है, ऐसे में कोहरे का छाना कोई नई बात नहीं है। यह हर साल होता है। सवाल मौंजू तब हो जाता है जब मौसम एकदम सही होते हुए भी जब अचानक बिगड़ जाए। देश दो साल से कोरोनावायरस का दंश झेल रहा है। ऐसे में कई उद्योग-धंधे बंद हो गए थे। ट्रेनों और हवाई जहाज का संचालन काफी कम हो गया था, लॉकडाउन की वजह से लोग अपने घरों में कैद हो गए थे। ऐसे में यह दावा किया जा रहा था कि वायु गुणवत्ता काफी बेहतर हो गई है, लेकिन पिछले वर्ष भी दिवाली आते ही वायु गुणवत्ता इतनी बिगड़ गई कि पटाखों की बिक्री और फोड़ने पर रोक लगानी पड़ गई। ऐसे में यह बात तो साबित हो जाती है कि हवा में जहर घोलने की साजिश लंबे समय से चल रही है।
विकास के नाम पर जब सैकड़ों पेड़ों को काट दिया जाता है तो सभी जिम्मेदारों को सांप सूंघ जाता है, इस पर कोई कुछ नहीं बोलता। जिम्मेदार जब रिश्वतखोरी का शिकार होकर धुंए उगलते वाहनों को सड़कों पर दौड़ाते हैं तो इससे किसी का दम नहीं घुटता। मजे की बात है कि अधिकत्तर रिजेक्टड गाड़ियां सरकारी महकमे में शामिल होकर चल रहे हैं। इस तरह के दोहरे चरित्र वालों की वायु प्रदूषण प्रति चिंता हास्यास्पद हो जाती है।
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