Direct Action Day: स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समकक्ष प्रतिद्वन्द्वी के रूप में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (Muslim League) खड़ी हो चुकी थी। मोहनदास करमचन्द गांधी सहिष्णुता और अहिंसा का पाठ पूरे भारतवर्ष को रटाने में लगे थे। वहीं मुस्लिम लीग (Muslim League) ने सभी मुसलमानों को हिंसा के लिए 1940 से तैयार करना शुरू कर दिया था। मुस्लिम लीग (Muslim League) ने 1940 के लाहौर प्रस्ताव के बाद ही इस पर काम प्रारम्भ कर दिया। मोहम्मद अली जिन्ना और उनके साथियों का मानना था कि हिन्दुओं के विरुद्ध सीधी हिंसात्मक कार्रवाई (Direct Action Day) से ही भारत का विभाजन करके वह अधिक से अधिक भू-भाग अर्जित कर सकेंगे। ब्रिटिश राज के अधिकारी जिन्ना को पूरा समर्थन दे रहे थे। दूसरी ओर वह गांधी को शांति का मसीहा कहते जाते थे। जिससे गांधी अपने समर्थकों को समेट कर साथ रखें और कोई हिन्दू हिंसक मुसलमानों का प्रतिकार न करे।
ब्रिटिश राज ने भारतीय नेतृत्व को सत्ता हस्तान्तरण की योजना बनाने के लिए 1946 में कैबिनेट मिशन भेजा। जिसने इसके लिए त्रिस्तरीय संरचना का प्रस्ताव रखा। एक प्रस्ताव केन्द्रीय सत्ता का था, दूसरा प्रान्तों का एक समूह गठित करना था फिर तीसरा प्रान्तों की संरचना का था। प्रान्तों के समूह का उद्देश्य मुस्लिम लीग की मांग को पूरा करना था। मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों ने सिद्धान्त रूप में कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव को मान लिया। कांग्रेस यह नहीं समझ पायी कि कैबिनेट मिशन और जिन्ना के बीच भारत विभाजन के षडयंत्र की रूपरेखा कितनी गहरी चाल के रूप में गढ़ी गयी है।
Muslim League के धोखे से अनजान रही कांग्रेस
मुस्लिम लीग (Muslim League) ने एक ओर यह कहा कि कांग्रेस के नेता झूठे और धोखेबाज हैं। वह पूरी निष्ठा से कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव को नहीं मान रहे हैं। इसलिए वह सम्मति के अपने प्रस्ताव को वापस लेते हैं। इसी के साथ मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 से आम हड़ताल और सीधी कार्रवाई (Direct Action Day) की घोषणा कर दी। महात्मा गांधी सहित कांग्रेस का कोई नेता यह बात खुलकर कहने को नहीं तैयार था कि मुस्लिम लीग इतना बड़ा धोखा करने जा रही है। जबकि अंग्रेजों को पता था कि सीधी कार्रवाई करके मुस्लिम लीग विभाजन के प्रस्ताव को अपने पक्ष में करने के लिए लम्बे समय से तैयार बैठी है। मुस्लिम लीग के सबसे बड़े नेता जिन्ना ने घोषणा की कि वह या तो विभाजित भारत का एक खण्ड लेंगे या फिर नष्ट भारत को दुनिया को दिखाने के लिए प्रस्तुत कर देंगे।
एकतरफा हिन्दुओं का हुआ संहार
अंग्रेजों ने भारत भेजे गये कैबिनेट मिशन को भारतीय एकता की इच्छा का प्रतीक बताया था। यह मिशन 24 मार्च 1946 को नयी दिल्ली पहुँचा था। कांग्रेस के लोग इस मिशन के उद्देश्यों के प्रति सतर्क नहीं थे। उन्हें इस बात की भनक नहीं थी कि जिन्ना के साथ अंग्रेजों की गहरी सांठगांठ हो चुकी है। गांधी और नेहरू को जब पता चला कि मुस्लिम लीग ने भारी नरसंहार की तैयारी कर ली है तो वह अवाक रह गये। 16 अगस्त, 1946 से लीग ने जब एकतरफा हिन्दुओं का संहार शुरू किया तब अंग्रेज सेना भारत में थी। सेना तो दूर पुलिस को भी अंग्रेज अधिकारियों ने बैरकों में रहने का गुप्त निर्देश पहले ही दे रखा था।
मुस्लिम लीग की साजिश में अंग्रेज अधिकारी भी थे शामिल
एक तरफा साम्प्रदायिक हिंसा के सन्दर्भ में अनेक अंग्रेज लेखकों ने लिखा है कि अंग्रेज अधिकारियों को आभास था कि पूरा देश एक साथ खून से नहाने वाला है। ऐसी परिस्थिति में अंग्रेज अधिकारी नहीं चाहते थे कि युद्धरत दो वर्गों के बीच अपने लोगों को भेजा जाय। अंग्रेज तो भारत से जाने के लिए तैयारी में लगे थे। इसलिए उन्हें 16 अगस्त, 1946 या उसके बाद कई दिनों तक कोई निर्देश नहीं दिया गया। ब्रिटिश अधिकारियों ने भयावह हिंसा और नरसंहार के लिए कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों को समान रूप से दोषी करार दे दिया। ब्रिटिश दृष्टिकोण में लीग और कांग्रेस दोनों के नेता समान रूप से अपने समर्थकों की बर्बरता के लिए दोषी थे।
इसलिए एक बात सबसे महत्वपूर्ण हैं कि महात्मा गांधी को भी ब्रिटिश अधिकारियों ने बर्बर हिंसा का दोषी ठहरा दिया। जो गांधी पूरे स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय अंग्रेजों का हित चिन्तक होने का दोष अपने सिर लेते रहे उन्हें अंग्रेजों ने हिंसा का प्रेरक कहकर अपमानित किया। जबकि यह वास्तविकता थी कि जिन्ना और अंग्रेजों की मिली भगत से बंगाल और भारत के पश्चिमी क्षेत्र में लाखों हिन्दुओं का नरसंहार किया गया। यह नरसंहार और भीषण अग्निकाण्ड जिन्ना की डायरेक्ट एक्शन की घोषणा के 72 घण्टों तक इतना तीव्र था कि करोड़ों लोग बेघर हो गये। महात्मा गांधी या कांग्रेस का कोई नेता इस हिंसक ताण्डव के लिए कदापि दोषी नहीं था।
इतिहास में छिपाया गया भारत विभाजन की त्रासदी को
भारत विभाजन की भयानक त्रासदी की अनेक बातों को इतिहास में छिपाया गया है। नेहरू सरकार ने जिन लोगों से इतिहास लिखाया उन्होंने कांग्रेस की तत्कालीन नेतृत्व की छवि को निखारने के लिए उन पर पड़े रक्त के छींटों को धो दिया। वीर सावरकर, डॉ राम मनोहर लोहिया, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भीमराव अम्बेडकर सहित तमाम नेताओं ने कहा था कि जिन्ना ने भारत भूमि के साथ जो घात किया उसके लिए उन्हें भारत की नाविन्य पीढ़ियां कभी क्षमा नहीं करेंगी।
इन नेताओं ने गांधी और नेहरू के बारे में कहा था कि भारत माता का कण कण इनसे जानना चाहता है कि स्वतन्त्रता आन्दोलन की ऐसी परिणिति को नहीं भांप पाने की भयानक भूल इनसे क्यों हुई। डॉ लोहिया ने यहां तक कहा था कि रामराज का सपना दिखाने वाले लोगों का विवेक अन्तिम समय में कहां खो गया था। प्रभुदत्त ब्रह्मचारी और स्वामी करपात्री जी जैसे आध्यात्मिक क्षत्रपों का मानना था कि सत्ता का मुकुट सिर पर धारण करने की हड़बड़ी में विवेक खोकर भारत माता को रक्त से नहलाने वाले कभी क्षम्य नहीं हो सकते।
अलग मुस्लिम देश के लिए सीधी कार्रवाई का ऐलान
डायरेक्ट एक्शन डे (16 अगस्त 1946) वह दिन था जब मुस्लिम लीग ने भारत से अंग्रेजों के बाहर निकलने की तैयारी के बीच एक अलग मुस्लिम देश के लिए ” सीधी कार्रवाई ” का निर्णय किया था। 1946 के कलकत्ता नरसंहार और भीषण आगजनी के रूप में जाना जाता है। यह देशव्यापी सांप्रदायिक दंगों का दिन था। इसने ब्रिटिश भारत के बंगाल राज्य के कलकत्ता नगर से लेकर वर्तमान समय के पूरे बांग्लादेश को अपनी चपेट में ले लिया था। ब्रिटिश अधिकारियों ने कहा था कि 48 घण्टों में इस पूरे भू-भाग में 30 लाख से अधिक हिन्दुओं के शव सड़कों पर बिछ गये थे। इनमें महिलाएं, बच्चे, बूढ़े जवान सभी थे। अकेले कोलकाता में 10 हजार लोग एक चपेट में मार डाले गये। जबकि यह सिलसिला तीन दिनों तक बेरोकटोक के चला।
हुसैन साहीद सोहरावर्दी ने पुलिस प्रशासन को कराया था मौन
डायरेक्ट एक्शन के समय बंगाल का मुख्यमंत्री हुसैन साहीद सोहरावर्दी था। यह मुस्लिम लीग का नेता था। कांग्रेस के समर्थन से इस कुर्सी पर बैठा था। इसने अंग्रेज अधिकारियों को इस बात के लिए सहमत कर लिया था कि तीन दिनों तक सेना या पुलिस का कोई जवान सड़कों पर नहीं निकलेगा। चाहे जितनी हिंसा हो प्रशासन मौन रहेगा। अंग्रेजों ने इस सहमति का कड़ाई से पालन किया। इसीलिए कोलकाता से ढाका और अन्य सभी नगरों, गाँवों में हिंसक मुसलमानों का नंगा नाच चलता रहा।
एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के नेतृत्व को अंग्रेजों की ओर से बताया गया था कि विभाजन के पहले भारी हिंसा हो सकती है। इसलिए ऐसी परिस्थिति का सामना करने के लिए क्या करना होगा यह सोचना चाहिए। तब बापू ने रघुपति राघव राजाराम, ईश्वर अल्ला तेरो नाम, सबको सम्मति दे भगवान वाला भजन देशभर के कांग्रेस जनों और अनुयायियों को जपते रहने का मन्त्र दिया था। उधर जिन्ना ने अपने आह्वान में कहा था कि अपने वजूद के लिए हर किसी को बड़ा योगदान करना है। स्पष्ट था कि बापू अहिंसा के मन्त्र पर डटे रहे। पर हिंसा पीड़ितों के बचाव के लिए उनके या कांग्रेस के किसी नेता के पास कोई मन्त्र नहीं था।
मुसलमानों के झुण्ड ने मचाई थी भारी तबाही
मुसलमानों ने निहत्थे और असहाय हिन्दुओं के विरुद्ध बड़े पैमाने पर हिंसा को जन्म दिया । इस दिन को द वीक ऑफ द लॉन्ग नाइव्स के नाम से भी वर्णित किया गया है। प्रत्यक्षदर्शियों ने यह नाम इसलिए दिया था कि लम्बे चाकू, तलवारें, बरछी और गड़ांसे लेकर मुसलमानों के झुण्ड हिन्दुओं की बस्तियों में घुसते थे। द्वार न खुलने पर आग लगा देते थे। लड़कियां और महिलाएं घसीट कर मुस्लिम घरों और मस्जिदों में पहुँचा देते थे। बाकी सबके रक्त से धरती रंग दी जाती थी। बंगाल में उस समय एक हरिजन नेता थे- जोगेन्द्र नाथ मण्डल। इन्होंने डॉ भीमराव अम्बेडकर की उस समय सहायता की थी जब कांग्रेस ने उनको मुम्बई से केन्द्रीय संसद के लिए चुनाव में हरा दिया था। मण्डल ने उनको बंगाल से जिताकर भेजा था।
जोगेन्द्र नाथ मण्डल की वजह से शिकार बने अनुसूचित जाति के लोग
इस पूरे संग्राम में जोगेन्द्र नाथ मण्डल जिन्ना के साथ हो गये थे। उन्होंने डॉ अम्बेडकर को भी इस बात के लिए सहमत होने का दबाव डाला था कि विभाजन में वह पाकिस्तान का पक्ष लें। मण्डल के कारण पूरे बंगाल और पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) के अधिकांश हरिजन अर्थात अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोग पाकिस्तान की ओर हो गये थे। जबकि डॉ अम्बेडकर ने मण्डल से कहा था- तुम यह भारी भूल कर रहे हो। इस्लाम के साथ रहने में भला नहीं है। वह तुम्हारा और हमारा अस्तित्व मिटा देंगे। भारत में रहकर अपने समाज को जागृति की ओर ले जाना है। पर मण्डल नहीं माने। अन्तत: पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के अनुसूचित और जनजातियों के दसियों लाख लोगों के साथ जिन्ना की खूनी सेना ने भयानक उत्पात किया। उनका अस्तित्व मिटा दिया।
गुमनामी में जीते रहे जोगेन्द्र नाथ मण्डल
जोगेन्द्र नाथ मण्डल अपमानित होकर रोते हुए किसी तरह प्राण बचाकर कोलकाता पहुँचे। अन्त समय में वह मातृभूमि की माटी नित्य अपने माथे पर लगाते और स्वजातीय लाखों लोगों की आत्मा से क्षमा मांगते हुए गुमनामी में जीते रहे। जोगेंद्र नाथ मण्डल का निधन 5 अक्टूबर 1968 को पश्चिमी बंगाल के बंगाव नामक गाँव में हुआ। मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1940 के दशक में भारत की संविधान सभा में दो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ थीं । मुस्लिम लीग ने 1940 के लाहौर प्रस्ताव के बाद से ही उत्तर-पश्चिम और पूर्व में भारत के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों को ‘स्वतंत्र राज्य’ के रूप में गठित करने की मांग की थी।
मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त से कोलकाता में एक तरफा मारकाट शुरू कर दी। महात्मा गांधी को पता चला कि कोलकाता से लेकर पूर्वी बंगाल के पूरे भू-भाग में भीषण मारकाट मची है। नेहरू सहित कांग्रेस के नेता उन्हें 15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्रता दिवस मनाने तक दिल्ली में रहने की बात कह रहे थे। पर बापू ने 09 अगस्त 1947 को नौआखाली जाने का निर्णय किया। वह पहले कोलकाता पहुँचे जहाँ भीषण रक्तपात चल रहा था। यहाँ हिन्दु समुदाय ने उनसे कुछ समय रुककर अपनी पीड़ा सुनने को कहा। मुख्यमन्त्री सोहरावर्दी हिंसा के बीच दिल्ली गया था। वह सूचना पाकर कोलकाता लौट आया।
गांधी जी ने उतार दी थीं चप्पलें
गांधी जी ने कहा कि वह सोहरावर्दी के साथ कुछ समय रहना चाहते हैं। सोहरावर्दी तैयार हो गया और उन्हें कोलकाता की अपनी कोठी में ले गया। गांधी ने सोहरावर्दी से कहा कि मुझे कुछ हिन्दु नेताओं ने आगाह किया है कि तुम पर विश्वास न करूं। पर मेरा मानना है कि तुम्हें पुराने सोहरावर्दी को पीछे छोड़कर एक सच्चे मुसलमान फकीर के रूप में प्रकट होना चाहिए। लोगों का विश्वास जीतना चाहिए। सोहरावर्दी के साथ वह उसकी हैदरी कोठी में रहे। दोनों के बीच एकान्त में वार्ता होती रही। उधर ढाका, नौआखाली सहित बंगाल में चतुर्दिक हिंसा का ताण्डव चलता रहा। पूर्वी बंगाल जहाँ आज बांग्लादेश है, वहाँ जब गांधी पहुंचे तो सड़कें रक्त से लाल थीं। गांधी के सामने मन्दिरों की सीढ़ियों से रक्त बहकर नीचे आ रहा था। गांधी जी ने अपने पांव की चप्पलें उतार दीं।
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उन्होंने कहा कि जिस भूमि में भारत माता के सपूतों का रक्त बहाया गया है, वहाँ मैं चप्पल पहनकर कैसे चल सकता हूँ। गांधी की मनोदशा देखकर जिन्ना-सोहरावर्दी का हृदय द्रवित नहीं हुआ। रक्तपात होता रहा। बाद में नेहरू समर्थक इतिहासकारों ने लिखा कि यह दंगा हिन्दू और मुसलमान दोनों ओर से हुआ था। तो क्या यह मान लिया जाय कि मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस ने भी 1946 से 1947 के बाद तक रक्तपात की योजना गढ़ी थी। नेहरू के इतिहासकारों ने धर्म निरपेक्षता के जोश में डायरेक्ट एक्शन में हिन्दुओं की संलिप्तता बताकर बहुत बड़ी भूल की। पर नेहरू या किसी अन्य नेता ने इस सम्बन्ध में सच्चाई प्रस्तुत करने का साहस नहीं दिखाया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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