लखनऊ। एक तरफ कोरोना के कहर से जहां पूरा देश जूझ रहा है, वहीं उत्तर प्रदेश से बड़ी राहत देने वाली खबर सामने आ रही है। प्रदेश में जहां पिछले 24 घंटे में 28,276 नए मामले सामने आए हैं, वहीं एक दिन में सबसे ज्यादा 357 लोगों की मौत हुई है। जबकि महामारी की स्थिति की निगरानी करने वाले सरकारी अधिकारी और विशेषज्ञों का दावा हे कि राज्य में कोरोना की दूसरी पीक आ चुकी है। चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने बताया कि पिछले 24 घंटों में सामने आए नए मामलों की संख्या 28,076 है जो कि पीक 38,055 से लगभग 10 हजार कम है। सााि ही उन्होंने कहा कि सक्रिय मामलों की संख्या भी 2.5 लाख पहुंच गई है। जबकि पीक के समय सक्रिय सक्रिय मामले 3.1 लाख था।
एक रिपोर्ट के मुताबिक सामाजिक वैज्ञानिक और महामारी विज्ञानी आरती कुमार ने कहा, है कि ‘पीक’ की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है। पीक को महामारी के शिखर बिंदु के तौर पर देखा जाता है जहां पहुंचने के बाद संक्रमण के मामले कम होने शुरू हो जाते है। बता दें कि कोविड-19 के को लेकर दुनिया भर के डाटा विश्लेषक और सांख्यिकीय मॉडलिंग विशेषज्ञ एक महामारी के पीक का निर्धारण करने के लिए उपकरण के तौर पर नए और सक्रिय मामलों का उपयोग करते हैं। इस तरह मामलों की संख्या में आने वाली गिरावट को उस संकेतक के तौर पर देखा जाता है कि पीक निकल चुका है। अधिकारियों के मुताबिक सामने आ रहा डाटा ऐसा ही संकेत देता है।
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आंकड़ों के अनुसार 24 अप्रैल को उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 38,055 नए मामले सामने आए थे और तब से मामलों में गिरावट का क्रम जारी है। इसी तरह 30 अप्रैल को राज्य में टोटल 3,10,783 सक्रिय मामले दर्ज किए गए थे। इसके बाद से इसमें कमी आती नजर आ रही है। पॉजिटिविटी रेट (सकारात्मक दर) में जारी लगातार गिरावट से यह संकेत मिल रहा है कि राज्य में पीक जा चुकी है। वहीं महामारी के पैटर्न की निगरानी कर रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सचिव आलोक कुमार-3 ने इस ट्रेंड को स्वीकारते हुए कहा कि बीते डेढ़ हफ्ते में राज्य के सीपीआर में लगभग पांच प्रतिशत की कमी आई है जिसे एक अच्छे संकेत के तौर पर देखा जा सकता है।
गौरतलब है कि सरकारी आंकड़ों में कोरोना का पीक गुजरा हुआ नजर आ रहा है। लेकिन हकीकत में देखा जाए तो अस्पतालों में जगह नहीं है। आक्सीजन की किल्लत को लेकर सरकार के विधायक व नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लगातार पत्र लिख रहे हैं। सरकारी आंकड़े और हकीकत हमेशा जुदा रहते हैं। शायद यही कारण है कि कोई सरकारी आंकड़ों पर जल्दी भरोसा करने का साहस नहीं जुटा पाता।
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