Congress controversy: कांग्रेस पार्टी एक बार फिर अंदरूनी टकरावों के दौर से गुज़रती नज़र आ रही है। इसकी ताज़ा मिसाल उस तीखे सोशल मीडिया पोस्ट में देखने को मिली, जो पार्टी नेता उदित राज ने वरिष्ठ नेता शशि थरूर के खिलाफ किया।
उदित राज ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर किए गए पोस्ट में थरूर पर तीखा हमला बोला। यह हमला उस वक्तव्य को लेकर था जो थरूर ने पनामा में एक राजनयिक कार्यक्रम के दौरान दिया था। वहां थरूर की टिप्पणी को इस रूप में देखा गया कि वह मोदी सरकार की सीमापार सैन्य कार्रवाइयों की सराहना कर रहे थे।
राज ने व्यंग्यात्मक लहजे में लिखा कि यदि उनके पास अधिकार होता, तो वह प्रधानमंत्री मोदी को सुझाव देते कि थरूर को भाजपा का मुख्य प्रवक्ता या विदेश मंत्री बना दिया जाए।

उदित राज ने थरूर पर कांग्रेस पार्टी के ऐतिहासिक योगदान को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया। उन्होंने याद दिलाया कि 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान भारत ने निर्णायक सैन्य कार्रवाई की थी, खासकर 1971 में बांग्लादेश के निर्माण को लेकर। इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि यूपीए सरकार के दौरान भी कई सर्जिकल स्ट्राइक हुई थीं, लेकिन उनकी राजनीतिक मार्केटिंग नहीं की गई।
राज ने थरूर को यह कहकर आड़े हाथों लिया कि उन्होंने इन उपलब्धियों को नजरअंदाज कर पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा पर सवाल खड़े किए हैं। उस पार्टी के प्रति, जिसने उन्हें राजनीतिक पहचान दी। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय पवन खेड़ा का रुख रहा। पवन खेड़ा, जो कांग्रेस की मीडिया और प्रचार समिति के प्रमुख हैं और कार्यसमिति के सदस्य भी, उन्होंने उदित राज की इस पोस्ट को रीपोस्ट किया। इसे पार्टी के भीतर गुटबाज़ी के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि खेड़ा का यह कदम थरूर की सार्वजनिक आलोचना को एक तरह से मौन समर्थन देना है। थरूर इस समय ऑपरेशन सिंदूर के बाद पांच देशों के दौरे पर कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं, और पनामा में उनकी टिप्पणी को लेकर पार्टी में हलचल मची हुई है।
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इस पूरे विवाद में एक और पहलू यह भी है कि उदित राज एक दलित नेता हैं, और कुछ विश्लेषकों का मानना है कि उनका यह कदम रणनीतिक रूप से सोचा-समझा था ताकि इस आलोचना को सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर एक तरह की सुरक्षा प्रदान की जा सके।
कई लोग इसे थरूर के समर्थकों या भाजपा से आने वाली संभावित प्रतिक्रिया को पहले ही निष्क्रिय करने की एक कोशिश के तौर पर देख रहे हैं। यह विवाद कांग्रेस के भीतर चल रहे वैचारिक और रणनीतिक उथल-पुथल को उजागर करता है। अब देखना यह है कि यह मामला खुली टकराव की शक्ल लेता है या पार्टी इसे आंतरिक रूप से सुलझा लेती है।
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