कालीशंकर
– चौधरी हरमोहन सिंह ने ही मुलायम को बना दिया नेता जी
लखनऊ: इधर कई दिनों से चौधरी हरमोहन सिंह यादव और उनके वंशज मोहित यादव को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। समाजवादी परिवार के आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिरकत की खबर मायने तो रखती ही है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि इस यादव कुल के राजनीतिक कद और आधार पर नजर डाल ली जाय। प्रधानमंत्री ने आखिर कुछ सोच कर ही तो मोहित यादव का हाथ थाम लिया है।
इस बारे में विवेचना के बाद यह तथ्य सामने आया है कि वास्तव में अभी तक समाजवादी रहे इस परिवार का राजनीतिक आधार काफी गहरा है। जानकारों का कहना है कि उत्तरभारत से दक्षिण भारत तथा पूरब से पश्चिम तक यादव समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रथम अभियान चलाने वाले, सिख समाज में पूजनीय, यदुवंशियों के गौरव, राष्ट्र के सच्चे सपूत और देशभक्त, यदुकुल शिरोमणि चौधरी हरमोहन सिंह यादव का जन्म 18 अक्टूबर, 1921 को मेहरबान सिंह के पुरवा, कानपुर में चौधरी धनीराम सिंह के सुपुत्र के रूप में हुआ। चौधरी साहब ने अपने उदय के साथ ही वक्त के माथे पर एक लम्बी और मजबूत इबारत लिखी। मात्र हायर सेकंडरी पास इस जुनूनी व्यक्तित्व ने छह दशक की राजनीति में ग्राम सभा से लेकर राज्य सभा तक के सफर में अपनी अलग ऐतिहासिक पहचान बनायी।
चौधरी हरमोहन सिंह यादव को उनके बड़े भाई स्व. चौधरी रामगोपाल सिंह यादव राजनीति में लाये थे। वह 31 वर्ष की उम्र में गुजैनी ग्रामसभा के निर्विरोध प्रधान बने तब किसी ने सोचा न होगा कि एक दिन यही हरमोहन सिंह भारतवर्ष का मजबूत स्तंभ बनेंगे। ग्राम प्रधान से शुरू उनकी राजनीतिक यात्रा का सिलसिला आगे बढ़ता गया। वह नगर महापालिका में पार्षद बने और लगातार 42 वर्ष तक महापालिका, फिर नगर निगम के पदेन सदस्य रहे। उन्हें जिला सहकारी बैंक के प्रथम अध्यक्ष होने का गौरव भी हासिल हुआ।
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वर्ष 1970 में वह एमएलसी बने और वर्ष 1990 तक इस सफर में तीन बार एमएलसी रहे। 80 के दशक में अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष बने। इसी दशक में चौधरी चरण सिंह का उत्तराधिकार उनके पुत्र अजीत सिंह को मिलने के कारण मुलायम सिंह की चौधरी चरण सिंह से खटपट हो गयी। मुलायम सिंह यादव कमजोर पड़ गए थे उसी दौरान आयोजित एक भरी सभा में चौधरी हरमोहन सिंह ने कहा कि मुलायम सिंह यादव चाहे हीरो रहें या जीरो, हम तो मुलायम सिंह का ही साथ देंगे। उनके इस ऐलान के बाद मुलायम सिंह लोकदल से अलग हो गये तथा हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ लोकदल (ब) गठित किया। तभी से चौधरी हरमोहन सिंह, मुलायम सिंह के श्रीकृष्ण रूपी मार्गदर्शक सारथी हो गये।
चौधरी हरमोहन सिंह सन् 1989 में मुलायम सिंह जी को मुख्यमंत्री बनाने में अहम योगदान दिया था, इसीलिए उस समय लोग चौधरी साहब को मिनी मुख्यमंत्री कहने लगे थे। उनके आवास को साकेत धाम कहा गया तथा सत्ता की राजनीति में चौधरी हरमोहन सिंह कानपुर क्षेत्र का केंद्र बन गये थे। यह माना जाता है कि मुलायम सिंह यादव कभी चौधरी हरमोहन सिंह यादव की बात को टालते नहीं थे। मुलायम सिंह यादव उनको छोटे साहब कहकर बुलाते थे।
चौधरी हरमोहन सिंह यादव जी की कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं था। वह अपनी धून के पक्के थे और एक बार जो निर्णय कर लेते हैं उससे वह पीछे कदापि नहीं हटते थे चाहे उसमें खतरा कितना ही बड़ा क्यों न हो। जिसका जीता जागता उदाहरण है की 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद रतनलाल नगर में चौधरी साहब ने 8 -10 घंटे तक अपने पुत्र चौधरी सुखराम सिंह यादव के साथ दंगाइयों पर हवाई फायरिंग करके सिख भाइयों की रक्षा की थी। इस वजह से 1991 में तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया था।
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चौधरी हरमोहन सिंह यादव 18 वर्ष तक विधान परिषद और 12 वर्ष तक राज्यसभा में रहे। चौधरी हरमोहन सिंह के कदमों पर चलते हुए उनके पुत्र चौधरी सुखराम सिंह यादव जी विधान परिषद के सदस्य और फिर विधान परिषद के सभापति तथा राज्यसभा सदस्य के पद को सुशोभित किया। अपने पूर्वजों की उसी सेवा समर्पण और गौरव गाथा को आगे ले जाते हुए चौधरी मोहित यादव पूरी जिम्मेदारी और कर्मठता के साथ राष्ट्र के विकास को सर्वोपरि रखते हुए सभी जाति धर्मो का सम्मान करते हुए यदुकुल के उत्थान के लिए संकल्पित और समर्पित है।
चौधरी हरमोहन सिंह यादव ने यादव समाज के लिये गाजियाबाद में श्रीकृष्ण भवन बनवाया। उनके सुयोग्य पुत्र चौ. सुखराम सिंह की बदौलत यहा पर प्राइमरी से लेकर डिग्री विधि महाविद्यालय और पेरा मेडिकल कालेज स्थापित हो चुके है। हर तरफ से आने वाली रोड व नालियों का जाल बिछा है तथा यह क्षेत्र निरंतर विकास की और अग्रसर है। विकास की उसी धरा को चौधरी मोहित यादव अपनी गौरवमयी संस्कृति परम्परा के साथ पूरी सृजनात्मक्ता और आधुनिक ढंग से आगे बड़ा रहे है।
चौधरी हरमोहन सिंह यादव महान राजनीतिज्ञों की श्रेणी में आते हैं जिन्होंने मातृभूमि की सेवा में, राष्ट्र निर्माण में तथा जनकल्याण के कार्यों में निःस्वार्थ भाव से सक्रिय योगदान किया और भारतीय समाज में अपनी विशिष्ट एवं प्रतिष्ठित पहचान बनाई। वह जनतांत्रिक मूल्यों के प्रबल समर्थक, धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर तथा कर्मठ, राजनीतिज्ञ थे, जो सादाजीवन और उच्चविचार के लिए जनता में काफी लोकप्रिय थे। सच तो यह है कि शीर्ष राजनीतिज्ञ होने के बावजूद जनसाधारण के प्रिय नेता रहे। वह जनसामान्य से सीधे जुड़े हुए थे। दीन दुःखियों, गरीबों और बेसहारा लोगों की सहायता करना वह अपना धर्म समझते थे।
वह मन, वचन और कार्य से पूर्णतया लोकवादी और समाजवादी थे तथा उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य और अपनी सोच पूर्णतः मानवतावादी रखा था। उनकी यह हमेशा से कोशिश रही है कि वह ऐसे शोषण-मुक्त समाज का निर्माण करें जिसमें सभी को समान अधिकार मिले, चाहे वह गरीब हो या अमीर, ऊँची जाति का हो या निम्न जाति का। इन्हीं सिद्धान्तों पर चलते हुये वह अपनी सामाजिक गतिविधियों में पूरी ईमानदारी से, पूरी संलग्नता से जुट गए।
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चौधरी साहब अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष रहे हों, चाहे विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों के संस्थापक, चाहे ग्राम प्रधान अथवा महापालिका के सभासद, या जिला सहकारी समितियों के अध्यक्ष अथवा उत्तरप्रदेश विधानपरिषद् के सदस्य या राज्यसभा के सदस्य रहे हों, उन्होंने हमेशा न्याय की लड़ाई लड़ी उसमें वह जीते और उनकी इसी जीतने की आदत ने ही उन्हें आदर्श पुरुषों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।यदि हम चौधरी साहब का मूल्याँकन राजनीतिक दृष्टि से करें तो जो बात उभर कर आयेगी वह है उनका दृढ़निश्चयी होना, क्योंकि वह जो बात तय करते थे उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। वह सफल राजनेता थे जिन्होंने 1952 से लगातार उसी सरल स्वभाव, मिलनशीलता के कारण सफलतापूर्वक कंटकपूर्ण सफर को तय किया।
राजनीतिक क्षितिज पर पहुँचने में उनके अग्रज चौधरी रामगोपाल सिंह व उनकी पत्नी स्वर्गीय गया कुमारी का महत्त्वपूर्ण योगदान था जिसके कारण वह शीर्ष पर पहुँचे। उन्होंने कभी मस्तक नत नहीं किया। सच तो यह है कि उन्होंने समर्पित भावना से देश की सेवा की, भारतीय संस्कृति और नैतिकता पर जीवन-पर्यन्त बल दिया और हमेशा आदर्श जीवन जीने का प्रयास किया ताकि मानव को आदर्श मानव और समाज को आदर्श समाज बनाया जा सके।
आज जरूरत इस बात की है कि उन्होंने मानव जाति के कल्याण के लिए जो कार्य किया, उससे प्रेरणा प्राप्त कर हमें आदर्श जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। बड़े बुजुर्गों का आदर और सम्मान देने की हमारे देश में प्राचीन परंपरा रही है, जिसका निर्वहन चौधरी सुखराम सिंह यादव व चौधरी मोहित यादव बखूबी कर रहे हैं। वास्तव में वह अनुभवों की खान थे, पुराने और नये के बीच सेतुबंध थे। उन्होंने अपने बहुआयामी व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व से भारतीय समाज में एक अमिट छाप छोड़ी है।आज जरूरत इस बात की है कि उनके आदर्श जीवन से युवा पीढ़ी प्रेरणा प्राप्त करे और उनके बताये मार्ग का अनुसरण करे।
चौधरी हरमोहन सिंह जहाँ एक संवेदनशील इंसान थे, वहीं इसके साथ ही सामाजिक कुरीतियों के प्रति उनकी सूक्ष्म-दृष्टि उन्हें समाज-सुधारक बनाने में सफल रही। समाज के विभिन्न समुदायों की रीति-रिवाज, दुर्बलतायें तथा उनके उपचार के प्रति वह सदैव जागरूक और चिन्तनशील बने रहे। दक्षिण भारत में भी चौधरी हरमोहन सिंह का सामाजिक प्रभाव बहुत दूर-दूर तक अनुभव किया जा सकता है। इसी कार्य को दो कदम आगे बढ़कर आगे ले जाते हुए चौधरी सुखराम सिंह यादव जी व चौधरी मोहित यादव जी यदुकुल के चौमुखी विकास के लिए उत्तर से दक्षिण भारत तक विभिन्न कार्यक्रमों अभियानों के माध्यम से लगातार कार्य कर रहे हैं जिसमें से यदुकुल शिरोमणि समागम श्रृंखला भी एक है, जिससे निश्चित रूप से समाज को एक नई दिशा और दशा प्राप्त होगी।
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