हिंदी पत्रकारिता दिवस (30 मई पर विशेष): उजली विरासत को सहेजने की जरूरत

समाज जीवन के सभी क्षेत्रों की तरह मीडिया भी इन दिनों सवालों के घेरे में है। उसकी विश्सनीयता, प्रामणिकता पर उठते हुए सवाल बताते हैं कि कहीं कुछ चूक हो…

जयंती विशेष: वीर सावरकर, स्वातंत्र्य समर का एक उपेक्षित नायक

स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर की पूरी जिंदगी रचना, सृजन और संघर्ष का उदाहरण है। आजादी के आंदोलन के वे अप्रतिम नायक हैं। उनकी प्रतिभा के इतने कोण हैं कि…

नारद जयंती (27 मई) पर विशेष: लोकमंगल के संचारकर्ता हैं नारद

प्रो. संजय द्विवदी ब्रम्हर्षि नारद लोकमंगल के लिए संचार करने वाले देवता के रूप में हमारे सभी पौराणिक ग्रंथों में एक अनिवार्य उपस्थिति हैं। वे तीनों लोकों में भ्रमण करते हुए…

ऑनलाइन कक्षाओं के लिए कितनी सहज है नई पीढ़ी

यह डिजीटल समय है,जहां सूचनाएं, संवेदनाएं, सपने-आकांक्षाएं, जिंदगी और यहां तक कि कक्षाएं भी डिजीटल हैं। इस कठिन कोरोना काल ने भारत को असल में डिजीटल इंडिया बना दिया है।…

संवाद कला से खुलेगा सफलता का महामार्ग

संवाद, संचार और बातचीत की कला किसी का भी दिल जीत सकती है। इसके प्रभावों का आकलन नहीं किया जा सकता। किंतु किसी व्यक्ति की सफलता उसकी संवादकला ही तय…

कोरोनावायरस: वक्त का काम है बदलना, यह भी बदल जाएगा

कोविड-19 के इस दौर ने हर किसी को किसी न किसी रूप में गंभीर रूप से प्रभावित किया है। किसी ने अपना हमसफर खोया है तो किसी ने अपने घर-परिवार…

अक्षय तृतीया पर विशेष: मानवीय योजनाओं को पुष्पित—पल्लवित करने की तिथि है

यह सृष्टि का अक्षय पर्व है। पृथ्वी से अन्न पाने की अनुमति का समय है। पितरों को पुण्यलाभ प्रदान करने की योजना है। कलियुग की कल्पतिथि है। यह जीवन को…

विश्व परिवार दिवस (15 मई) पर विशेष: भारतीयता का मूल हैं हमारे परिवार

भारत में ऐसा क्या है जो उसे खास बनाता है? वह कौन सी बात है जिसने सदियों से उसे दुनिया की नजरों में आदर का पात्र बनाया और मूल्यों को सहेजकर रखने…

श्रद्धांजलि लेखः रचना, सृजन और संघर्ष से बनी थी पटैरया की शख्सियत

वे ही थे जो खिलखिलाकर मुक्त हंसी हंस सकते थे, खुद पर भी, दूसरों पर भी। भोपाल में उनका होना एक भरोसे और आश्वासन का होना था। ठेठ बुंदेलखंडी अंदाज…

काल कवलित होती कहावतें और बदलता समाज

आधुनिकता के रंग में रंगते लोगों ने हमारे समाज से बहुत कुछ छीन लिया है। समानता के अधिकार की आड़ में छोटे—बड़े के लिहाज और सम्मान कब गायब हो गया…