Bharat Chhodo Andolan: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के आलोचक अनेक बार यह प्रश्न उछालते हैं कि स्वतन्त्रता आन्दोलन में इस संगठन की भूमिका क्या थी। ऐसा प्रश्न जिज्ञासा के कारण नहीं अपितु आलोचना के उद्देश्य से उछाला जाता है। प्राय: यह पूछने वाले लोग दुराग्रही होने के साथ वाचाल और निरे अल्पज्ञ होते हैं। यदि उन्हें स्वाध्याय में अभिरुचि होती तो स्वतन्त्रता आन्दोलन की गाथाओं में अनेक स्थानों पर यह तथ्य स्पष्ट रूप से उजागर होता है। यही कि आरएसएस (RSS) के संस्थापक डॉ केशव बलीराम हेडगेवार का नाम कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं में सम्मिलित था। कांग्रेस के विभिन्न अधिवेशनों में उनकी सक्रिय भूमिका रहती थी। सभी बड़े नेताओं से उनका सीधा सम्पर्क था।
डॉ हेडगेवार क्रान्तिकारियों और उनके संगठन अनुशीलन समिति के सम्पर्क में रहते थे। क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़े ऐतिहासिक कथानकों में उनका नाम अंकित है। कोलकाता में रहते हुए उनके गहरे सम्बन्ध अनुशीलन समिति के नेताओं से थे। इतने पर भी आलोचकों के मन में प्रखर हिन्दु संगठन के प्रति घृणा और विद्वेष के कारण संघ के प्रति निराधार बातें करने वाले दुराग्रही राजनीतिक नेताओं की कमी नहीं है। डॉ हेडगेवार ने संघ के उद्देश्यों और स्वयंसेवकों की प्रतिज्ञा में भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता दिलाने का संकल्प निहित कर दिया था।
भारत छोड़ो आन्दोलन स्वतन्त्रता संग्राम का एक प्रमुख अभियान था। भारत सरकार के राष्ट्रीय अभिलेखागार में ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट सुरक्षित है। यह रिपोर्ट एक बड़ी मोटी फाइल का अंग है। इसी रिपोर्ट में अंकित है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं को संघ के नेताओं से निर्देश मिले थे कि भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी निभायें। भारत छोड़ो आन्दोलन द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 08 अगस्त, 1942 को प्रारम्भ हुआ था। इस आन्दोलन का उद्देश्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त कराना था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन में इस आन्दोलन के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। काकोरी काण्ड के ठीक 17 साल बाद गांधी के आह्वान पर पूरे देश में एक साथ ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू किया गया था। सविनय अवज्ञा आन्दोलन इसका मुख्य आधार था। इसके अन्तर्गत सभी राष्ट्र प्रेमियों का आह्वान किया गया था कि वह बिना किसी प्रकार की हिंसा के ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एकजुट होकर आन्दोलन करें। सरकार का हर स्तर पर असहयोग किया जाने लगा था।
दूसरा विश्वयुद्ध 01 सितम्बर, 1939 से 02 सितम्बर, 1945 तक चला। इतिहास का यह सबसे घातक और विनाशकारी युद्ध था। इस युद्ध के पहले जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका सहित सभी देश महामन्दी जैसी अर्थव्यवस्था से जूझ रहे थे। किसी देश की मुद्रा ऐसी नहीं थी जिसका पतन न हुआ हो। सबसे पहले ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा करके उसकी आक्रामकता का विरोध किया था। इसी के उपरान्त अन्य देश इसमें उलझते चले गये। अन्तत: भारी विनाश लीला के अन्त में अमेरिका ने जापान पर दो परमाणु बम गिराकर इस युद्ध का सबसे भीषण संहार और विनाश किया। युद्ध में 70 देशों ने भाग लिया। जबकि कोई देश ऐसा नहीं बचा था जहाँ किसी न किसी रूप में बर्बादी न हुई हो। इस महायुद्ध में लगभग 07 करोड़ लोग मारे गये थे। मोहनदास करमचन्द गांधी की सम्मति से भारतीय सैनिकों को भी इस युद्ध में ब्रिटिश सेना ने झोंक दिया था। जिसमें 40 हजार से अधिक भारतीय सैनिक या तो मारे गये या फिर कभी स्वदेश नहीं लौटे। अंग्रेज सरकार ने टका सा उत्तर दिया था कि उनके बारे में कुछ पता नहीं चला। इस युद्ध की ज्वाला में भारतीय सैनिकों का झोंकने का विरोध संघ ने किया था, जिससे कांग्रेस के नेता उस समय बहुत रुष्ट हुए थे।
ब्रिटिश गुप्तचर एजेंसी ने उस समय अपनी जो रिपोर्ट वायसराय के माध्यम से लन्दन भेजी थी उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों को भेजने के विरोध की जानकारी भी अंकित है। इसके साथ ही संघ के उन सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं के नामों का उल्लेख इस रिपोर्ट में मिलता है जिन्होंने गांधीजी के आह्वान पर देशभर में भारत छोड़ो आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि आरएसएस की इकाइयों द्वारा भारत छोड़ो आन्दोलन में जनता की भागीदारी बढ़ाने के लिए उकसाया जाता रहा। रिपोर्ट में आरएसएस के उन लोगों के नाम अंकित हैं जिन्हें विभिन्न जेलों में सजा भुगतने के लिए बन्द रखा गया था। उसी अवधि की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र चिमूर आष्ठी नामक स्थान पर संघ के लोगों द्वारा समानान्तर सरकार की व्यवस्था लागू कर दी गयी थी। अंग्रेज पुलिस और सेना ने इस स्थान पर आरएसएस के कार्यकर्ताओं को कड़ी कार्रवाई के नाम भीषण यात्नाएं दी थीं। जिससे सामाजिक वातावरण बहुत बिगड़ गया था। जिससे ब्रिटिश सरकार को कठिनाई हुई थी।
विदर्भ के चिमूर आष्ठी में अंग्रेज पुलिस और सेना ने भारत छोड़ो आन्दोलन को कुचलने के लिए लाठी और गोली का प्रयोग किया था। जिसमें आरएसएस के 11 कार्यकर्ता घटना स्थल पर ही मारे गये थे। नागपुर के रामटेक के संघ के नगर कार्यवाह रमाकान्त केशव को अंग्रेजों ने मृत्युदण्ड की सजा सुनायी थी। रमाकान्त नागपुर के रामटेक में भारत छोड़ो आन्दोलन के अगुवा थे। बाद में उनकी सजा को उच्च न्यायालय से रद्द किया गया था। रमाकान्त देशपाण्डे ने बाद में संघ के द्वारा संचालित वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की थी। गांधी के नेतृत्व में छेड़े गये भारत छोड़ो आन्दोलन में आरएसएस कार्यकर्ताओं ने पूरे देश में सक्रिय भागीदारी निभायी थी। जिसमें हजारों स्वयंसेवक जेल गये थे।
भारत छोड़ो आन्दोलन के समय केवल अंग्रेज सरकार के गुप्तचर ही नहीं, कम्युनिष्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के नेताओं के निर्देशानुसार देशभक्त कार्यकर्ताओं को पकड़वाने के लिए सक्रिय थे। बड़ी विचित्र बात है कि कम्युनिष्ट दलों के नेता अब कांग्रेसी नेताओं के साथ मिलकर आरएसएस से प्रश्न करते हैं कि स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय संघ की भूमिका क्या थी। उनको लगता है कि असत्य बातों को चिल्लाकर कहते रहने से समाज भ्रमित हो जाता है और उनकी आलोचनाओं को सही मानने लगता है। स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय प्रखर समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली प्राय: दिल्ली के संघचालक हंसराज गुप्त के यहाँ रुकते थे। इसी तरह पुणे के आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी भाऊसाहब देशमुख के घर पर महान समाजवादी विचारक अच्युत पटवर्धन और साने गुरुजी ने आन्दोलन के अवधि में केन्द्र स्थापित किया था। ऐसे केन्द्र महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित विभिन्न राज्यों में संघ कार्यकर्ताओं के सहयोग से चल रहे थे। गुप्तचर विभाग की इन फाइलों का अवलोकन करने से संघ की भूमिका स्पष्ट होती है। ऐसे तथ्यों की अनदेखी करने वालों का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार का निधन 21 जून 1940 को हो गया था। उनके उत्तराधिकारी के रूप में श्रीगुरुजी माधव सदाशिव गोलवलकर की नियुक्ति हुई थी। गोलवलकर ने भी डॉ हेडगेवार द्वारा निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता की नीति का अनुसरण किया। इसीलिए गुरुजी ने संघ के स्वयंसेवकों को भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का निर्देश दिया था। उस समय गुरुजी ने कहा था- भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता दिलाना स्वयंसेवकों की प्रतिज्ञा का अंश है। अत: इसके लिए स्वतन्त्रता आन्दोलन में स्वयंसेवकों का भाग लेना स्वाभाविक है। कांग्रेस और उसके समवैचारिक राजनीतिक दलों के नेता जिस तरह संघ पर मिथ्या आरोप लगाते हैं वह पूर्णतया निराधार है। ब्रिटिश सरकार की गुप्तचर रिपोर्ट का अवलोकन करने पर यह तथ्य सामने आता है कि संघ के स्वयसेवकों ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में प्राण प्रण से भागीदारी की थी।
ब्रिटिश सरकार की गुप्तचर रिपोर्ट में आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी के एक पत्र का उल्लेख भी मिलता है। यह पत्र श्रीगुरुजी ने 07 जुलाई 1936 को काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के अपने एक मित्र डॉ सदगोपाल को लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि डॉ हेडगेवार ने आरएसएस जैसे संगठन की स्थापना करके भारत के भविष्य की दिशा तय कर दी है। उन्होंने डॉ हेडगेवार के विचारों का समर्थन करते हुए कहा था कि भारत सनातन संस्कृति का केन्द्र है। इस प्रकार यह हिन्दु राष्ट्र है। इस पहिचान को मिटाया नहीं जा सकता। संघ के संस्थापक ने इसीलिए अंग्रेजों के चंगुल से भारत को मुक्त कराने के अभियान में सभी को भागीदार बनने का आह्वान किया। जो सब प्रकार से समीचीन है। 1936 में डॉ हेडगेवार सक्रिय थे। श्रीगुरुजी उनके सम्पर्क में आ चुके थे। अन्तत: गुरुजी को उपयुक्त समझ कर डॉ हेडगेवार ने मृत्यु से पूर्व संघ के स्वयंसेवकों के नाम पत्र लिखकर बता दिया था कि उनके उत्तराधिकारी वही (श्रीगुरुजी) बनेंगे। यह पत्र डॉ हेडगेवार की अन्त्येष्टि के उपरान्त खोला गया था।
(ब्रिटिश गुप्तचर एजेंसी की तत्कालीन रिपोर्ट)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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